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मैं परेशान हूँ

jagate raho
jagate raho
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मैंने उनसे कहा मैं परेशान हूँ,
भूले भटके हुवों की पहिचान हूँ,
सोना चाहता मगर सो न पाता हूँ मैं,
सोये हुवों को जगाता हूँ मैं,
आज हूँ आदमी कल क्या बनू,
सुनता हूँ सबकी खुद क्या कहूं,
यही प्रश्न यक्ष ने पूछा था उसे,
जबाब मिला यक्ष चुप हो गया !
जबाब क्या था पहेली है ये,
यक्ष ने किसी को बताया नहीं !
भ्रष्टों को मिटाना मेरा काम है,
कोयला खान वालों को पैगाम है,
ये कोयला तो सरकार की जान है,
इसीलिये मुखिया परेशान है !
आँख कान तो मुखिया की बंद हैं,
सहयोगी उसके जयचंद हैं !
एक दिन यक्ष ने यह भेद खोला,
पापी होगा कीड़ा यही यक्ष बोला,
वफादार हूँ देश का अभिमान हूँ,
अब नहीं मैं परेशान हूँ !

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