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संभल जाओ सता वालो,
वतन की भी फिकर करलो,
किए दुष्कर्म जो तुमने
उनपे भी नजर धरलो,
कुदरत है खपा तुम पर
मुसीबत आने वाली है,
फट रहे बादल गगन में,
सोनाली आने वाली है !
लगा बारूद पहाड़ों पर
हिमालय को हिलाया है
अरे मानव तूने तो
हवा में जहर मिलाया है !
वक्त है संभल जाओ,
पहाड़ों को मत सताओ,
नदियों के निज पथ पर,
अवरोध तो मत लगाओ,
ये पेड़ तो हैं दोस्त अपने,
कुल्हाड़ी न इन पर चलाओ !
दास्ताँ बरबादियों की
होने लगी है आसमान में,
अभी भी संभल जाओ
मुसीबत आने वाली है !
फट रहे बादल गगन में
सोनाली आने वाली है !
जंगलों के शेर मारे,
पेड़ कट गए हैं सारे,
दो पाँव वाले शिकारी,
मांग भीख बनके भिखारी,
देश के शासक जनों
आँख तो खोलो जरा,
खाली घड़ा था कल तलक
आज पापों से भरा !
न संभलोगे अभी तो
संभल फिर न पाओगे,
मिट जाओगे धरा से
कभी लौट न पाओगे !
निर्धन का धन लूट लिया
उदर उसका खाली है,
अभी भी संभल जाओ
मुसीबत आने वाली है ! ३ 1
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