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भारत देश की एक विडम्बना रही है की सरकार चाहे किसी की भी हो पर प्रधान मंत्री कौन बनेगा ? १५ अगस्त १९४७ को जब भारत आजाद होने जा रहा था तो पहले भारत पाकिस्तान के विभाजन की बात सामने नहीं आई थी ! हर हिन्दुस्तानी चाहे वह हिन्दू था, मुसलमान, सिख या फिर ईसाई, सबका केवल एक ही उद्देश्य था और वह था, ब्रिटिश ताज से मुक्ति, आजादी ! लेकिन अंग्रेज भी तो बड़े घाग थे उन्होंने जिन्ना को सजग कर दिया “या तो भारत के प्रधान मंत्री का पद मांगो या फिर मुसलमानों के लिए अलग राज्य पाकिस्तान” ! बस फिर क्या था मोहम्मद जिन्ना अड़ गए ‘या तो हिन्दुस्तान का प्रधान मंत्री बनाओ या पाकिस्तान दो’ ! उधर जवाहर लाल नेहरू प्रधान मंत्री पद किसी भी कीमत पर छोडने को तैयार नहीं थे ! गांधी जी विभाजन के पक्ष में नहीं थे लेकिन जवाहर लाल नेहरो को भी नाराज नहीं करना चाहते थे ! विभाजन गांधी जी की मजबूरी थी ! पाकिस्तान एक नया देश विश्व के नक़्शे पर उभर कर अस्तित्व में आया ! श्री जिन्ना जी पाकिस्तान के सर्वेसर्वा बने और नेहरू जी भारत के प्रधान मंत्री बने ! वैसे सन १९८५ ई० में एक अंग्रेज सर ह्युम ने कांग्रेस पार्टी बनाई थी ! ये भी अंग्रेजों की एक चाल थी भारत के स्वतंत्र सेनानियों को विघटित करने की एक चाल थी ! इसलिए गांधी जी ने कहा था की आजादी मिलते ही कांग्रेस पार्टी को भी अंग्रेजों के साथ ही विदा कर देना लेकिन कांग्रेस आज भी देश पर राज कर रही है ! राज ही नहीं कर रही बल्की परिवार वाद को ही सरंक्षण दे रही है ! नेहरू के बाद इन्द्रा गांधी
फिर राजिव गांधी और अब लाइन में खड़े हैं राहुल गांधी !
सन १९६६ ई० में ताशकंद में शास्त्री की ह्रदय गति रुकने से अचानक मौत होने से इन्द्रा जी को प्रधान मंत्री बनाया गया था जब की मोरार जी देसाई, चौधरी चरणसिंह लें में खड़े थे ! उन्हें लगा की कांग्रेस में रह कर वे कभी प्रधान मंत्री नहीं बन सकते ! १९७५ ई० में इन्द्रा गांधी ने अपने चुनाव को कोर्ट द्वारा निरस्त होने पर देश में अमर्जेंसी लगा दी थी नतीजा १९७७ में सारी पार्टियों की संयुक्त पार्टी जनता पार्टी ने दो तिहाई मतों से कांग्रेस को हरा कर जीत हासिल की और मोरार देसाई जी को प्रधान मंत्री बनाया ! चौधरी चरणसिंह को रास नहीं आया और उन्होंने अपने चेलो के साथ इन्द्रा गांधी से हाथ मिला लिया और कार्यवाहक प्रधान मंत्री का खिताब पाया! यह सरकार भी ज्या नहीं चले और १९८० में फिर कांग्रेस सता में आई ! तीसरे मोर्चे ने फिर १९८९ में किस्मत अजमाई लेकिन दो प्रधान मंत्री और १९९१ में फिर कांग्रेस ने इस मोर्चे की लुटिया डुबाई ! आज अगर मोर्च बन भी गया तो प्रधान मंत्री की लाइन में होंगे मुलायम सिंह, मायावती, ममता बनर्जी, लालू, सी पी ई. सी पी एम और बहुत सारे नेता ऐसी हालत में तीसरा मोर्चा कभी भी कामयाब नहीं होगा ! हरेंद्रसिंह रावत
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