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चलो नील कंठ महादेव भाग दो

jagate raho
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मैंने नील कंठ महादेव के बारे में बहुत सुना था, शास्त्रों को पढ़ा, शंकर महादेव के बारे में कल्याण नामक मासिक पत्रिकाओं में बहुत कुछ सामग्री उपलब्ध है, मैंने सारी पत्रिकाओं का अध्यन किया, जो सामग्री सामने आयी उसका सारांस मैं निम्न पंक्तियों में उद्धृत कर रहा हूँ !
भगवान् ने तीन लोकों की रचना की, स्वर्ग, मृत्यु और नरक ! स्वर्ग देवताओं के लिए, मृत्यु लोक मनुष्यों के लिए और नरक दैत्यों राक्षसों के लिए ! समय के साथ देवता बलहीन होने लगे और दैत्य शक्तिशाली ! दैत्य राज समय समय पर अपनी पूरी आसुरी शक्तियों के साथ मृत्यु लोक और स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर देते थे ! धरती पर इंसान और स्वर्ग में देवता इन दैत्यों के बार बार लूट पाट, हत्याओं से तंग आकर वे सारे देवता, ऋषि मुनियों को साथ लेकर क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर लक्ष्मी जी के साथ विराजमान, श्री विष्णु भगवान के पास गए और उन्हें राक्षसों के बढ़ते हुए जुल्मों और अत्याचारों के बारे में बतलाया ! भगवान् विष्णु आँखें मूंदे शैय्या पर लेटे अर्द्ध निंद्रा का आनंद ले रहे थे ! श्री लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को देवताओं और ऋषि, मुनियों के आगमन की सूचना दी ! भगवान विष्णु ने उनकी बातें सुनी ! कुछ देर तक दुष्ट दैत्यों के बढ़ते हुए अत्याचार और अनाचार से देवता और मनुष्यों को कैसे मुक्ति दिलाई जाय सोचते रहे ! फिर अचानक उनके दिमाग में एक विचार आया की क्यों न देवताओं और राक्षसों के संयुक्त शक्ति का इस्तेमाल करके मंदराचल पर्वत पर शेषनाग की रस्सी बनाकर इस विशाल जलराशि वाले सागर का मंथन किया जाय और इसके अन्दर के अमूल्य रत्नों को बाहर निकाला जाय ! इन रत्नों को बाँट कर दैत्य और देवताओं में पल रहे दुश्मनी को थोड़ी देर के लिए ही सही कम किया जाय ! मंथन होने के बाद जो अमृत मिलेगा उसे देवताओं को पिला दिया जाएगा ! देवता शक्तिशाली हो जाएंगे और फिर दैत्यों से मार नहीं खाएंगे ! इस तरह देव-दानवों का संघर्ष ख़त्म हो जाएगा ! अगले १० दिनों के अन्दर अन्दर सारी तैय्यारियाँ पूरी हो गयी ! दैत्यों को नाग के मुंह की तरफ लगवा दिया और देवताओं को पूँछ की तरफ ! मंथन हुआ और १४ रत्न समुद्र से निकले ! सूर्य-चन्द्र नील गगन में चले गए धरती माँ को रोशन करने के लिए ! आज के वैज्ञानिक इस थ्योरी को नहीं मानते ) ! शंक, चक्र, गदा, पदम् और लक्ष्मी विष्णु जी ने ले ली ! कामधेनु गाय महर्षि वशिष्ट को दी गयी ! ऐरावत हाथी देवताओं के राजा इंद्र को दिया गया ! कल्प वृक्ष देवताओं को, धन्वन्तरी वैद्य भी देवता ले गए, भूरा श्रवा घोडा दैत्य गुरु शुक्राचार्य को दिया गया ! अब निकला बिष ! उसकी प्रचंड गर्मी ने सारी धरती के मानव जीव जंतुओं को बेचैन कर दिया ! चारों और हाहाकार मच गया ! देवता और दैत्य खुद इसकी ज्वाला को सहन नहीं कर पा रहे थे ! इस विष को कहाँ रखा जाय ! अचानक विष्णु भगवान जी को देवों के देव महादेव जी की याद आई ! सारे देव दानव महादेव जी के पास गए और उनसे अनुग्रह किया की वे अपनी योग साधनों से इस विष से धरती के सारे प्राणी मात्र को निजात दिलाएं ! धरती के सारे प्राणियों की बेचैनी और विष की बढती हुई ज्वाला से धरती पर पड़ने वाला असंतुलन को देखते हुए देवों के महादेव भी चिंतित हो गए और उनहोंने वह जहर अपने कंठ में धारण कर लिया ! उसी दिन से वे नील कंठ महादेव कहलाए !
अमृत भी निकला उसे भी देवताओं ने आपस में बाँट लिया और अमर और शक्तिशाली हो गए ! विष को महादेव जी ने अपने कंठ में धारण तो कर लिया लेकिन उसकी प्रचंड ज्वाला से वे भी सहन नहीं पाए ! अब उनहोंने किसी ठन्डे प्रदेश की ओर प्रस्थान किया, वे काश्मीर में अमरनाथ की गुफा में गए, वे हिमांचल प्रदेश की पर्वत श्रेणियों में भटकते रहे, वे उत्तराखंड की नंदादेवी चढ़े, वे महाब गढ़ पर्वत श्रेणियों में गए, और आखीर पहुंचे हरिद्वार फिर ऋषिकेश, गंगा के किनारे किनारे आगे ही आगे बढ़ते रहे, पहुंचे, गरुड़ चट्टी, फूल चट्टी, यहाँ पर गंगा में ह्वेल नदी जो चेलूसेंन की पर्वत श्रृंखलाओं से निकल कर कही नदी नालों को साथ मिलाते हुए, पहले दक्षिण की ओर महां संगम त्रिवेणी वहां से फिर पश्चिम से उत्तर की ओर फिर उत्तर में फूल चट्टी में गंगा में मिल गयी ! उस दृश्य को हृदयगम करते पहुंचे चोटी पर जहाँ उन्हें शकुन मिला उस चोटी पर उन्होंने अपनी तपोभूमि बना ली ! वही स्थान आज नील कंठ महादेव के नाम से प्रसिद हुआ ! शंकर की महान अनुकम्पा से मैं मेरी पत्नी जयंती देवी, पुत्री उर्वशी और दामाद राजेन्द्र नेगी के साथ २9 अक्टूबर को इस तपोभूमि के दर्शन करने गए थे ! अब के देहरादून गए थे वहां से डाक पत्तर जहाँ दो दिन गढ़वाल विकास निगम होटल में रहे ! यह स्थान बड़ा रमणीक और आकर्षक है ! यहाँ यमुना पहाड़ों से निकल कर मैदान में उतरती है ! यमुना यहाँ पर उत्तराखंड और हिमांचल प्रदेश को विभाजित करती है ! यहीं पर बैराज है जहां से एक खूबसूरत सी नहर निकलती है ! नहर काफी गहरी और स्वच्छ हरे रंग के पानी से लबालब है ! एक कभी न भुलाए जाने वाली यात्रा का सुखद यादगारों के साथ उसी दिन यानी २९ सितम्बर को रात के १२ बजे हम लोग दिल्ली वापिस आ गए ! जय नील कंठ महादेव की !! हरेंद्रसिंह रावत

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