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आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी ! समाज के हर वर्ग के लोग स्वतंत्रता के हवन कुंड में अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक़ आहुति दे रहे थे ! कुछ रण बाँकुरे अंग्रेजों की छावनियों में भी सेंध लगा रहे थे ! भगतसिंह, राजगुरु, चन्द्र शेखर आजाद जैसे अग्र पंक्ति के सिपहलासार गुरिला वार की तकनीक से अंग्रेजी सेना को चकमे देते रहते थे, उनकी रसद, कम्युनिकेशन प्रणाली में अवरोध खड़ी कर देते थे ! इन देश भक्तों ने अंग्रेजी सेना के नाक में दम कर रखा था ! अंग्रेज बड़े काँइयाँ थे ! वे डिवाइड एंड रुल की पालिसी से भारत वर्ष में राज कर रहे थे ! उनहोंने तमाम रजवाणों के राजाओं और व्यापारी-उद्योग पतियों को अपने काबू में कर रखा था ! उन्हीं लोगों की सहायता से अंग्रेजों ने इन वीर सच्चे देश भक्तों का पता पाया, उन्हीं से झूटी गवाई दिलवा कर उन्हें फांसी पर लटक वाया ! आजादी मिलते ही ये सारे राजा, व्यापारी-उद्योगपति अपने प्रभाव और पैसों की खनक से सता पर काविज हो गए ! इन्हीं अग्र पंक्ति के स्वतंत्र सेनानियों में एक नाम है “नेता जी सुभाष चन्द्र बोष का” ! इनका जन्म २३ जनवरी सन १९९७ इ० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था ! उनके पिता जी का नाम जानकी नाथ बोस और माता का नाम प्रभावती था ! उनके पिता जी उस जमाने के जाने माने वकील थे और उन्हें राय बहादुर की उपाधि से उपकृत किया गया था ! १९३५ ई में वे बंगाल लेजिस्लेटिव अस्सेम्बली के सदस्य भी चुने गए थे ! नेता जी बचपन से कुशाग्र बुद्धी और स्वतंत्रता के प्रेमी थे ! स्वतंत्रता से पहले वे इंग्लैण्ड गए थे और वहां के जाने माने लेबर पार्टी (सता में रही १९४५ से १९५१ तक) के नेताओं से मिले थे और उनके साथ भारत माता के भविष्य के बारे में भी चर्चा की थी ! अपनी कुशाग्र बुद्धी और योग्यता से तथा अपने पिता जी की इच्छा से उस जमाने की इन्डियन सिविल सेर्सिसेज की परीक्षा में बैठे थे और प्रथम श्रेणी में पास हुए थे, तथा उन्हें इंगलैंड में अधिकारी भी नियुक्त किया गया था, लेकिन क्योंकि उनका जन्म ही भारत माता के बंधन को तोड़ने के लिए हुआ था, अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए नहीं ! १९२१ में उनहोंने आई सी एस को लात मार कर स्वतंत्र सेनानी का चोल पहिन लिया ! पहले उनहोंने राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए थे ! विवेका नन्द जी उनके धार्मिक गुरु थे, वहीँ चितरंजन दास को उनहोंने अपना राजनीतिक गुरु मान लिया था ! वे एक काबिल प्रशासक और ऊँचे दर्जे के लीडर थे, वे पार्टी को उच्चस्तर तक पहुंचाना चाहते थे और इसमें समूल प्रवर्तन करना चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी की विचारधारा से उनके विचार अलग होने के कारण उनहोंने पार्टी के अध्यक्ष पद से तथा पार्टी से ही अपने को अलग कर दिया ! गांधी जी के अहिंसा पर उन्हें विश्वास नहीं था ! उनका कहना था की “माँगने से भीख नहीं मिलती, फिर अहिंसक बनकर और हाथ फैला कर अंग्रेज भारत देश को कैसे आजादी दे देंगे ” ! उनके उग्र विचारों से अंग्रेजों ने उन्हें उनके घर में ही नजर बंद करके रख दिया था ! उनकी हर हरकत पर निगरानी रखी जानी लगी ! उनहोंने भारत के नव जवानों और स्वतंत्रता प्रेमियों को एक सन्देश दिया था , “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, जय हिन्द ” ! और एक दिन वे बड़े रहस्यमय ढंग से वे अंग्रेजों के नजर बंदी से गायब हो गए ! कलकाता से ग्रांट ट्रंक रोड के रास्ते कहीं पैदल, कहीं कार, कहीं बस तो कहीं ट्रक से वे काबुल पहुंचे (अफगानिस्तान) ! वहां उनहोंने वहीँ के लिवास पहिनकर वहां के जानी मानी हस्तियों से आर्थिक सहायता लेकर वे जर्मनी पहुंचे ! वहां वे हिटलर से भी मिले थे ! सितम्बर १९३९ ई में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया ! अंग्रेज भारतीय संस्थानों, भारतीय सैनिकों का इस्तेमाल अपने साम्राज्य को बढाने के लिए, भारतीय नेताओं को बताए बिना करने लगे ! इससे भारतीयों में असंतोष पैदा हो गया, अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन तेज हो गया ! नेता जी अपने स्वतंत्रता सेनानियों को पूर्वीय देशों में भेज रहे थे, वे स्वयं मेडागास्कर होते हुए ४०० मील की यात्रा करके जापान पहुंचे, वहां उनका बड़ा स्वागत हुआ ! वहीँ रास बिहारी बोस के सहयोग से उनहोंने द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिक, जो युद्ध बंदी होकर जापान की कैद में पड़े थे, उनको जापान की कैद से छुड़ाकर उन ४०००० सैनिकों, अधिकारियों से आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की i स्वयं इसके कमांडर बने ! कुछ ही दिनों में इस आर्मी ने
अंडमान निकोवार दीप समूह को अंग्रेजों से आजाद करवाया और दिल्ली चलो का नारा दिया ! इम्फाल में उनहोंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला लेकिन आजाद हिन्द फ़ोर्स संसाधनों, हथियारों और गोली बारूद की कमी से हार गयी ! काफी सैनिक अब अंग्रेजों के कैदी बन गए ! उधर मित्र राष्ट्रों की संयुक्त फ़ोर्स आगे बढ़ रही थी और जर्मनी में हिटलर, इटली का मुसोलिनी और जापान अपने मोर्चों से पीछे हट रहे थे ! मित्र राष्ट्रों की जीत हुई और हिटलर इस युद्ध में मारा गया ! जर्मनी को दो भागों में बांटा गया आधा अमेरिका के हिस्से में और आधा रूस के ! अगस्त १९४५ में अमेरिका ने परमाणु बम से जापान में तबाही मचा दी जिसके जख्म अभी भी हरे हैं !
नेताजी के बारे में यह अफवाह फैलाई गयी की नेता जी सुभाष चन्द्र बोस फारमोसा में एक हवाई जहाज दुर्घटना में मारे गए हैं ! लेकिन उनकी बौडी नहीं मिली ! कुछ समाचार पत्रों ने उनके बारे में यह खबर भी छापी की नेता जी को रूस में देखा गया है ! आजादी मिलने के बाद (१५ अगस्त १९४७) कांग्रेस सरकार ने कही जांच आयोग बिठाए लेकिन कोई भी नेता जी के बारे में सही जानकारी नहीं दे पाया ! वे आज भी एक रहस्य बने हुए हैं ! अगर वे आज जिन्दा होते तो ११6 साल पूरे कर चुके होते ! लेकिन सच्चे देश भक्त कभी मरते नहीं हैं, नेता जी भी भारतियों के दिलों में प्रेरणा के श्रोत बनकर आज भी अजर अमर हैं ! उनका दिया हुआ नारा “जय हिन्द” हमारा सिम्बल बन गया है !
बचपन में मैंने नेता जी सुभाष चन्द्र की फौजी कमांडर छवि अपने दिल में उतर ली थी ! मेरे मामा जी स्वयं एक स्वतंत्र सेनानी थे और उनके घर पर नेति जी की फोटो टंगी रहती थी ! मैंने बचपन मामा जी के सानिध्य में बिताया, अपने मामाकोट से देवीखेत स्कूल पढ़ने के लिए जाता था ! सन १९४७ में आजादी के दिन हम सारे बच्चे स्कूल के आँगन में स्वतंत्रता दिवस की ख़ुशी में जश्न मना कर रात को अपने सोने के स्थान पर आ रहे थे ! स्कूल से यह जगह करीब दो सौ गज दूर थी लेकिन स्कूल और हमारे सोने के स्थान के बीच एक उभरी हुई छोटी सी पहाड़ी थी जिससे एक स्थान से दूसरा स्थान दिखाई नहीं देता था ! उन दिनों बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी, रास्ते भी ऊँचे नीचे टेढ़े मेढ़े होते थे ! दिन में तो इन रास्तों पर हम बच्चे भाग भी लेते थे लेकिन रात को एक तो अँधेरा दूसरा पहाड़ी टेढ़ मेढ़ा रास्ता, चलने में बहुत मुश्किल होती थी ! उस दिन आसमान बादलों ढका हुआ था, बादल गरज रहे थे बारिश भी शुरू हो गयी थी, अचानक जोर से बिजली चमकी और उस कड़कती बिजली की रोशनी में मुझे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस स्पष्ट नजर आये, वही फौजी कमांडर की वर्दी में, सर पर टोपी, कन्धों पर ताज, सीने पर मैडल साफ़ सुथरी चमकती ड्रेस बड़े बूट फौजी अंदाज में सलूट करते हुए ! उन दिनों मैं चौथी क्लास में पढ़ रहा था ! आज उन बातों को यद्यपि साढ़े ६५ साल हो चुके हैं लेकिन नेता जी की वह छवि जो मैंने उस चमचमाती हुई बिजली की रोशनी में देखी थी दिल में ज्यों की त्यों अंकित है ! मैं सोचता हूँ की ठीक वैसे उनकी वह आकर्षक छवि उन तमाम देश के सच्चे नागरिकों, देश प्रमियों के दिलों में भी अंकित होगी ! एक सच्चे देश भक्त को उनके ११६ जन्म दिन पर कोटि कोटि “जय हिन्द, जय भारत ” !
जव तक विश्व पटल पर भारत का नाम रहेगा नेता जी शुभाष चन्द्र बोस का नाम भारत माता के साथ जुड़ा रहेगा ! हरेन्द्र सिंह रावत
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