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हाँ, अन्ना हजारे ने पिछले पांच सालों से केन्द्रीय सरकार पर दबाव बनाया हुआ था एक ऐसा लोक पाल बिल लाने के लिए जिसके तहत केन्द्रीय और राज्य सरकारों के प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्री सहित पूरा मंत्री मंडल नौकरशाह, सरकारी निधि से वेतन भता लेने वाले शासन चलाने वाले तीनों घटक, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, तमाम जांच एजेंसीज, आयकर विभाग, पुलिस अधिकारी रैंक एंड फाईल सारे लोक पाल के जांच के दायरे में लाए जा सकें ! देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए ऐसा बिल लाना बहुत जरूरी हो गया है ! अन्ना जी ने देश व्यापी आन्दोलन चला कर, आमरण अनसन करके दबाव बनाया था ! सरकार ने, मंत्रियों ने और पार्टी प्रमुखों ने अन्ना जी को विशवास दिलाया था की सरकार मौजूदा लोक पाल बिल में संशोधन कर रही है और सरकार की कोशीश होगी की जो संशोधित जन लोक पाल बिल लाया जाएगा वह जनता के हक़ में होगा ! इस बिल के जरिये देश में भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाएगा, रिश्वत खोरी, जमाखोरी, विदेशी बैंकों में काला धन के धन कुबेरों के ऊपर कानूनी शिकंजा कसा जाएगा ! लेकिन कैबिन ने जिस लोक पाल बिल को मंजूर किया है वह तो वही ढाक के तीन पात, खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ हो गयी ! अन्ना जी न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी ! केन्द्रीय सरकार ने जो बिल तैयार किया है उससे तो यह लगता है की यह बिल उस राजा ने अपनी जनता के लिए तैयार किया है राज तंत्र तरीके से शासन चलाता है और उसके अधिकार असीमित है, जब तक जिएगा सता का सुख भोगेगा और अंत समय में राज्य की बाग़ डोर अपनी संतान के हवाले कर देगा ! इसमें जनता का सरकार बनाने और बिगाड़ने में कोई भूमिका नहीं रहती ! मौजूदा केन्द्रीय सरकार को लगता है की जनता उनके राज में सुखी हैं, सुरक्षित हैं, सब तरीके सम्पन हैं, खुश हैं ! नारी सुरक्षित हैं, बुजुर्ग लोग सुरक्षित हैं और फ़ाइनेनसियलि मजबूत हैं, सबको रोटी कपड़ा और मकान मिले हुए हैं, सारी जनता गरीबी लाईन से ऊपर उठ गयी है, पानी, बिजली जनता की आपूर्ति के लिए काफी है ! सडकों की दसा अच्छी हैं ! राज्य सरकारों ने आवा गमन के साधनों में बहुत इजाफा किया है ! ट्रेनों का किराया सस्ता है, पेट्रोल डीजल,गैस सस्ती हैं, बाजार सस्ता है ! ससारे बच्चों को शिक्षा का अधिकार दे रखा है, स्कूल चलाने वालों को फीस घटाने बढाने, किसको दाखिल देना है, किसको नहीं देना है, उनको पूरा अधिकार दे रखा है ! फिर भला जनता ऐसी सरकार को न चुन कर दूसरे नव सिखों को क्यों वोट देगी ?
इस बिल कि खासियतें हैं की “सियासी दल और धार्मिक संस्थाएं लोकपाल बिल से बाहर हैं” ! असली भ्रष्टाचार की जड़ तो यहीं से फलती फूलती हैं ! सीबी ई सरकार के नियन्त्र में ही रहेगी ताकि जांच कार्य में सरकार अपनी मर्जी से इस एजेंसी का इस्तेमाल कर सके ! लोकपाल के पास सीबीई अफसरों को हटाने का अधिकार नहीं है, शिक्षा संस्थाओं के खिलाफ भी जांच नहीं कर सकता ! सी बी ई के निदेशक की नियुक्ति में भी वह दखल नहीं दे सकेगा ! इसका मतलब वह केवल एक “गोबर
गणेश ” बन कर केन्द्रीय और राज्य सरकारों के इशारों पर नाचेगा ! क्या गजब की खोपड़ी पायी है उन महान भावों ने जिन्होंने इस लोक पाल बिल की रूप रेखा तैयार की है ! जनता को उन्हें माला पहिनाकर उनकी चालीस का पाठ चाहिए और उन्हें साधुवाद कहना चाहिए ! इसका जबाब तो चुनावों में अब जनता ही देगी ! जन्ताजनार्दन की जय हो ! हरेंद्रसिंह रावत
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