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दो कवितायें

jagate raho
jagate raho
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सर फोड़ने की तम्मना अब हमारे दिल में है,
देखना मजबूत कितना खोपड़ी शातिर में है,
देश भारत भारती है इसका हमको है नाज,
सर लाएंगे दुश्मनों के रोकना हमको न आज,
शिव का तांडव करेंगे दुश्मनों के देश में,
ये दुश्मन शैतान है आदमी के भेष में,
ले हथौड़ा हाथ में बदला ये सर को फोड़कर,
बर्बरता की है जिन्होंने उनकी गरदने तोड़कर,
आतंकियों के सर कलम करने की तम्मना दिल में है,
देखना मजबूत कितना खोपड़ी शातिर में है !
(१)

जिंदगी के दिन गुजार लो !
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो,
आत्मा को शुद्ध कर तन बदन सुधार लो !
शुद्ध कर्म ही तुम्हे आदमी बना गए,
ऊपर की सीढियां हैं जन्नत के लिए,
चढ़ सको इन सीढ़ियों में सेवा का मोल दो,
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो ! १ !

दुष्कर्म करने वाले कुते सुवर बने,
उल्लू की योनि है सूखे तने,
नाली के कीड़े हैं दुर्जन हत्यारे,
डाकू लुटेरों ने निर्दोष हैं मारे,
दुष्टता के दलदल से अपने को बचा लो,
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो ! २ !

चार दिल की चांदनी फिर अँधेरी रात है,
गर्मी पड़ेगी तो ही बरसात है,
सूखे पत्ते की तरह आत्मा उड़ जाएगी,
भाई बंधु किसी को भी नजर नहीं आएगी,
सेवा शुभ कर्म के मर्म को पहिचान लो,
मस्तराम बनके जिन्दगी के दिन गुजार लो ! ३ !

अपने गिरहवान में कर्म नजर आएँगे,
पापकर्म सर की गठरी बन जाएंगे,
चेहरा अफराध का स्वयं नजर आएगा,
यमदूत स्वयम ही हथकड़ी पहिनाएगा,
गुनाहों से बचने की राह ढूंढ लो,
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो ! ४ !

तुझको नहीं पता खाना क्या खा रहा,
सोने की टेकडी में गीत गा रहा,
भाग्य की रेखा में राहू आ गया,
ज्योतिषी तुझे कल ही बता गया,
वक्त है अभी भी बिगड़ी संवार लो,
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो !
आदमी हो आदमी की फितरत पहिचान लो,
मस्तराम बनके जिंदगी के दिन गुजार लो ! ५ !
हरेंद्रसिंह रावत ( २ )

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