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क्या आप अपनी बीबियों को खुश रखते हो या रोज डाट खाते रहते हो ?

jagate raho
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क्यों मेरे यार आज बदले बदले नजर आ रहे हैं, आज कुछ हुआ जरूर है, दिल में छिपा रहे हैं !
लेकिन भई आप ऐसे ही थोड़े मानेंगे, आप मानो या न मानो, हमने भी दुनिया देखी है, ये बाल जो मेरे सिर में सफ़ेद नजर आ रहे हैं ये धूप में सफ़ेद नहीं हुये हैं बल्की दुनिया को बहुत नजदीकी से देखने पर, बुजुर्गों की सारी हरकतों को स्टोर करने में, इन महान भावों के चहरे को पढ़ने में जो आँखें कानों दिल और दिमाग पर जोर डाल कर अपनी जवानी अनर्जी वेस्ट की है, यह सब उस तजुर्बे का नतीजा है ! आज आप का चेहरा लटका हुआ है, आखिर क्या बात है ? कहते हैं दिल का दर्द और सिर का बोझ दोस्तों के साथ शेयर करने पर कम होता है और खुशी बांटने पर बढ़ती है ! आपके चहरे की रंगत बता रही है की या तो आप बीबी की झिड़की खाकर आये हैं, या फिर कोई जबरदस्त नोक झोंक हुई है ! अरे विश्वास ही नहीं भरोषा कीजिये हम पर, आपका राज राज ही रहेगा, हम मैडम को कुछ नहीं बतलाएंगे ! “लाख छुपाओ छूप न सकेगा राज हो कितना गहरा, दिल का हाल बता देता है असली नकली चेहरा” ! ख़त का मजनूम भांप लेते हैं लिफाफा देख कर, दोस्त का दर्द जान लेते हैं चक्षु चक्षु से टेक कर ! चलो आप तो नहीं कहेंगे, लेकिन भाई जान हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, बाल की खाल निकालना हमें भी आता है, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक आपके चेहरे के उड़ते हुए रंग का पता नहीं लगा लेते !
चलो आप मत कहिये, हम ही अपनी आप बीती बयान कर लेते हैं ! तो पाठको, साथियो, जब सुबह हमारी आँखें खुली और हमने अपनी आदत का साथ देते हुए आँखें खोलते ही सर्व प्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन किये, साथ यह श्लोक भी मुंह के भीतर भीतर गुनगुनाया, “कराग्रे लक्ष्मी बसती, कर मध्ये सरस्वती, कर मूले स्तिथो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम” !
कीचन में जोर से चिमटा बजा ! हमारा दिल भीतर तक हिल गया, हमारे कीचन का चिमटा बजना कोई संयोग नहीं है, यह जब चाहे अपनी मर्जी से कभी नहीं बजता बल्की कुछ विशेष अवसरों पर बजता है, और आज ‘शिवरात्री’ का पर्व है, हमें अपनी प्रिय पत्नी को मंदिर ले जाना था और हमने उन्हें पूर्ण आश्वस्त कर दिया था की ‘हम सुबह सुबह आपको शिव मंदिर लेके जाएंगे !’ चिमटा ज्यों झनझनाता हुआ बजा हमारी नजर घड़ी पर टिक गयी, ओह ! आज ये क्या होगया, मेरी आँखें तो रोज चार बजे खुल जाती थी फिर आज पांच कैसे बज गए ! साथ ही कीचन से बीबी की आवाज आ रही थी, ‘अरे सुनते हो, सुनते नहीं, अरे क्या कानों में रूई ठूस रखी है, टाईम होगया और पति देव को खबर ही नहीं, नहीं जाना था तो कल ही बता देते, मैं स्वयं ही चली जाती ! अब तो चिमटा बजाना ही पड़ेगा, वैसे नन्ने बच्चे उठ जाएंगे, इसलिए डरती हूँ, लेकिन दूसरा कोई आप्शन भी तो नहीं है, कुम्भ करण की नींद में सोते हैं, खुरांटे भरते हैं, आदि आदि’, मिट्ठी मिट्ठी आवाजें आ रही थी ! जल्दी से उठा और एक सच्चे पत्नी भक्त की तरह बाथ रोम गया, जल्दी जल्दी दो बड़े मग पानी के सिर पर डाले और कपडे बदली किये, एक सच्चे पति की तरह कीचन में पत्नी के आगे खड़ा हो गया ! ‘तुम इतनी जल्दी तैयार हो गए, चलो उठाओ ये पानी की डोली, दूध की थैली,
अगरबत्ती, धूप का पैकेट, बेल पत्र, नारियल, रोली, मोली और याद आ जाय तो और भी पूजा की सामग्री लेकर चलो, मैं पीछे पीछे आ रही हूँ ‘ ! मैंने सारा सामान उठाया और अक्षर अक्षर पत्नी द्वारा कहे गए शब्दों पर अमल करते हुए कदम ताल करते हुए पत्नी के आगे आगे चलने लगा ! ‘जल्दी जल्दी कदम बढ़ाओ, फौजी हो क्या ड्रिल भूल गए !’ हमें जोश आगया और तेज कदम बढाते हुए चलने लगे, अरे ठहरो, मैं भी साथ चल रही हूँ, आपकी पत्नी, मैं फौजी नहीं हूँ, जरा धीरे चलिए !’ सोचता हूँ, कमाल है, न तेज चल सकता हूँ, न नार्मल ! मैंने दिमाग का कंप्यूटर आन किया जरा जोर डाला, जल्दी याद आ गया, किसी महान पत्नी भक्त के ये शब्द याद आ गए !
“अगर जीवन सफल बनाना है
अच्छा समय बिताना है,
मेरी एक बात मानो
पत्नी को पैगम्बर जानो !
छोडो पास पड़ोसी को,
छोडो रावत जोशी को
बन्धु बांधवों को छोडो,
छोडो सगी मौसी को !’
और यही सन्देश मैं अपने हम उम्र वालों को भी देना चाहता हूँ ! जब बीबी बोले ‘इधर आओ,’ जल्दी हाजिर हो जाओ, कहे ‘जाओ,’ छू मंतर हो जाओ ! भूल चूक लेनी देनी, ओके टाटा फिर मिलेंगे अगले प्लेटफार्म पर ! हरेंद्रसिंह रावत

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