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लड़ता हूँ एक जंग रोज

jagate raho
jagate raho
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लड़ता हूँ एक जंग रोज, करता हूँ खोज,
मनाने मौज, रास्ता भटका बदला पोज,
यहाँ पुलिस के डंडे जनता के सिर फूट रहे थे,
नेता जनता को लूट रहे थे !
ये कैसी जंग है जिसका न कोई रंग है,
फिर भी लड़ता हूँ, दुश्मन है अनजान,
जिससे न कोई पहिचान,
ये कभी पीछे से वार करता है,
आतंकी बन कर मारता है,
मंहगाई का डंडा घुमाकर,
जनता को तड़पा कर,
रोज एक नया दुश्मन खडा हो जाता है,
ऊपर वाले का प्रतिनिधि बतलाता है,
निर्बल असहाय को मार कर फिर, d
फांसी पर चढ़ जाता है,
नेता नौकरसाह रिश्वत के लिए हाथ बढाता है,
गरीब के खून पशीने पर भी नजर लगाता है,
ऊँचे महलों में मखमल की शैय्या भरा परिवार
भाई भतीजा, सुरक्षा कर्मी डाले हथियार,
जाम पे जाम चढ़ाता है, पर बेचैन सो नहीं पाता है,
ऐसे शैतानों से हर नुकड़ पर टक्कर हो जाती है,
इन्हें देख इंसानियत भी शर्माती है !
साथी कहते हैं, क्यों इनके दुष्कर्मों पे नजर लगाते हो,
अपना ब्लड प्रेशर बढाते हो,
ये तो अपने पापों के बोझ तले दम तोड़ रहे हैं,
किसी नरक कुण्ड में आरक्षण खोज रहे हैं,
लेकिन मैं तो अपने अभियान पर निकला हूँ,
इंसान के गिरते हुए चरित्र पर विचार करता हूँ,
इसी पर कर रहा खोज, हर पल हर रोज !
मेरी मानों छोडो मौज पकड़ो फ़ौज,
देश सेवा का मौक़ा मिल जाएगा,
जिन्दगी बदल जाएगी, देश सुधर जाएगा !
भ्रष्ट दुराचार किसी अंधेरी गुफा में मुंह छुपाएगा !
हरेंद्रसिंह रावत

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