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हम वो बला हैं जो दुश्मन के गुलशन को सुखा देते हैं,
यारों के यार वीरान पड़े रेत में फूल खिला देते हैं,
हमारी तो यारो अपनी पहिचान है की रेगिस्तान में
भी दरिया बहा देते हैं !
नेता जी को वोट देते हैं बदले में पूछ लो उनसे
कुछ भी नहीं लेते हैं !
कमलके फूल कीचड़ में खिलते हैं,
गुलाब कांटे में निकलते हैं,
एक हम हैं जिन्हें देख भ्रष्ट भी बिलखते हैं,
बिना गरमी के भ्रष्ट नेताओं के दिल सुलगते हैं,
हम कहते हैं करते हैं हवावोंका रुख बदलते हैं,
इसीलिए बलात्कारी रिश्वतखोर पतली गली से निकलते हैं !
गरीबों के गिरते रक्त से जिनके महल बनते हैं,
जिनकी बेगमों के हाथों सोने की चूड़ियां खनकती हैं,
जिनके बंगलों में गुंडे पनपते हैं,
सोने चांदनी के सिक्के खनकते हैं,
इनके घरों से हवाला की नदी निकलती है,
काले धन की बोरियां विदेशी बैंकों की तरफ खिसकती हैं,
सरकार की नज़रों से तो बचते हैं,
पर भय्या यमराज के डंडे से तो वे जालिम भी डरते हैं,
धर्मराज की निगाहों से डरते हैं,
इसलिए रोज सिसकारियां भरते हैं,
एक एक कदम मृत्यु की ओर खिसकते हैं,
जानते हुए भी अँधेरे अँधेरे में काला धंधा करते हैं !
इन्हीं दरिंदों के रक्त को हम पानी बना देते हैं,
हम वो बला हैं दुश्मन के गुलशन को सुखा देते हैं,
की रेगिस्तान में भी दरिया बहा देते हैं !
हरेंद्रसिंह रावत
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