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बात बहुत पुरानी नहीं है बीसवीं सदी की है ! जब पहली बार महात्मा गांधी जी देश की आजादी के लिए अकेला चले थे, इस नारे के साथ, “साथ नहीं कोई तो चलो अकेला ही चलो पर चलो” ! वे चलते रहे लोग एक एक करके जुड़ते गए, कुछ सच्चे मन से देश के प्रति सच्ची श्रद्धा के साथ ! कुछ इस भाव के साथ हुए की अगर कामयाब होगये तो बल्ली बल्ले और न हुए तो अंग्रेजों के पाँव पहले भी दबाते थे अब जरा जोर से दबा देंगे ! कुछ ऐसे लोग थे जो “बैठे ठाली, देते थे पड़ोसी को गाली “, चलो इस संग्राम में कूद पड़ते हैं, ज्यादा से ज्यादा पुलिस की एक दो लाठी खा लेंगे वैसे भी रोज लाठी तो खाते ही हैं, स्कूल में जाते नहीं, मास्टर जी पढ़ाते हैं, न पढ़ने वालों से लकड़ी पानी भरवाते हैं ! काम न करने पर मास्टर जी की बेत, लात घूंसे मार खाते हैं ! घर में खेतों में जाकर भी काम नहीं कर पाते पापा की डाट खाते हैं, वह भी किसी पुलिस की लाठी से कम नहीं पड़ती ! अगर आन्दोलन कामयाब होगया और देश गुलामी की जंजीर तोड़ने में कामयाब होगया तो फिर क्या कहने “दोनों हाथ घी में और सर कडाई में होगा, अगर अपने मकसद में फेल हो गए तो ज्यादा से ज्यादा जेल चले जाएंगे, राजनीतिक कैदी कहलाएंगे ! अरे रोटी तो मिलेगी, वहां जेल सुरक्षा कर्मियों की सर की मालिस करेंगे” “सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए, आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए, काहे घबराए”, गाना सुना देंगे फोल्डिंग चमचा बनकर अपना हुनर दिखा देंगे ! इस तरह लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया !
ऐसे ही एक मुफ्तखोर, कामचोर, स्कूल मास्टर द्वारा प्रताड़ित लड़का जिसका नाम “खजूरासिंह झटपट” था इस संग्राम में सामिल होगया! इन स्वतंत्रता सैनानियों के ऊपर जब पुलिस के नादिरशाही डंडे बरसते थे तो यह खजूरासिंह किसी भारी भरकम सेठ की बगत में छिप जाता था, सेठ डंडा खाता था ‘केवल अपने देश के लिए और खजूरा अपनी खोपड़ी बचाता था यह कह कर की “सलामत रहूँगा तो मैं तैयार रहूँगा घायलों को उठाने के लिए” ! जब भी पिटने की बारी आती थी खजूरासिंह कहीं नजर नहीं आता था, लेकिन नास्ता, लंच, टी और डीनर से कभी गैर हाजिर नहीं होता था ! आखिर आजादी मिल गयी और खजूरा सिंह प्रमुख स्वतंत्र सेनानियों में स्थान पा गए ! इसके पीछे भी खजूरासिंह ने एक चाल चली की खजूरासिंह नाम का एक और सकिय स्वतंत्र सेनानी था, वह हमेशा आन्दोलन के सक्रिय संचालक के साथ रहता था, हमेशा उनकी छाया बनकर, ढाल बनकर, अपने सरदार पर पड़ने वाले डंडों को अपने ऊपर ले लेता था ! उस की बदकिस्मती थी की उसका चेहरा मोहरा इस खजूरा सिंह के साथ मिलता जुलता था ! और एक दिन अचानक सरदार का वफादार सहयोगी खजूरासिंह गायब हो गया ! कैसा हुआ, क्यों हुआ किसी को कुछ भी पता नहीं ! मजे की बात यह की कोई भी यह नहीं जान पाया की कर्मठ, सच्चा सेनानी, आन्दोलन कारियों का सहयोगी खजूरासिंह अब नहीं रहे वे तो इस खजूरासिंह झट पट को ही असली सहयोगी समझने लगे ! स्वतंत्रता मिली और आन्दोलन के वरिष्ट सरदारों की कृपा से और छत्र छाया से यह खजुरा झट पट प्रथम श्रेणी के नेताओं में आगया ! ताम्र पत्र, पेंशन और वे सारी सुविधाएं इस कामचोर चमचे को मिल गयी ! असली खजूरासिंह वरिष्ट स्वतंत्र सेनानियों के साथ बहुत बार जेल भी गया था जब की इस खजूरासिंह ने कभी जेल देखी भी नहीं और उसका श्रेय बटोरने के लिए आगे आ गया ! जब ग्रह दृष्टि सही पड़ती है तो शनि राहू केतु भी सकारात्मक योग का आभास कराती हैं ! समय का चक्का घूमता रहा, खजूरासिंह झट पट एमएलए बने, एमपी बने मंत्री बने, सरकार को खूब लूटा, खूब घोटाला किया, मंत्री की कुर्सी का भरपूर फायदा उठाया ! लेकिन सब दिन एक समान नहीं रहते, ग्रह बदलते हैं, ग्रहों की चाल बदलती हैं, खजूरासिंह झटपट अब बूढ़े हो गए ! उन्हें एक बड़े समारोह में विदाई दी गयी, उन्हें राजनीति से अवकास दिया गया, न चाहते हुए भी उन्हें कुर्सी छोड़नी पडी ! अपने कार्य काल में उनहोंने बड़े बड़े पाप किये, किसानों की जमीनों पर जबरदस्ती कब्जा करवाया, गरीबों की झुग्गी झोपड़ियां उजाड़ी वहां आलीशान बिल्डिंगे बनाकर करोडो कमाया ! बंगला देशियों, पाकिस्तानियों को जो गैरकानूनी तौर पर यहाँ रह रहे थे उनसे बड़ी २ रकमें लेकर उनका राशन कार्ड, वोटर कार्ड बनाकर उन्हें झोपडी तक अलॉट करवा दी ! कुछ आतंकवादियों, नक्शल पंथियों से भी सांठ गाँठ थी ! सुरक्षा कर्मियों के पास प्रूफ होने के बावजूद वे कुछ नहीं कर पाते थे क्योंकि खजूरासिंह झटपट धरती पर रहते हुए भी हमेशा आसमान की ऊंचाइयों में लटके रहते थे ! राजनीति से संन्यास लेने के साथ ही वे धरती पर उतर आए !
अब उनके पास सब कुछ था, धन था, इज्जत थी, ऊंची ऊंची मल्टी स्टोरीज बिल्डिंग थी, बाग़ बगीचा, खेत खलियान, सजासजाया आशियाना जिसमें स्वीमिंग पूल, कलब, टेनिस और बास्केट बौल ग्राउंड था ! नौकरों और सुरक्षा कर्मियों की फ़ौज गेटों पर तैनात थी ! और अचानक उसी दिन रात को उन्हें दिल का दौरा पड़ गया ! रातों रात उन्हें अस्पताल भरती करवाया गया ! दवा दारु इंजेक्शन दिए गए ! दिल की धड़कन तो शांत होगई लेकिन अगले दिन सबेरे उनके सारे बदन पर बड़े बड़े फोड़े निकल आये ! सारा बदन अंगारों की तरफ जलने लगा ! कोई भी दवा इंजेक्शन कारगर नहीं हो पा रहा था ! अब उन्हें बेहोशी आने लगी ! अस्पताल से उन्हें छुटी दे दी गयी ! अब वे मखमली गदों में पड़े पड़े चीखते चिल्लाते रहे, कभी कभी भूत भूत बडबडाते रहे ! जब तक मूर्छा में रहते शांत रहते होश में आते भूत भूत चिल्लाने लगते ! और साल भर तक दैशत गर्द जिन्दगी का बोझ ढोते ढोते एक दिन के लिए वे होश में आए, अपने निजी वकील बुलवाए, मीडिया के प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकारों को भी बुलवाया गया, उन सबके सामने अपने किये कुकर्मों का चिठ्ठा सबके सामने खोल दिया की किस तरह उसने स्वतंत्र सेनानियों के प्रमुख के ख़ास वफादार, ईमानदार खजुरासिंह का अपहरण कराकर के जो उसके हमशक्ल था, उसको सदा के लिए अपने रास्ते से हटाया और किस तरह सच्चे देश भक्त आन्दोलन कारियों का विश्वास पात्र बना ! अब तो इनकम टैक्स वाले, हाउस टैक्स वाले, बैंक के अधिकारी, जिन बैंकों से बड़ी राशि लोन ले रखा था लेकिन कर्ज की किश्त भी अदा नहीं की वे सारे गेट पर खड़े थे ! उसके दो लडके थे, दोनों को पढाई के लिए विदेश भेजा था वे वहीं के हो गए ! सारे नौकर, सुरक्षा गार्ड, रसोइया, माली, सफाई कर्मचारी धीरे धीरे खिसकने लगे ! उसकी देखभाल करने वाली एक मात्र उसकी जीवन संगिनी ने भी एक दिन आत्म ह्त्या कर दी ! अब वह सजी सवंरी महलनुमा कोठी भूत महल बन कर रह गयी ! वह मरना चाहता है लेकिन मौत आकर चली जाती है की “तुमने अपनी जिन्दगी में सबसे लिया ही लिया है किसी को एक टुकड़ा रोटी का भी नहीं दिया फिर वहां भी भूखा प्यासा रहेगा, अच्छा है यहीं कुछ दिन और तड़पो ” ! और एक दिन सुबह सुबह घूमने वाले लोगों ने देखा की सड़क किनारे एक लावारिस की लाश पडी है, पुलिस को खबर की गयी, अत पता न होने से उसे लावारिस श्रेणी में डाल कर नगर पालिका और पुलिस वालों ने उसे जला दिया ! बाद में पता चला की वह तो खजुरासिंह झट पट पूर्व नेता मंत्री था ! हरेंद्रसिंह रावत
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