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मैं स्वरों से स्वर मिलाता हूँ,
जीवन आसान बनाता हूँ,
बीमार पड़े हर मानव को,
इक नया सन्देश सुनाता हूँ !
फिर भी पूछ रहे हो यारो,
मैं यहाँ पर क्यों आता हूँ !
तन मन के कुछ गुर बतलाने,
बाहर भीतर को चमकाने,
हैवान को इंसान बनाने,
दुर्जन, दुश्मन शैतानों को
राह असली दिखलाने,
काँटों पर चल कर हर राह को
आसान बनाता हूँ,
मैं स्वरों से स्वर मिलाता हूँ,
जीवन आसान बनाता हूँ ! १ !
मैंने हर चहरे को देखा,
हर हाथ पर की जीवन रेखा,
और पढ़ा मैंने उसको भी
चित्र गुप्त ने कलम से लेखा,
पांच तत्व की पांच उंगलियाँ,
इनकी पहिचान कराता हूँ,
मैं स्वरों से स्वर मिलाता हूँ,
जीवन आसान बनाता हूँ ! २ !
तुम स्वयं ही वैद्य हो अपने,
तन की अपनी पहिचान करो,
दुःख दर्द तो आते जाते हैं,
तुम घबराया नहीं करो !
हैं अंगूठे दोनों हाथों के,
अग्नि तत्व कहलाते हैं,
दाब अंगूठे से तर्जनी,
वायु रोग डर जाते हैं !
अंगुली मध्यमा आकाश तत्व है,
कानों का दुःख दूर करे
पृथ्वी तत्व है अनामिका में
उदर शत्रु डर डर के मरे !
अंगूठे से दब जाय अनामिका
सूर्य मुद्रा बनजाती है,
कब्जियत हो या बद हजमी
उदर से दूर भगाती है,
वजन घटता फैट मिटाता,
पाचन क्रिया बढ़ जाती है,
तनाव कम कालेस्ट्र घटता,
नयी अनर्जी आती है !
कनिष्ठा अंगुली दबने से
वरुण मुद्रा बन जाती है,
रूखापन तन से हट जाता,
चमक चमड़ी में लाती है !
अंगुली मुद्रा कहते इसको
जीवन स्वस्थ बनाते हैं,
इस ज्ञान को जो भी जाने
स्वयं वैद्य बन जाते हैं !
प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा
करे जन जो इनका अभ्यास
लिंग मुद्रा ध्यान मुद्रा,
करदे तन रोगों का नाश !
मानव मानव में प्रेम बढेगा,
रहेगी चहरे पे मुस्कान
दुःख दर्द जब नहीं रहेगा
जीवन पथ होगा आसान !
इसी योग की जन जन को
पहिचान कराता हूँ,
जीवन आसान बनाता हूँ ! ३ !
हरेंद्रसिंह रावत
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