jagate raho
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खुली सड़क पर चलते चलते
मिले लोग हजार,
कोई नेता अभिनेता थे,
या गरीब लाचार,
या गरीब लाचार
सारे दौड़ लगाते थे,
मंत्री संतरी सारे मिलकर,
गरीबी को भगाते थे,
कहे रावत कविराय
ये कैसे प्रभु की माया है,
कही बार भगाया गरीब को
घूम फिर वहीं पर आया है ! १!
एक सिक्के के दो पहलू हैं
अमीर गरीब ये लोग,
एक उड़ता नील गगन में
दूजा पाले रोग,
दूजा पाले रोग,
गरीब मजदूर कहलाता है,
अमीरों के घर भरता,
स्वयं भूखा रह जाता है !
अमीर गरीब की रस्सा कस्सी
निर्धन फिर भी जी रहा है,
इर्षा लालच रौब अमीर का
नींद भी उसकी छीन रहा है ! २ !
हरेंद्रसिंह रावत
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