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ऐसी तोहमत न मुझ पे लगा !

jagate raho
jagate raho
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गैरों से मोहब्बत अपनों से दगा, ऐसी तोहंत न मुझ पे लगा !
सभी तो हैं अपने न कोई पराया, दिलों की दूरी ये किसने बढाया,
मेरे लिये तो सभी हैं सगा, फिर मैं किसी को क्यों दूंगा दगा !
गैरों से मोहब्बत अपनों से दगा , ऐसी तोहमत न मुझ पे लगा !

कुदरत ने सुन्दर सी दुनिया बनाई, हर रंग से ये बगिया सजाई,
नदियों की कल कल में संगीत जोड़ा, चिड़ियों का स्वर पर थोड़ा थोड़ा !
मैं भी कहीं से गुलशन में आया, एक पुतला हूँ मैं कुदरत का बनाया !
मकशद मेरा मैं खुशियाँ बिखेरूं, मुस्कान से हर चेहरा पखेरूं !
छाया बरगद की सभी को मिले, महके ये आँगन कलियाँ खिले !
पर्वतों से टकराती हुई ये हवा, संजीवनी जैसी यहीं है दवा !
बांटे जो खुशबू सभी को यहाँ, धरती से अम्बर मिलता जहां !
यहीं आके अपनों ने मुझको ठगा, बुझा बाण मेरे दिल पे लगा !
गैरों से मोहब्बत अपनों से दगा, ऐसी तोहमत न मुझपे लगा !
(हरेंद्रसिंह रावत – अमेरिका से )

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