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एक सैनिक की आखरी चिट्ठी माँ के नाम (१९६५ की एक सच्ची कहानी, पात्र काल्पनिक है(

jagate raho
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मेरी सबसे बहादूर, दिलेर, दिल में करुना और असीम प्यार का भंडार लिए हुए माँ, कोटि कोटि प्रणाम ! माँ कहाँ गया वो बचपन, तेरे स्नेह की छत्र छाया में कभी रूठना कभी मचलना, होम वर्क से जी चुराना, चोरी पकडे जाने पर माँ के आँचल में छिप जाना ! प्रेम से झिडकना, रूठने पर मनाना, माँ समय पंख फैला कर बहुत जल्दी उड़ गया ! कब प्राइमरी से हाई स्कूल और फिर कालेज ! माँ उन दिनों तुम वीरों की कहानियाँ सुनाया करती थी, एक वीर सैनिक के कारनामो को इस तरह सुनाती थी की मैं जोश से भर जाता था और उसी समय सैनिक बनने की इच्छा जाग उठती थी ! और वह दिन भी आया जब मैंने कमीशन लेकर इस बटालियन में आकर अपने को देश की सेवा के लिए समर्पित किया ! माँ जब मैं छुट्टी से वापिस अपनी ड्यूटी पर आ रहा था तो तेरे चरणों की धूलि मैंने अपने मस्तक का चन्दन बना लिया था, तथा कुछ पद धुली एक पुडिया में बंद करके अपनी वर्दी की जेब में रख ली थी ! माँ मुझे पता था की शायद मैं इन चरणों को स्पर्श करने का शौभाग्य दुबारा नहीं कर पाउँगा ! इसका कारण था, जब मैं यूनिट से छुट्टी आ रहा था तो हमें आगाह किया गया था की बटालियन चंद दिनों में बैटल ज़ोन में जानी वाली है और हमें एक बहुत भारी जिम्मेदारी दी जानी वाली है, पाकिस्तान सीमा पर अपनी सैना की संख्या में इजाफा कर रहा था और सीमा पर रोज गोली बारी हो रही थी, लगता था देश के ऊपर एक और युद्ध थोपा जाने वाला है ! पाकिस्तान के मनसूबे कभी भी अच्छे नहीं रहे थे ! माँ आज वह दिन आ गया है, पाकिस्तान ने देश की सीमाओं को पदद्वलित कर दिया है और लड़ाई का बिगुल बज चुका है ! aब हमें अपने देश की आन, बान और शान की रक्षा करनी है ! आज रात को मेरी बटालियन को पाकिस्तान की एक मजबूत पोस्ट पर अटेक करके उस पर अपना तिरंगा लहराने की जिम्मेवारी मिली है ! माँ मेरे बटालियन कमांडर ने मेरी योग्यता और वीरता पर भरोषा करके बटालियन और रेजिमेंट के नाम को और रोशन करने के लिए मुझे अपनी काबलियत दिखाने का अवसर दिया है ! उनहोंने सब अधिकारियों के सामने मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझ से कहा, “देखो, वीर बिक्रांत सिंह, मैं पूरे भरोषे और विश्वास के साथ तुम्हे इस विशेष महत्वपूर्ण मिशन पर भेज रहा हूँ ! यह केवल बटालियन रेजिमेंट और आर्मी के मान समान तक सीमित नहीं है बल्की यह हमारे देश की इज्जत, गौरव और अभिमान का प्रश्न है ! यह कार्य बहुत कठीन जरूर है लेकिन असंभव नहीं है ! हो सकता है इस मिशन को फलीभूत करने के लिए बटालियन को कही रत्न बिखेरने पड़ेंगे लेकिन आखीर जीत हमारी ही होनी चाहिए ! मेरे विश्वास और भरोषे को तोड़ मत देना !” माँ मैंने उसी समय अपने मन में फैसला कर लिया था कि मैं अपने कमान अधिकारी के विश्वास और भरोषे को किसी भी कीमत पर टूटने नहीं दूंगा और जीत हासिल करके उनके अरमानो को पूरा करूंगा ! रात के अँधेरे में मैं अपनी यूनिट का नेतृत्व करने के लिए सबसे आगे रहूँगा ! सैना में सर्व गुण सम्पन कमांडर वही होता है जो रण क्षेत्र में अपने जवानों के रक्त को कम से कम गिरने देता है ! दुश्मन की जिस पोस्ट पर हमने अटेक करना है वह काफी ऊँचाई पर है और लोहे की कंटीली तारों और सुरंग फिट सुरक्षित है ! दुश्मन के बंकर बहुत मजबूत हैं और वे आधुनिक हथियारों से लैस हैं ! दुश्मन ने बंकर के भीतर से गोली बारी करनी है और हमने लोहे की कंटीली तारों को काट कर सुरंग लगी रास्तों को साफ़ करके सुरंगों को ध्वंस करते हुए आगे बढना है ! दुश्मन की ये पोस्ट हमारी पोस्टों के लिए खतरा बनी हुई है ! हमारी हर हल चल पर उसकी नजर रहती है और कभी भी बिना पूर्व सूचना के गोला बारी करके जान माल का नुकशान कर देता है ! दुश्मन बंकर के अन्दर रहेगा और हमने बिना किसी बुलेट प्रूफ के बिना किसी कबर के आगे बढ़ना है ! पहली गोली मैं अपने जवानों पर नहीं लगने दूंगा ! अपने जीते जी मैं किसी जवान को गिरने नहीं दूंगा ! वे भी तो किसी माँ के दिल के टुकड़े हैं, किसी तुतली तुतली बोलने वाले बच्चे के प्यारे पिता हैं, किसी महिला के माथे का सिन्दूर हैं, किसी बहीन का भाई होगा ! पता नहीं कितनी जिंदगियों को बहा ले जाएगी ये लड़ाई ! आर्मी ज्वाइन करते हुए हमने सपथ ली थी की अपने देश की सुरक्षा हम अपनी जान देकर भी करेंगे ! माँ याद है तुम मुझे बचपन में राणा सांघा, जिनके बदन पर ८० घाव लगे थे और सारे रण भूमि में लगे थे, महाराणा प्रताप, वीर शिवा जी, नेता जी सुभाष चन्द्र बोष, शहीद भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद की कहानियां सुनाया करती थी ! तुम मुझे गीता का वह अध्या सुनाया करती थी, जहां भगवान श्री कृष्ण चन्द्र ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था की “अर्जुन तुम एक क्षत्री हो और क्षत्री का धर्म है अपने समाज, अपनी प्रजा की रक्षा करना ! एक क्षत्री अगर रण भूमि में शहीद हो जाता है तो उसे स्वर्ग मिलता है, अगर वह जीत जाता है तो वह वीर धरती पर राज करता है “वीर भोगी वसुंधरा”; ! वीर ही वसुंधरा का भोग करते हैं ! माँ तुम आंसू मत बहाना, तुम एक वीर बहादूर शहीद की माँ कहलाने का गौरव पाओगे ! माँ तुम ही ने तो मुझे बताया था की जब वीर भगतसिंह को सूली पर चढ़ाया गया था, और उसकी माँ के आँखों में आंसू आगये थे, तो उनके ही भतीजे ने उनसे पूछा था, "ताई जी भय्या तो वीरगति पा कर स्वर्ग गए हैं, उनके लिए आंसू बहाकर हम उनकी आत्मा को कष्ट पहुंचाएंगे ", तो ताई जी ने उत्तर दिया था, "बेटे मैं इसलिए नहीं आंसू बहा रही हूँ की मेरे बेटे भगतसिंह को फांसी लग गयी, बल्की मैं इसलिए रो रही हूँ की हे ऊपर वाले ने मुझे भगतसिंह जैसे दो चार पुत्र और क्यों नहीं दिए ताकी मैं उन्हें भी सहर्ष देश पर कुर्वान होने के लिए भेज देती !" माँ आपने भी भगतसिंह की माँ जैसे ही अपने दिल को मजबूत बनाके रखना है ! माँ, मेरी आखरी ख्वाईश यही रहेगी की अगले जन्म में भी परमात्मा तुम्हे ही मेरी माँ बनाना ! माँ अब जाने का समय नजदीक आ गया है,जब तुम्हे मेरा यह पत्र मिलेगा तब तक मैं बहुत दूर जा चुका हूँगा, लेकिन जाने से पहले अपने दोनों हाथों से तिरंगे झंडे को मजबूती से पकडे हुए लहराता हुआ देखूंगा और जब पंछी इस पिंजरे से उड़ने लगेगा तो पहले ऊपर वाले से प्रार्थना करूंगा की मुझे पहले मेरी माँ के चरण स्पर्श करने की इजाजत दे दे ! माँ जब तुम्हारे चरणों में सरसराहट महसूस हो तो समझ लेना यह मेरा चरण स्पर्श है ! मैं आउंगा माँ, तेरे स्नेह छाया के इर्द गिर्द ही अपना डेरा बनाउंगा :-
माँ मैं तेरे बाग़ में फूल बन मुस्काउंगा,
या छोटी सी चिड़िया बन ची ची कर तुम्हे जगाऊँगा,
या गुन गुन करता भंवरा बनकर
उछल कूद मचाउंगा !
तितली बनके आगे पीछे
मैं चक्कर लगाउंगा !
आम की डाली पर बैठा
कोयल बन गीत सुनाऊंगा,
जब भी याद मेरी आएगी,
मैं हवा बन कर आउंगा, ,
माँ, मैं यहीं आस पास हूँ
यह अहसास कराउंगा !
कभी सेना की टुकड़ी तुम्हे नजर माँ आये,
और फूल हंसते हंसते उनके आगे झुक जाए,
उन सभी के चेहरों पे मैं नजर आ जाउंगा,
जब भी धरती माँ बुलाएगी मैं लौट के आउंगा,
अमर जवान ज्योति में एक नया दीप जलाउंगा !
आपका पुत्र

भारत माँ का लाल !

अगले दिन सुबह के समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर मोटे मोटे अक्षरों में यह समाचार छपा था “पाकिस्तानी पोस्ट पर भारतीय तिरंगा ! मेजर वीर विक्रांत सिंह के सूझ बुझ, अद्भूत कारनामों और दुश्मन को रहस्यमय ढंग से बेवकूफ बनाकर अविजित पोस्ट पर भारतीय कब्जा करना ! जहां मौत का अंबार लग सकता था वहां केवल दो सैनिक और स्वयं मेजर वीर विक्रांत सिंह ही वीर गति को प्राप्त हुए ! वीर बिक्रांत सिंह को उनके शौर्य, सूरवीरता, सूझ बुझ, उच्चस्तर की लीडरशिप, और देश की अखंडता के लिए अपने प्राणों को न्योच्छावर करने के लिए देश का सबसे बड़ा वीरता का पदक “परमवीर चक्र” (मरणोपरांत) से समानित किया गया है ! यह परमवीर चक्र राष्ट्रपति द्वारा एक साधारण समारोह में उनकी माँ को दिया जाएगा !

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