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जिन्दगी एक पहेली है

jagate raho
jagate raho
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जिन्दगी एक पहेली है, जिस्म की सहेली है,
राह में मोड़ आते ही, सुखद मौसम के जाते ही,
मुरझा जाती हैं तमन्नाएं, न समझ आए किधर जांय !
फिर भी है हिम्मत बाकी, न कोई जाम नहीं साकी,
हकीकत नहीं ये स्वपनों की चेली है,
ये जिन्दगी पहेली है ! जिस्म की सहेली है !
विशाल पर्वत जो नजर आते, नंदा देवी ऐवरेष्ट कहलाते,
आदमी इन पर्वत शिखर पर, भगवान को जा बिठलाते,
पुजारी भक्त यहाँ आते, इन शिखरों पे चढ़ जाते,
कुछ राहों में फंस जाते, कुछ राहें भटक जाते,
कुछ निर्दयी मौसम में फंस कर,
घर अपना न जा पाते, कहियों के दम निकल जाते !
पर लोग नहीं रुकते, पहाड़ों पर फिर चढ़ते,
दर्शन करने उस शिव के, उसी का नाम फिर जपते !
ये मानवता अकेली है,
ये जिन्दगी पहेली है,
जिस्म की सहेली है !
ये हिम मुकुट बनकर, भारत के मस्तक पर,
आदमी से यही कहता,
तू तो है धरा का पर मैं सदा यहीं रहता,
तेरी अपनी सीमा है, हिमालय की महिमा है,
क्यों नापाक कदमों से मुझे कलंकित करता,
दुर्गम घाटियों में आकर बेमौत मरता !
नदियों को बांधता है. पर्वतों को लांघता है,
जंगली जीव जंतु मारता है,
कुदरत से बैर बढ़ाकर करता अठखेली है,
ये जिन्दगी पहेली है, जिस्म की सहेली है ! हरेन्द्र जागते रहो !

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