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नहीं है चाह अब मुझको, की गाँउ गीत महफ़िल में,
न इच्छा है मेरे मन में किसी दिल में मैं बस जाऊं,
बहारे फिर भी आएंगी, गले उनको लगाउंगा,
छिपे गुब्बार हैं दिल के किसी से कह न पाउँगा,
रुक रुक कर बदलते वक्त के संग बढ़ता जाउंगा,
चलते चलते थक गया फिर भी रुक नहीं पाउँगा !
बहुत कुछ देख पाया हूँ बहुत कुछ देखना बाकी,
पर अब मैं थक चुका सजनी पिला दे प्रेम की साकी !
ये साखी चक्षु खोलेगी, मुस्करा करके बोलेगी,
मेरे तन में मेरे मन में मधु रस बन के घोलेगी,
छिपे संगीत के लय ताल उभर के बाहर आएगी,
अवनी से अम्बर तक कुदरत मुस्कराएगी !
निकलेगा नया सूरज चमकती चांदनी होगी,
प्रदूषण मिटेगा फिर नहीं होगा कोई रोगी,
मेरी चाह रंग लाएगी, महफ़िल में बताएगी,
खुशी से गीत गाऊँगा, दिल से मुस्कराउंगा ,
ढल नहीं पाया है यारो है हुस्न अभी बाकी,
चलते चलते सजनी पिला दे प्रेम की साखी !
हरेन्द्र
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