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पाठको ! अभी तक हम लोग देश विदेश की खबरों को पढ़कर, सुनकर टेन्स होते रहे, अपना ब्लड प्रेशर बढाते रहे, अपना कीमती रक्त सुखाते रहे, लेकिन चलो अब ज़रा राजनीति, सामाजिक, आर्थिक वार्ताओं से दूर चल कर किसी शांत स्थान पर चलकर, किसी चश्मे की धारा में अपनी हथेलियों को भीगाकर अपने तन और मन को ज़रा हंसने हंसाने के लिए तैयार कर लें !
हंसने के लिए तैयार एक दो तीन …….
एक श्याम रंग की पत्नी पति से – जी, आप बहुत सुन्दर लगते हैं जी !
राधा रंग में रंगी पति – अरे तुम भी तो किसी अफसरा से कम नहीं हो !
पत्नी – सच कह रहे हो, जी,मजाक तो नहीं कर रहे हो ?
कभी प्यार तो करते नहीं !
पति – तुमने सूना नहीं, फूलों की सुन्दरता आँखों से देखी जाती है, उसे छेड़ कर नहीं
पत्नी – अच्छा बताओ मैं कैसे लगती हूँ ज़रा कविता में बता ओ !
पति – तस्वीर तेरी दिल में बसी है, तस्वीर तेरी दिल में बसी है, तस्वीर तेरी दिल में बसी है !
पत्नी – अरे आगे भी तो बोलो .
पति – बोल दूं, तो सुनो …….
जैसे अधखुले किवाड़ों में भैंस फंसी है !
एक बार संता सिंह के मोबाईल की घंटी बजी, उसने तुरंत स्वीच ऑन किया, कान पर लगाया,
हैलो, कौन बोल रहा है, उधर से आवाज आई – अरे मैं बोल रहा हूँ,
कौन, अरे भई मैं मैं मैं !
संता ने फोन स्वीच आफ करते हुए १ कमाल है उधर से भी मैं ही बोल रहा हूँ !
संता सिंह गोरा, संतो थी काली !
संतो ने पीली साड़ी पहिनकर मुंह पर लालिमा लगा कर
संता के पास आकर सिर पर साड़ी का पलो डाल कर मुस्कराते हुए कहा,
‘क्यों जी मैं कैसे लग रही हूँ ?
संतो ने ऊपर देखा नीचे देखा आगे देखा पीछे देखा बोला,
“अरे तुम ऐसे लगती हो जैसे सरसों के खेत में भैंस खड़ी हो” ! हरेन्द्र
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