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छोटी छोटी खुशियाँ

jagate raho
jagate raho
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गम के बादलों के बीच
मिल जाय ज़रा सी खुशी –
प्रचंड गर्मी में,
जैसे ठंडी हवा का झोंका,
जिसको न किसी रईस ने न नेता ने रोका,
उम्र बढ़ जाती है, चिंता घट जाती है,
चंद मिनटों के लिए ही सही,
फूलों सी महक आती है,
आपको चाहिए ऐसी खुशी,
तो रात के अँधेरे में
सुनशान सडकों के किनारे,
मजदूरों की बस्ती में जाइए,
छोटी छोटी खुशियों का आनंद उठाइए !
ये मजदूर दिन भर तेज धुप में,
पत्थर तोड़ते हैं,
लोहे का सरिया मोड़ते हैं,
पाषाणों को तरासकर
असंभव का सीना फोड़ते हैं,
और रात को
दिनभर के जख्मों से बेखबर,
आल्हा ऊदल गाते हैं,
कोई चिमटा तो कोई घडा बजाते हैं,
दिन भर के क्लेश परिशम को
इन छोटी छोटी खुशियों में घोल कर पी जाते हैं,
खोई हुई शक्ती जगाकर
अगली सुबह तरोताजा
मजदूरी पर लग जाते हैं,
चहरे पर चिर परिचित मुस्कान लेकर ! हरेन्द्र (१५/०८/२०१३) स्वतंत्रता दिवस पर )

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