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दारू पीता हूँ दवा समझ कर
अपनी खाट पर,
क्लब होटलों में लोग नजर लगा देते हैं,
यारो मैं बच बच कर चलता हूँ,
मेरी खाट से भी दुश्मन भेद पा लेते हैं !
अब हाल यह है, यह दारू दवा न होकर जहर बन रही है,
वो चमक दमक हंसी अब चहरे पर नहीं है !
अब तो जनता मुझे भी नेता समझने लगी है,
गली मोहले में डंडा दिखाने लगी है !
समझाने कि कोशीश करता बहुत हूँ,
कि “मैं नेता नहीं जनता का मत हूँ ” !
पर कमजोरी मेरी ये दारु कि बोतल,
जो सदा मेरे साथ चलतीं है,
ठेके कि दुकानों में बिकती है,
नेता साहूकारों के गोदामों में पलती है,
आम आदमी को जहर
पर सेठ नेता नौकरशाहों के लिए दवा बनती है !
इसी लिए पीता था इसे दवा समझ कर
क्या पता था ये भी अमीर गरीब के साथ
सौतेला ब्यवहार करती है !
अमीर को दवा पर गरीब के लिए जहर बनती है !
जानकर भी सरकार दारु बेचती है,
गरीब कि हिमायती बनती है,
वारीश में भीगे हुए राशन को
सस्ते में “फ़ूड सुरक्षा” के तहत उन्हें देती है !
गरीब सड़ा राशन खाती है,
दारु पीती है,
सिसिक सिसिक कर जीती है,
उनकी मेहनत की कमाई से झोले छाप डाक्टरों की जेब भरती है !
सरकार मगर मच्छी आंसूं दिखा कर अंदर ही अंदर हंसती है !
चुनावों की सर गर्मी
नेता मंत्री गली गली अलक जगा रहे हैं,
राजा से याचक बन कर गरीबी भगा रहे हैं,
लेकिन डेंगू का भूत तो उन पर सवार होगया है,
बाहर निकलने से पहले मच्छर क्रीम लगा रहे हैं !
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