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स्वस्ति – आस्था का मंदिर (व्यंग कविता)

jagate raho
jagate raho
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आस्था का मंदिर, स्वस्ति का जाप,
नेता जी चुनाव नजदीक हैं रस्ता नाप,
नेता जी लेकर घूस की पोटली मंदिर में आते हैं,
परमात्मा के आगे शीश नवाते हैं,
मन ही मन गुनगुनाते हैं,
दुष्कर्मों के लिए कुछ देर मुर्गा बन जाते हैं !
“आगे से रिश्वत नहीं खाऊंगा”
पोटली भगवान के चरणों में चढ़ाते हैं !
“बस एक आखरी चांस और देदो,
हाई कमान का पाषाण रुपी दिल में छेड़ करदो,
इस बार टिकट मिल जाय, सांसद बन जाऊं,
अस्थायी ही सही प्रधान मंत्री का ताज पाऊँ,
मेरी पिछली तीन पीढ़ी तर जाएँगी,
आगे कि तीन पीढ़ी मजे से जमा पूंजी खाएंगी,
भगवान मैंने सच्चे मन से जनता कि सेवा की है,
८० प्रतिशत ही तो कमीशन ली है,
अब के कमीशन का लेबल कम कर दूंगा,
गरीब कि टूटी खाट डब्बल कर दूंगा,
गरीबों के लिए क्रिकेट का स्कूल खोल दूंगा,
हर बच्चे को एक बैट और बॉल मुफ्त दूंगा,
मेरे झोले में विकास की योजनाएं और हैं,
मेरे अलावा राजनीति में बहुत से चोर हैं !
ये घूस की आखरी पोटली चढाने आया हूँ,
चक्रवृद्धि ब्याज एक टन सोना साथ लाया हूँ !
दींन बंधू इसे स्वीकार करें, मेरी डूबती नय्या पार करें ” !
चढ़ावा चढ़ा कर वे घर चले जाते हैं,
रिश्वत कि पोटली अपने स्टोर रोम में पाते हैं,
एक नोट चिपका हुआ था :-
“सोना ग्रहण कर लिया है,
रिश्वत में गरीब का
खून पशीना मिला है,
इसे वापिस कर रहा हूँ,
गरीब से तो मैं भी डर रहा हूँ “! भगवान्

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