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देश का नमक खाया है !

jagate raho
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भारतीय रक्षक वीर जवान देश का नमक खाते है, दुश्मन के खिलाफ देश की सुरक्षा के लिए लड़ते लड़ते अपने को न्योछार कर देते है ! उन तमाम आतंकी नज़रों को जो हमारी अखण्डता और स्वतंत्रता पर काली दृष्टी डालने की चेष्टा करते हैं, सदा के लिए दृष्टीहींन कर देते हैं ! दूसरी तरफ नमक खाने वाले सता धीश हैं, सज्जनता का मुखोटा लगा कर, ऊपर से नीचे तक सफ़ेद वस्त्र धारण करके देश के करोड़ों श्रमिकों की खून पशीने की कमाई पर हाथ साथ करते हैं ! गरीबों का मशीहा बनते हैं, सूरज की रोशनी में संत, वैरागी, महात्मा गांधी (राष्ट्रपिता )
के सच्चे अनुयायी, जनता का सेवक बनने का ढोंग रचते हैं ! रात के अँधेरे में काला धंधा करते हैं, किसी असुरक्षित की सुरक्षा को लालच देकर उसकी अस्मितता को लूटते हैं ! अगले दिन के उजाले में मगरमच्छी आंसू गिरा कर पीड़िता के आंसू पोंछने का नाटक करते हैं, सच्चा हितैषी बनकर सरकारी खजाने पर सेंध लगाकर अपने कुकर्मों को ढकने का प्रयास करते हैं ! इन समाज के शैतानों को चहरे बदलने में महारत हासिल होती है इसलिए ये बार बार जनता को गुमराह करके स्वर्ग को भी चकाचौंध करने वाला स्वप्न दिखाते हैं, वोट लेते हैं और पांच साल तक बार बार जनता की छाती पर बैठ कर मूंग दलते हैं, जनता को बुद्धू बनाकर अंदर ही अंदर हंसते हैं ! देश का नमक खाते हैं, इस तरह नमक का ऋण अपनी काली कलूटी चादर से ढकते हैं !
संत महात्मा भी देश का ही नमक खाते हैं, तंत्र मन्त्रों का भय दिखाकर गरीबों की जेब साफ़ करते हैं ! अमीर तो उनके झांसे में नहीं आते, गरीब अंध विश्वासी होते है, वे
आशाराम जैसे संतों का पाँव पकड़ते है, उसकी लातें खाकर भी अपने को गौरवान्वित समझने की भूल करते हैं ! दुष्कर्मी संतों की तन मन से सेवा करते है और अपनी कठीन मेहनत की कमाई को उनके चरणों में धरते है, इस आशा और विश्वास के साथ की “संत को दिया हुआ धन दुगुना चौगुना होकर उनकी झोपड़ी में वापिस आ जाएगा, झोपड़ी को मकान बनाएगा और उनकी दरिद्रता सदा के लिए दूर कर देगा”, जो कभी फलीभूत नहीं होती !
सभी संत एक सामान नहीं होते हैं, लेकिन स्वच्छ तालाब को केवल और केवल एक ही मछली गंदा कर देती है, अन्य मछलियां निष्पाप, साफ़ सुथरी होने के बावजूद इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज नहीं उठा पाती हैं और उस गन्दगी में सिसिक कर बेमौत मरती जाती हैं !
देश की एक अरब चालीस करोड़ जनता आम आदमी, मजदूर, किसान, क्लर्क, चपरासी, रिक्शेवाले, भी देश का नमक खाते है, अन्न उगाते है, सबको खिलाते हैं, मकान दूकान ईंट, पत्थर, सीमेट, गारा, रेत रोड़ी जोड़ कर मल्टी स्टोरीज गगनचुम्बी इमारते, महल, मकान बनाते हैं, बड़े बड़े व्यापारी, रईसों और संतों की तिजोरियां, झोलियाँ भरते हैं और चंद भ्रष्टाचारियों, दुष्कर्मियों, रिश्वतखोरों, हत्यारों, जमाखोरों, चोरो, लुटेरों के बोझ तले लुटते है, संत का चोला पहिने बलात्कारियों को गुरु बनाकर अंध विश्वास के अन्धकार में धंसते हैं ! नेता, राजनेता, अभिनेता, नौकरशाह, इंजिनियर अपनी कमाई से बनाते हैं, बीमार पड़ने पर महंगाई के प्रहार से घिसते घिसते मर जाते हैं पर नमक की कीमत अदा करके जाते हैं, पञ्च तत्व के जीर्ण शीर्ण जंक खाए पिंजरे से निकल कर नील गगन के तारे बनकर भी भूले भटके स्वार्थी, पथ भ्रष्ट लोगों को राह दिखाते हैं और महान बन जाते हैं ! हरेन्द्र

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