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मंसूरी – पहाड़ों कि रानी

jagate raho
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गढवाल कि भूमि को शास्त्रों में देवभूमि के नाम से अंलकृत किया गया ! कुदरत ने भी अपनी ख़ूबसूरत सम्पदा बर्षा कर इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा दिए गए थे ! गंगा, यमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी और बहुत सारी पवित्र पूजनीय नदिया हिमालय से निकलकर उत्तराखंड के पर्वतीय श्रृंखला से उतर कर आकर्षक झरने का रूप लेकर फिर भारत के विशाल मैदानों की सूखी पडी भूमि की प्यास बुझाती हुई, उसे विभिन अनाजों से लहलहाते हुए, किसानों की मेहनत का पारितोषिक बांटती हुई, पापियों के पापों की गठड़ी को साथ लिए समुद में समा जाती थी ! बंगाल में गंगासागर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ! जब तक इंसान की आवश्यकताएं सीमित थी, वह सामाज की परम्पराओं से जुड़ा रहा, उसके स्वार्थ एक नियत बिन्दू पर आकर रुक जाया करते थे, कुदरत की कृपा उत्तराखंड और उसके इंसानों पर वरदान बनकर बरसती थी ! इंसान स्वार्थी हुआ, उसने कुदरत से छेड़ छाड़ शुरू की ! नतीजा कुदरत का प्रकोप केदारनाथ – बद्रीनाथ पर कहर बनकर, बादल फटे, मंदाकिनी का बाँध टूटा और सैलाब बनकर भयानक बाढ़ बनकर केदारनाथ मंदिर को छोड़ कर सब कुछ बहा लेगया ! हजारों दर्शनार्थी इस प्रलय में काल के गाल में समा गए ! पहाड़ों पर विस्फोट करके उनको कमजोर किया गया, जंगलके जंगल काट दिए गए, जंगली जानवरों को शरणार्थी का जीवन बिताने के लिए मजबूर किया गया ! अब दिन दहाड़े, बघेरे भेड़िए, रीछ बस्ती में आकर पालतू जानवरों के अलावा छोटे छोटे बच्चों को उठाकर ले जाने लगे हैं !
मैं उत्तराखंडी नागरिक हूँ, देश के हर प्रदेश में भ्रमण करने वाला सैनिक था, लेकिन अपनी भूमि, देवभूमि को देखने का अवसर मुझे सर्विस के दौरान नहीं मिला ! केवल सेना से अवकास लेने के बाद ही मैं सन २००९ ई० में, बद्रीनाथ, केदार नाथ, जोशीमठ, श्रीनगर, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, गोचर आदि स्थानों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त कर पाया !
देहरादून मैं अकसर आता जाता रहता हूँ ! पूरी रिश्तेदारी वहीं बस गयी है ! जब भी मैं देहरादून जाता, मंसूरी जाने की योजना जेब में लेकर चलता ! सबसे पहले १९६२ में देहरादून गया था, उन दिनों वहाँ मेरी पत्नी के चाचा श्री जीतसिंह जी गुसाईं जंगलात विभाग में सेवारत थे, शादी के बाद पहली बार उनका आशीर्वाद लेने वहाँ गए थे ! उस समय भी मंसूरी का आकर्षण साथ लेकर गया था ! सेना में सेवारत था, छुट्टियां कम थी, मंसूरी नहीं जा पाया ! यह मेरा स्वप्न था और स्वप्न ही रहा ! मेरी पत्नी ने तो मेरे से पहले ही मंसूरी घूमने का लुफ्त उठा लिया था ! उसने जब मुझे रसखान कवि की कविताओं से रसीले शब्दों को चुरा कर उन शब्दों को मंसूरी के धागे में पिरोकर वहां की खूबसूरती का वर्णन चटकारे भर भर मुझे सुनाया, तो मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख सका और इस बार देहरादून जाने के साथ साथ मंसूरी घूमने का भी मन बना लिया ! वाह क्या खूब जल्दी ही देहरादून जाने का न्योता भी आगया ! मेरी पत्नी के बड़े भाई के पोते कि शादी थी देहरादून में उसी शादी में सामिल होने का न्योता था ! शादी १३, १४ अक्टूबर २०१३ की थी ! मैं अपनी पत्नी, छोटे बेटे बृजेश-बहु और पोते आर्नव पोती आर्शिया के साथ अपनी कार से १२ अक्टूबर को सबेरे ही देहरादून के लिए निकल पड़े ! दो दिन शादी के प्रोग्राम में सलग्न रहे, १५ तारीख सबेरे ही मंसूरी के लिए निकल पड़े ! अंग्रेजों द्वारा बसाया हुआ मंसूरी, पहाड़ों की रानी ! रात के समय देहरादून से मंसूरी कि पहाड़ियों में चमकते हए रंग बिरंगे बिजली के बल्ब नील गगन के तारागणों से बाजी मारने की भरषक कोशीश करते नजर आते हैं और इसी चमक दमक और खूबसूरती के आवरण में लिपटी मंसूरी पहाड़ों की रानी कहलाती है ! होटल, मंदिर, ,चर्च, पब्लिक स्कूल, पार्क, सेशन कोर्ट, राधा स्वामी व्यास आश्रम, माल रोड की हलचल, समुद्र तट से ७२०० फीट कि ऊंचाई पर गन प्वाईंट जहां से उत्तराखंड को घेरे हुए हिमालय कि चोटियां दृष्टि गोचर होती हैं ! यहाँ से नदियां, चस्मे, गगन को छूटे हुए देवदार के वृक्ष, विभिन प्रकार के रंग बिरँगे फूल, लहरदार जलेबी के आकार की सड़कें और रास्ते, गहरी घाटियाँ, देहरादून की दूंन घाटी का आकर्षण का लुफ्त इस गन प्वाइंट की चोटी से उठाया जा सकता है ! गन प्वाईंट तक ट्राली से सीधे एक हजार फीट की सीधी चढ़ाई है ! ट्राली में बैठकर जब नीचे नजर जाती है तो गहरी खाई को देखते ही सारे बदन में सिहरन दौड़ जाती है ! प्रयटक स्थल होने से यहाँ माल रोड पर देश से आये विभिन प्रदेशों के लोग विभिन भेष भूषा में नजर आते हैं ! गन प्वाईंट को एक लंबा चौड़ा मैदान का सेफ दिया गया है, वहाँ बहुत से टेलेस्कोप लगे हैं और पहाड़ों की कुदरती छटा का बारीकी से अवलोकन किया जा सकता है ! वहाँ श्री त्रिलोक चौहान मिले ! वे गढ़वाली संगीत के लाकार हैं ! उन्होंने जानवरों के बहुत से मॉडल बना रखे हैं, जिसमें शेर, हाथी, जेबरा, जिराफ वहाँ बाहर मैदान में लगा रखे थे ! हमारी टीम में मेरी पत्नी, उनकी दो भतीजियां, शोभा, शोभा का लड़का श्रेय, अरुणा, अरुणा के पति विक्रम सिंह बिष्ट
थे ! माल रोड पर सजी सजाई दुकाने जहां हर तरह का सामान मिल सकता है !
साथ ही वहाँ तिब्बती शरणार्थियों कि दुकाने और एक अलग बस्ती बसा रखी है ! कहते हैं शुरू में यहाँ तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा भी कुछ अर्से तक ठहरे थे ! अब वे हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला आश्रम में रहते हैं ! भूटानी शरणार्थी भी बड़ी संख्या में यहाँ बसे हैं ! उनकी बहुत सारी दुकाने और झोपड़ियां उत्तराखंड कि जनता का तिब्बतियों के प्रति हमदर्दी का जीता जागता सबूत है ! इस पहाड़ी पर कभी कभी बादलों को भी प्यार आ जाता है इसलिए बादल अकसर मंसूरी की पहाड़ियों को अपने आवरण से ढक लेती हैं ! इनलैंड में भी बड़ी बड़ी मन मोहक पहाड़ियां हैं, वहाँ कि जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ! अंग्रेज जब भारत आए उन्हें भारत की हिमालय से जुडी पहाड़ियां, शिमला, मंसूरी, दार्जलिंग, विलिंगटन, लैसीडाउन, पौड़ी, नैनीताल की सुरम्य श्रृंखलाएं बड़ी सुन्दर, आकर्षक मन मोहक लगी ! उन्होंने इन स्थानों पर छावनियां बसा दी थी ! आज ये सारी पहाड़ियां देशी विदेशी प्रयटकों का आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं ! तीन दिन की यह अविस्मणीय यात्रा की समाप्ति पर हम १६ अक्टूबर को वापिस दिल्ली आगये थे, दिल और दिमाग में बहुत सारी कुदरत की सम्पदा को यादगार के तौर पर संजोकर ! हरेन्द्र

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