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मॉर्डन मजनू

jagate raho
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नदी का किनारा, मौसम सुहाना, न गर्मी न सर्दी, सुबह की सुखद हवाएं कानों से टकराती हुई, सन सन का स्वर एक मधुर सन्देश सुनाती हुई ! नदी बड़ी वेग से बह रही है, पहाड़ों से उतर कर मैदान में आई हूँ, कह रही है ! नदी के दोनो तट पर रेत बालू छोटे बड़े शिला खंड बिखरे पड़े हैं, विभिन रंगों में सने कुदरत का गुणगान कर रहे हैं ! नदी के दोनों तरफ लह लहाते खेत, धान की बालियों से झुके नाजुक डालियाँ, जैसे इस कथानक को सत्यता का जामा पहिना रही हो ” फूलों से तुम हंसना सीखो और भंवरों से गाना,
अनाज के पौधों से सीखो, फल पाकर झुक जाना !”
गपोड़ी मल अपने इलाके का मसखरा, काम धाम पढ़ाई लिखाई नाम मात्र की, गप्पे हांकता था, पूरे दिन आवारा लड़कों के साथ उठता बैठता खेत खलियान, नदी नाले और कभी कभी घंने जंगलों में अपने जैसे साथियों के साथ मटर गस्ती करता था ! माँ बाप किसान थे, खूब मेहनत करते थे, अनाज खूब पैदा होता था, खाने पीने के अलावा बेचने के लिए बच जाता था, उस रकम से साबुन, चाय, चीनी, मशाले, गुड, कपडे, घर की सजावट का सामान जोड़ लेते थे ! लेकिन अब दोनों की उम्र ढलान पर थी ! गपोड़ी राम अब २५ पार चुका था, माँ बापों को उसकी शादी कि चिंता होने लगी, उन्हें भरोषा था कि ‘हमारा लाडला आज के जमाने का चालाक और चतुर होशियार है, अपने लिए कोई न कोई हसीना ढूंढ ही लेगा, उन्हें यकीन था ! उन्हें उसके भविष्य की कोई चिंता नहीं थी, कारण एक झोला छाप ज्योतिषी ने उसकी जन्म कुंडली देख कर बताया था, “यह नाकारा, आवारा, अनपढ़ गंवार रहेगा पर एक दिन नेता जरूर बन जाएगा, नदी नालों की रेत, बालू, बजरी, रोड़ी और पत्थरों का ठेका बाँट कर करोड़ों में खेलेगा, घोटाला करेगा नाम कमाएगा ! इस सत्यता को अजमाने के लिए वह हमेशा बिना नागा नदी के किनारे जाकर रेत, बालू, बजरी और बड़े बड़े शिला खण्डों का आकलन करता था ! एक दिन एक सपाट चौरस सुन्दर शिला पर उसे एक योवन की देहली पर पाँव रखती हुई हसीना बैठी नजर आई ! उसके दोनों पाँव नदी की जल धारा में जल क्रीड़ा कर रहे थे और वह नदी की कल कल ध्वनि के साथ अपनी आवाज जोड़ कर कोई फ़िल्मी गाना गुनगुना रही थी ! गपोड़ी मल को अचानक वहाँ आया देख कर वह सकपका गयी ! उसने अपनी चुनरी से अपना सिर ढक लिया ! गपोड़ी मल ने इतनी मनमोहक सुंदरता अभी तक कभी नहीं देखी थी ! चंचल मदमाती बड़ी बड़ी मृग जैसी आँखें मदहोश करने वाली, चौड़ा माथा, चेहरा गोल, रंग गोरा, नाक नक्श बे जोड़, घुंघराले लम्बे बाल, दरमियानी कद, एक पढ़ी लिखी संभ्रांत परिवार की गुण सम्पन लग रही थी, शायद अपने सच्चे मंजनू की तलास कर रही थी ! गपोड़ी मल का डील डौल किसी कुस्ती वाले पहिलवान से कम नहीं था, आकर्षक व्यक्तित्व तो था पर अनपढ़ गंवार का निशान चहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था ! असली नाम इसका घनघोरसिंह था, क्योंकि जिस दिन वह पैदा हुआ था, उस दिन आसमान काले बादलों से ढका था, बिजली चमक रही थी, और बादल गरज रहे थे ! समय की आंधी में उड़ते उड़ते उसका नाम घनघोरसिंह से गपोड़ी मल कब पड़ गया उसको पता भी नहीं चला ! हाँ तो उस सुकोमल, सुन्दर सलौनी बाला से मुखातिब होकर डरते डरते गपोड़ी मल बोला, “हे गोरी, सुन्दर छोरी बता तेरा नाम क्या है, क्या करती है गाँव कहाँ है ?” लड़की चुप रही ! वह फिर बोला, “लगता है तू अभी तक कुंवारी हैं, मैं भी कुंवारा हूँ, क्या मैं तेरा हाथ मांग लूं तेरे बाप से ! ” लड़की को उसकी बोली बड़ी अटपटी लगी ! उसने सोचा, निरा अनपढ़ है, लेकिन गबरू जवान है, इसकी नकेल पकड़ कर जिंदगी की गाड़ी अच्छी तरह खिंची जा सकती है, लेकिन जैसा गबरू लगता है वैसे ही असल में है भी कि नहीं, ज़रा दिल दिमाग और बल को नाप तोल कर देख लिया जाय ! वह खूबसूरत बाला ज़रा चहरे पर नकली गुस्सा दिखाकर बोली, “बड़ा मजनू बनता है, अकेली लड़की देखकर छेड़ता है, अभी शोर मचाती हूँ,अपने थानेदार भाई को बुलाती हूँ, तुझ जैसे आवारा, लोफर मजनू को हवालात पहुंचाती हूँ !” इतना सुनते ही उसकी सिटी पिट्टी गुम होगई, वह नदी में पड़े बड़े बड़े शिला खण्डों को लांघता हुआ मिनटों में नौ दो ग्यारह होगया ! लड़की बड़ी जोर से हंसी इस मार्डन मजनू पर ! इसके बाद गपोड़ी मल कभी उस नदी तट पट नहीं गया न उसके बाद उसने कोइ नया गप्प ही लगाया ! लेकिन आज भी ज्योतिष की भविष्यवाणी पर विश्वास कर उस घड़ी का इन्तजार कर रहा है जब वह प्रभावशाली नेता बनेगा, झोला छाप ही सही, भ्रष्टाचार करेगा और मजे से जिंदगी का लुफ्त उठाएगा ! हरेन्द्र

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