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उत्तराखंड के नक़्शे को कुदरत ने एक विशेष दिन इतमिनान से बैठकर बनाया होगा ! देवताओं के शिल्पकार विश्वाकर्मा की सेवाएं ली गयी होंगी ! इसका नाम “देवभूमि” से अलंकृत करके यहाँ देवताओं के लिए ‘इंद्र लोक’ का निमार्ण किया गया होगा ! विगत दिनों यहाँ ब्रह्मा विष्णु महेश ने अपनी सुख सुविधाओं से लैश विशाल शिला खण्डों से निर्मित देवालयों का निर्माण करवाया होगा !
यहाँ मंदिर ऊंचे ऊंचे पर्वत शिखरों पर बनी कुदरती घाटियों में हैं !
बद्रीनाथ, गरुड़ गंगा, तप्त कुंड, नारद शीला, ब्रह्मकपाल, केदारनाथ, गौरी कुंड, यमनोत्री, गंगोत्री, स्वर्गारोहण (कहते हैं पाँचों पांडव द्रोपदी के साथ इसी मार्ग से स्वर्ग गए थे) ! बद्रीनाथ में साक्षात विष्णु का निवास स्थान बताया जाता है ! भारी भारी पत्थरों से तरासा हुआ आकर्षक डिजायनों से सजा कर इस ऊंचे पर्वत शिखर पर इतना सुन्दर भव्य मंदिर बनाने वाले साधारण तरह के इंसान तो नहीं हो सकते ! अलकनंदा के किनारे बना यह मंदिर सदियों पहले बना था जब कि इतने विशाल पाषाणों को ढोने के लिए किसी किस्म के साधन भी नहीं थे ! आज हम केवल दर्शन करने के लिए ही कुदरती बाधाओं से त्रस्त हो जाते हैं ! फिर वे कैसे लोग रहे होंगे जिन्होंने कुदरती वाधाओं के साथ अपनी जान की प्रवाह किए वगैर बाढ़, हड्डी कम्पाने वाली बर्फीली हवाएं, चट्टानों के टूटने से रास्ते बंद हो जाते थे, भूकम्प से बाधाएं आती थी फिर भी विश्व प्रसिद्द बद्री नाथ और केदारनाथ मंदिर बनाने में अपना सब कुछ इन मंदिरों को समर्पित कर दिया ! आज उनके खून पशीने की बदौलत इन मंदिरों की छत्रछाया में लाखों लोगों की जीविका चल रही है ! हजारों साधू सन्यासी इन मंदिरों की चौखट पर आकर उदर पूर्ती के अलावा ज्ञान ध्यान की प्राप्ती करके अपनी मुक्ती का साधन जुटाने में लगे हुए हैं ! केदारनाथ, मंदाकिनी नदी के किनारे ‘बम बम भोले शंकर भगवान का निवास स्थान है ! आज लाखों की संख्या में हर साल इन पर्वत शिखरों पर चढ़ कर सैलानी, प्रयटक, धार्मिक आस्तावों से जुड़े साधू सन्यासी अखाड़ों के दंगल, निरंकारी, नागा संत, दर्शनाभिलाषी पीड़ित आम जनता अपनी मनोकामनाओं की पोटली बांधे आते हैं ! जहां विष्णु और शंकर का निवास स्थान होगा वहाँ सभी देवताओं के लिए भी विश्वकर्मा द्वारा देवालयों की रचना की गयी हैं ! , इस तरह करीब सारे देवता इन पर्वत श्रंखलाओं में डेरा डाले हुए हैं यह माना जाता था !
दर्शनीत स्थान :-
गौचर, जोशीमठ, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, नंदप्रयाग, रुद्रप्रयाग, विष्णु प्रयाग, श्रीनगर, टेहरी, दूंन घाटी, फूलों की घाटी, मंसूरी, लैंसीडॉन( गढ़वाल रेजिमेंटल सेंटर) , हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, चमोली उत्तरकासी, ऋषिकेश, नैनीताल अल्मोड़ा, रानीखेत (कुमायूं रेजिमेंटल सेंटर ), बागेश्वर, उधमसिंह नगर, पिथोरागढ़, रामनगर आदि आकर्षक, ख़ूबसूरत स्थानों पर कहते हैं कभी मनुष्य रूप में इंद्र, वरुण, वायु, अग्नि, नाग, किन्नर, गन्धर्व वास करते थे ! समय पड़ने पर दुष्टप्रवृतियों से इंसानोंकी भी मदद करते थे !
पर्वत शिखर
नंदा देवी (७८१८ मीटर), माणा (चीन -भारत की सीमा पर बसा हुआ गाँव ७७५८ मीटर), चौखम्बा (७१४० मीटर), त्रिशूल ७१२२ मीटर), दूनागिरि ७०६८ मीटर),गंगोत्री (६६७२ मीटर), शिवलिंग (६५४४ मीटर), नील कंठ ( (६५९७ मीटर), बन्दरपूँछ (६३१७ मीटर), हनुमान शिखर (६०७६ मीटर) !
इसके उत्तर में विशाल सफ़ेद आवरण में लिपटा, चांदी का ताज धारण किये हिमालय पर्वत जिसकी श्रृंखलाएं भारत की परहरी बनकर विश्व का आकर्षण केंद्र बनी हुई है ! उस पर्वत से निकली गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, अलकनंदा, मंदाकिनी, रामगंगा, घाघरा, गोमती, ब्रह्मपुत्र, सिंध, रावी, सतलज, झेलम, चिनाव, व्यास और बहुत सारी नदियां ! हिम खण्डों से निकली ये नदियां पर्वतों से उतर कर, बड़े बड़े प्रपातों में प्रवर्तित होकर हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के विशाल मैदानी इलाकों में वन उपवनों, खेत खलियानों को हरित क्रान्ति का उपहार देती हैं ! कृष प्रधान भारत देश के करोड़ों किसान तपती धूप, ठिठरती हुई सर्दियों का प्रहार सह कर कठीन मेहनत करते हैं पशीना बहाते हैं और उसी का फल है जो आज एक अरब चालीस करोड़ अमीर गरीब, किसान, मजदूर, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, दलाल, सन्यासियों की उदर पूर्ती हो रही है ! जीव जंतु, और नील गगन में विचरने करने वाले विभिन प्रकार के रंग बिरंगे पक्षी भी अपनी क्षुधा पूर्ती किसान द्वारा उपजाए हुए अन्न से ही करते है ! जहां बड़ी बड़ी दो नदियां मिलती हैं वह संगम ही प्रयाग कहलाता है ! इलाहाबाद में हिमालय से निकली तीन नदियों का संगम (गंगा-यमुना-सरस्वती) प्रयाग राज कहलाता है ! जहां हर साल करोड़ों लोग देश विदेश से आकर इस पवित्र स्थान में स्नान करके अपने पापों को धो डालते हैं !
८८८ ई० तक गढ़वाल ५२ गढ़ियों में विभक्त था और हर गढ़ी का एक राजा होता था ! आज उनके अवशेष मात्र हैं ! महाबगढ़ और भैरों गढ़ी ऊंचे ऊंचे पर्वत शिखरों के ऊपर मंदिर रूप में इन ५२ गढिय़ों के साक्षी हैं ! १७९३ तक कुमायूं पर चंद वंश के राजाओं का आधिपत्य था ! गढ़वाल और कुमायूं के ऊपर नेपालियों द्वारा आक्रमण किये गए, हजारों लोगों का संहार किया गया, लूट पाट किया और खेत खलियानों को तबाह किया गया ! इसके बाद अंग्रेजों ने नेपालियों के चंगुल से गढवाल कुमायूं को छुड़ा कर इसको विभाजित कर दिया ! टेहरी को गढ़वाल के राजा को दिया गया और बाकी गढ़वाल और कुमायूं को कुमायूं कमीशनरी बनाकर अपने अधीन कर दिया ! इस तरह गढ़वाल कुमायूं १८१५ से लेकर १५ अगस्त १९४७ तक अंग्रेजों के अधीन सिसकारियां भरता रहा ! देवता देव भूमि छोड़ कर चले गए, इतश्री धीरे धीरे रूठ कर जाने लगी ! नाम को देव भूमि रह गयी ! फिर विकास के नाम पर नदियों में बाँध बनाने के लिए, पहाड़ों में सुरंगे निकालने के लिए बम ब्लास्ट किये गए, पहाड़ कमजोर पड़ गए ! जंगल काटे जाने लगे, भूकम्प और बादल फटने से तबाही मचने लगी, गाँवों के गाँव बाढ़ की चपेट में आगये, हजारों ग्रामीण काल के गाल में समा गए, और लाखों बेघर होगये ! रही सही कसर १६ जून २०१३ की बिध्वंसकारी बाढ़ ने पूरी करली ! केदारनाथ, बद्री नाथ में बादल फटने से और मूसलाधार वारीश से लाखों प्रयटक जगह जगह फंस गए ! केदारनाथ मंदिर का गुम्बंद सही सलामत रहा बाकी सबकुछ मंदाकिनी में समा गया ! इस त्रादिसी ने भी हजारों स्थानीय और दर्नार्थियों को अकाल मृत्यु की गोद में सुला दिया !
इसकी सीमाएं यद्यपि नेपाल और चीन से मिली हुई हैं लेकिन केंद्रीय सरकार ने इस और ध्यान नहीं दिया ! २००१ तक उत्तर प्रदेश के साथ जुड़ा रहने से इसके साथ विकास के नाम पर सौतेला व्यवहार होता रहा ! उत्तर प्रदेश को इस उत्तराखंड ने गोविन्द वल्लभ पंत, नारायण दत्त तिवारी और हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे मुख्य मंत्री दिए लेकिन वे भी इस देव भूमि का कोई विकास नहीं कर पाए ! आज जब की इस नए राज्य को बने १२ साल हो गए हैं लेकिन न ढंग की सड़कें हैं, न रोजगार के ही साधन हैं ! नाम मात्र के नल लगे हैं पर पानी नहीं है, बिजली के खम्बे खड़े किये हुए हैं बल्लब भी हैं पर लाईट नहीं है ! चस्मे हैं, नदिया हैं पर पहाड़ों के ऊपर बसे गाँवों को पानी की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ! इस तरह जवान बच्चे उत्तराखंड से बड़े बड़े शहरों कस्बों की तरफ जा रहे है आजीविका की खोज में ! भारतीय सेना के तीनों अंगों में उत्तराखंड के सैनिक और अधिकारी बड़ी संख्या में सेवारत हैं ! शिक्षा संस्थान और स्वास्थ्य केंद्र न होने के कारण भी लोग अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिए बड़े बड़े शहरों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं ! प्रधान मंत्री की सड़क योजना के अंतर्गत हर प्रदेश और जिल्लों में प्रत्येक गाँव को सडकों द्वारा जोड़ा जाएगा, पर उत्तराखंड में अभी भी ५०% गाँव इस सुविधा से महरूम हैं ! उत्तर काशी और चमोली श्रीनगर की सुंदरता, हरियाली तो १६ जून की बिनाश लीला ने समाप्त कर दी लेकिन टेहरी में भागीरथी नदी ने अपनी कृपा दृष्टि इस पर बनाए हुए है ! टेहरी के लिए एक रास्ता ऋषिकेश से नरेंद्र नगर होते हुए है और दूसरा देहरादून से मंसूरी, धनौल्टी, चम्बा होते हुए न्यू टेहरी तक है ! पुराणी टेहरी विशाल जलाशय में डूब गयी है ! टेहरी बाँध – पर्वत शिखरों पर बना पहला बाँध ! कुदरत की विनाश लीलाओं के वावजूद उत्तराखंड अपनी आन वांन और शान का ताज पहिने अपना सीना ताने आज भी भारत का जीता जगता प्रहरी है, देश का गौरव है ! अनुमान है कि टेहरी बाँध का पानी देश की राजधानी तक पहुंचाया जाएगा और दिल्ली की डेढ़ करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा !
उत्तराखंड को कही ऐंगल से देखा और समझने का प्रयास भी किया ! इसके अतीत और वर्त्तमान के इतिहास, सांस्कृति, परम्पराओं और कला संगीत, भाषा का अध्यन किया ! कुदरत के बदलते रूपों को नजदीक से देखने का प्रयास किया ! हर बार कुदरत के प्रहारों को झेलते हुए भी एक नए प्रभात के सूरज की लालिमा की तरह मेरा प्रदेश तरो ताजा मुस्कराता हुआ ही मिला ! फूल पत्ते, पेड़ पौधे तेज तूफ़ान के वेग में उड़ जाते हैं लेकिन अगली सुबह नया पौधा, नया फूल हँसता हुआ मिलता है, दूर दराज से पक्षियों का दल महिमान बन कर इसके वन उपवन की शोभा में चार चंद लगाते हैं ! कहते इसके बगीचे के फूल कभी नहीं मुरझाते हैं, केवल देवों के चरणों में स्वयम ही गिर जाते हैं, यही इस ‘देवभूमि’ कहे जाने वाले उत्तराखंड की विशेषता है !
टेहरी का इलाका अभी भी नज़रों से दूर था और इसको देखने की इच्छा बलवती होती जा रही थी ! ९ नवम्बर २०१३ सुबह के चार बजे बड़ा बेटा राजेश कंपनी के काम से अमेरिका से दिल्ली आया, उसी दिन करीब एक बजे उसके साथ मैं मेरी पत्नी, छोटा बेटा बृजेश उत्तराखंड वादियों के दर्शनार्थ निकल पड़े ! रात को गंगा किनारे ऋषिकेश के एक सुसज्जित होटल में विश्राम किया ! यहाँ बड़ी संख्या में भव्य बड़े छोटे मंदिर बहुत सारे देवताओं के निवास स्थान हैं ! लोहे और सीमेंट का बना लक्ष्मण झूला है जिस पर स्कूटर और मोटर साईकिल बड़ी आसानी से आ जा सकते हैं ! रामझूला, नया बना पुष्कर मंदिर, भगवान राम के भाई भरत और लखमन जी के मंदिर दर्शनीय हैं ! हरिद्वार से २३ किलोमीटर की दूरी पर अति सुन्दर प्रकृति की सम्पदाओं से ओत प्रोत ऋषिकेश तीर्थ तपोभूमि प्रयागराज जैसा महात्म्य वाला है ! कहते हैं कि यहाँ की भूमि में एक रात बिताने से ही पुण्य का फल मिल जाता है ! यहाँ बहुत सारे साधू संत गंगा के स्नान का पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए देश विदेशके विभिन भागों से आकर निवास करते हैं ! भरत मंदिर, लक्ष्मण मंदिर , त्रिवेणी घाट, मुनि की रेती देखने लायक स्थान हैं ! नौका से गंगा पार करके गीता भवन तक जाया जा सकता है ! गंगा पार सड़क १५०० फीट की ऊंचाई पर मणिकूट पर्वत पर नील कंठ महादेव जी का मंदिर है ! इस मन्दिर को हम पहली यात्रा के दौरान देख आए थे ! अगले दिन यानि १० नवम्बर को हम देहरादून होते हुए मंसूरी गए और वहाँ से चम्बा रोड पकड़ कर पहले एक पहाड़ी चढ़ कर सुरकंडा देवी के मंदिर मेंदर्शनों को गए ! यह प्राचीन मंदिर समुद्र तल से ९९९५ फीट की ऊंचाई पर बना हुआ बहुत ही आकर्षक और सुन्दर मंदिर है ! लोग रोज बड़ी संख्या में चढ़ाई चढ़ कर यहाँ दर्शन करने आते हैं ! यह स्थान पहाड़ों के ऊपर एक समतल भूमि होने की वजस से बड़ी दर्शनीय और रमणीक है ! यहाँ से उत्तराखंड की घाटियाँ, दूर दूर तक हिमालय पर्वत की बर्फीली चोटियां, चौखम्बा और बहते हुए नदी और झरने नजर आते हैं ! पुराणों के मुताबिक़ यहाँ एक बार देवराजिंदर भी आये थे ! धारणा है कि जब महाराजा दक्ष ने अपने राज्य में महायज्ञ किया था उस यज्ञ में शंकर जी का अपमान किया गया था, जिसे दुखी होकर उनकी पुत्री सती ने उस यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति देदी थी, शंकर जी उनकी मृत नीरजीव देह को कंधे पर उठाए हुए इन पर्वत शिखरों पर विचरते रहे, इस तरह यहाँ पर सती का सर गिरा था,उन्ही के नाम से इस मंदिर का नाम पड़ा सिरकंडा देवी ! बाकी हिस्से हिमांचल प्रदेश की भूमि में गिरे थे और वहाँ हर अंग के नाम पर मंदिर बने हैं ! दर्शन करके नीचे सड़क पर आए और मंसूरी से ३० मील की दूरी पर धौनाल्टी नामक स्थान पर रुके ! एक छोटा सा सड़क से जुड़ा कस्बा है धनौल्टी, बहुत खूब सूरत कुदरती साज सजा से सुव्यवस्थित शांत पहाड़ियों के बीच बसा हुआ ! यहाँ गढ़वाल मंडल के होटल के अलावा एक और मॉडल टाईप का सब सुविधावों से सज्जित होटल है ! इस पर्वत शिखर पर इतने सुसज्जित होटल को देखकर अमेरिका के लास बेगस के होटल की याद ताजी होगई ! इस होटल में हमने दो रात बिताई, बहुत आनंद आया ! यहाँ पर गर्म कपड़ों की जरूरत पडी, ठण्ड कुछ ज्यादा थी ! सड़क से ऊपर पहाड़ी पर चढ़ने के लिए एक कच्चा रास्ता है, ये सारा इलाका एको पार्क के नाम से जाना जाता है ! बैठने के लिए बेंच पड़े हैं, झोला हैं, कुर्सियां हैं ! उसे रास्ते से हम हैकिंग करते हुए करीब १५००सौ फीट ऊँचे एक समतल उपजाऊ भूमि तक चले गए ! यहाँ से उत्तराखंड का चारो धाम, हिमालय, बड़े बड़े नगर, नदियां, देखी जा सकती हैं ! इससे आगे करीब ३० किलो मीटर पर काणाताल १८० हाईट नामक जगह है जायं कुछ एजेंसियां गर्मियों में स्कूली बच्चों के लिए कैम्प लगाते हैं और इन कैम्पों के द्वारा बहुत सारी शारीरिक और मानसिक तनाव को दूर करने के लिए व्यायाम, हैकिंग, और बहुत सारी मनोरंजक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं ! १२ नवम्बर को हम लोग अपनी यात्रा के खट्टे मीठे अनुभवों को संचित करके वापिस आगये !
All the attractive photos depicted by my daughter-in-law Bindu.
बद्री विशाल जयहिंद ! हरेन्द्र
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