jagate raho
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शहर में गमों की वरसात हो रही है,
सरकारें लंबा तान कर सो रही है !
ख़ास आदमी आम बनकर आता है,
परिवार रिश्तेदारों सहित ख़ास
बन जाता है !
बेचारा असली आम आदमी
आम बनकर रह जाता है !
ख़्वाब देखते देखते,
ख़्वाबों का महल बनाता है,
ऊंची उड़ान चन्द्र मंगल तक जाता है,
झूठे आश्वासनो के
बोझ तले दब जाता है,
फिर सिस्कारियां भरता है,
रोज जी जी कर मरता है ,
हर रोज आशाओं का सूरज निकलता है,
भ्रष्टाचार की चक्की में पिसता है,
आखिर थक कर वह भी गहरी नींद सो जाता है !
गली गली में बात हो रही है,
शहर में ग़मों की वरसात हो रही है ! 2 ! हरेन्द्र
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