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पांवों के नीचे आकर पत्थर पिघल जाते हैं,
हमें देख के भूत बिचारे घबरा के गिर जाते हैं,
हम आ गये मैदाने जंग में हमसे ना टकराना,
सिर फूटे कहीं टूटे टांग फिर हमसे ना कहना !
सम्भल न पाया पहले बताया नहीं !
अंगारों पर चलते हैं अंगारे बुझ जाते हैं’
हिमालय के ग्लेशियर भी पिघल जाते हैं’
साईकिल गिरा देते हैं, लालटेन बुझा देते हैं’
उठे हुए ऊँचे थप्पड़ को हम गिरा देते हैं;
जरूरत पर हम आप को झाड़ू पकड़ाते हैं,
लाल सलाम कहते हैं जो हमसे कतराते हैं,
चलते चलते हाथी भी राह बदल जाते हैं,
शेर की गरजन संग हम दहाड़ लगाते हैं.
शेर दिल वालों से ही हम हाथ मिलाते हैं !
दिल वालों के दिल में स्नेह जगाते हैं,
कमल कमल है यह कमल
हर दिल में बस जाता है,
जय जवान जय किसान
का नारा बन कर आता है !
हम नेता बनाते हैं उन्हें भट्टी में गलाते हैं,
जो सोना बन जाते हैं वही नेता बन पाते हैं,
हम हल चलाते हैं, अलार्म बजाते हैं,
सुस्त पडी जनता को सोने से जगाते हैं,
सुखी पडी धरती पर हम कमल खिलाते हैं,
हम वो बला हैं, तूफ़ान भी रुख बदल जाते हैं !
जिस पार्टी में जाते हैं, हल चल मचाते हैं,
खिलाफ खड़ा होता कोई जमानत गवांते हैं !
ज़रा संभल के रहना, फिर हम से ना कहना,
सम्भल न पाया पहले बताया नहीं !
कल तक झोला उठाए जो मंत्री बन जाते थे,
रिश्वत चोरी के धन से जो महल बनाते थे,
आज पड़े हैं खुली सड़क पर सब कुछ लुटा के,
लूट ले गए सोना चांदी इन्हें मजनू बना के !
ऐसे भ्रष्ट शैतानों से बच के रहना,
फिर हमसे न कहना
संभल न पाया पहले बतलाया नहीं !
हरेन्द्र
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