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२०१४ अमेरिका की सुखद यात्रा इम्मीग्रेशन खिड़की पर खड़े हुए तो बिना कुछ पूछे पास पोर्ट पर ६ महीने रहने की स्वीकृति के साथ स्टेम लगी और पांच मिनट के अंदर पास पोर्ट हमारे हाथों था !

jagate raho
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वैसे प्रभु कृपा से अमेरिका आना जाना २००३ से जारी है ! कुछ साल जैसे 2004, २००९ और २०१२ को छोड़ कर बार बार मैं अपनी पत्नी के साथ अमेरिका आ रहा हूँ ! जब पहली बार २००३ में मेरे बेटे राजेश ने मुझे फोन पर बताया की हम अपना पास पोर्ट तथा वीजा तैयार कर लें, हमें जल्दी ही अमेरिका, यूटा साल्ट लेक सिटी पहुचना है, दिल जोर से धड़कने लगा, एक भाग में फूल झाड़ियाँ झड़ रही थी, दूसरी तरफ अनजान जगह विदेश, जहां के बारे में सूना तो बहुत कुछ है लेकिन वहाँ जाने के बारे में कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था, अब जाने का मौक़ा मिल रहा है ! अकेले पहली बार जाना सोच कर ही ‘सारे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी थी ‘ ! उन्हीं दिनों २००१ में अमेरिका के मैं हटन, न्यू यॉर्क शहर में ११० मंजिली दो इमारतें, world trade tower ओस्माना बिन लादिन के आतंकवादी संगठन ने धरासायी कर के विश्व के सारे देशों को भयाक्रांत कर दिया था ! अमेरिका अभी तक अपने को आतंकवादियों के रेंज से बाहर सुरक्षित समझ रहे थे, इस दुर्घटना से उनका वह विष्वास भी डगमगा गया ! विश्व के तमाम देशों को अपने अपने देश के सुरक्षा साधनों को और मजबूत करना पड़ा ! फिर अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने विश्व में सारे देशों में चल रहे अपने दूतावासों को विजा के नियमों को और जटिल करने के आदेश जारी कर दिए थे ! सिनियर सिटिज़न होने की वजह से हमें वीजा लेने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई ! २०१३ तक अमेरिका आते रहे, हर बार इम्मीग्रेशन खिड़की पर काफी सवाल जबाब होते थे ! इस बार मैं अपनी पत्नी के साथ दो जून को इतिहाद आबू धाबी की इयर लाईन से न्यू यॉर्क पंहुचा , उधर नरेंद्र मोदी जी की ताज पोशी २६ मई को हो गयी थी ! शायद इसी का असर रहा हो की अब की बार २ जून को जब हम खिड़की पर पहुंचे तो अधिकारी महोदय ने अंगूठे और अँगुलियों के निशाँ लेने के अलावा कुछ नहीं पूछा और पांच मिनिट में ६ महीने अमेरिका में रहने की स्वीकृति देकर पास पोर्ट पर मोहर लगाई और हमें वापस दे दिए !
मौसम यहां आजकल स्वर्ग बना है ! रात को हल्की रजाई की जरूरत पड़ती है ! इस देश में एक मजे की बात और है की बहुत सारे मंहगे मंहगे सारी सुविधाओं से लैस बंगले नुमा मकान जंगलों के बीच हैं ! गगन चूमते पेड़ बहुत सारे पौधे और घनी झाड़ियाँ हैं, सदाबहार चश्मे हैं, मकान दूर दूर हैं, लेकिुन यहां कभी कभार एक आध मोटी गिलहरी जरूर नजर आ जाती पेड़ों से उतरते चढ़ाते, अन्यथा यहां कोई भी छोटा बड़ा जानव्रर नजर नहीं आता ! न कोई हिंसक न बंदर, लंगूर, या लोमड़ी या सियार ! पेड़ लगाए जाते हैं उन के दोनों और से स्पोर्ट दिया जाता है ताफक वस सीधे खड़े रह सके ! सबसे सकून वाली बात जिसने मुझे ज्यादा ही प्रभावित किया वह है यहां १०० २०० मील के दायरे में रहने वाले भारतीy होली दिवाली जन्म दिन या कोई अन्य त्यौहार हो सब एक स्थान पर इकट्ठा होकर मनाते हैं ! बच्चों के जन्म दिन पर क्लास के सारे बच्चे अपनी मम्मी या डैडी के साथ
इस शुभ अवसर पर इकट्ठे होते हैं ! अंग्रेज भी हिंदुस्थानी कड़ी चावल, भर्ता और दूसरे ब्यंजनों को बड़े चटकारा ले लेकर खाते हैं !
यहां तो पाकिस्तानी भी बड़ी दोस्ती की बातें करते हैं ! एक पाकिस्तानी हिन्दू मिला था कहता है, ^^मुझे तो हिन्दुस्थान पसंद है, हमारे पास सिंध प्रान्त में सबसे ज्यादा जमीन थी इसलिए हमारे पूर्वज भारत नहीं गए”” जिसका उन्हें आज भी मलाल है ! वैसे उनके कहने के मुताबिक़ पाकिस्तान में ज्यादातर बड़े बड़े बिजनेस वाले हिन्दू ही हैं जिनके आगे बड़े बड़े रसूक वाले मुसलमान भी नतमस्तक होते हैं ! ये स्वयं वहां बड़े इंजिनियर थे ! बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए अमेरिका वाई हैं ! दो दिन के मेल जोल से ही उनसे दोस्ती होगी है !
मोदी जी सितम्बर में अमेरिका आनेवाले हैं, भारतीयों के चहरे खिले हुए हैं, बहुत सारे तो बड़ी उत्सुकता से उस दिन का इन्तजार कर रहे हैं जिस दिन मोदी जी के चरण अमेरिका की धरती पर पड़ेंगे और भारत में कांग्रेसियों के चेहरों पर दिन के उजाले में भी गहरे काले बादलों की छाया नजर आएगी ! बाकी अगली बार हरेन्द्र की डायरी से

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