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राहें थी अनजान मैं चला जा रहा था,
सामने से वो आ रहा था,
मैंने हेल्लो किया,
उसने जबाब दिया,
हेल्लो हेल्लो करते करते वो दोस्त बन गया,
मुझे कोई मिल गया !
बहुत सारी बातें हुई,
कुछ उसने कुछ मैंने कही,
कर्म कुकर्म धर्म अधर्म
समाज राजनीति पर चर्चा हुई,
बनते बिगड़ते रिश्ते
रुपया पैसा, बँगला – गाड़ी,
सेवादारों की फ़ौज अगाडी पिछाड़ी
सब कुछ है प्यार मोहब्बत नहीं
दूर दूर तक कहीं !
मोह माया की जंजीरों में जकड़े हैं,,
नाग देवता ने जैसे पकड़े हैं !
सभी इस करानाती जंजीर से बंधे हैं,
किसी के हाथ पाँव तो किसी के कंधे हैं !
राजा, रंक, नेता, मंत्री,
संत फ़कीर, चौकीदार संतरी,
जनता रूपी अभिमन्यु को चक्रब्यू में फंसा रहे हैं,
लाक्षा गृह में भाई पांडवों को जला रहे हैं !
नारी रूपी द्रोपदी दांव पर लग रही है,
चीर हरण चक्षु द्वार से अश्रु गिरा रही है !
भीष्म द्रोणाचार्य कपट विश्वास घात से
घायल पड़े हैं,
नकली टांगों पर खड़े हैं !
इज्जत गई आवरू गयी,
सब कुछ लूटा कर
उन्होंने वीरगति पायी है,
छोड़ गए हैं पीछे,
चिन्ह रुपी कर्मों की लकीर,
बनकर नंगे फकीर,
चंद मिनटों में वह सारी जानकारी देगया,
कलयुग में एक चमत्कारी मिल गया,
वह दोस्त बन गया,
लगा कोई मिल गया ! हरेन्द्र
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