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जिंदगी हसीन है हंस के गुजार लो,
खुद न हंस सको फूलों से उधार लो !
खिलखिलाते फूलों में भंवरे आ रहे,
बिन बुलाए महिमान गुनगुना रहे,
पूछो इन्हे बगिया में किसने बुलाया,
चोरी का शहद ये किसको दे आया !
नदियों का कलकल चिड़ियों का शोर,
घाटियों में गुंजता शोर चहुँ ओर,
स्नान ध्यान करती पीती हैं पानी,
सुन्दर सी चिड़ियों की सुन्दर सी रानी,
चीं चीं करके उड़ती बनाती हैं टोलियां,
एक ही स्वर है मधुर मधुर बोलियाँ,
संग उनके गीतगा गला सुधार लो,
ये जिन्दगी हसीं है हंस के गुजार लो !
मछलियाँ भी नदियों में गाँव हैं बसाती,
हाउस टैक्स पता नहीं किसको देके आती,
जगमगाते ये सितारे नील गगन में,
चन्दा है बीच में बैठा मगन में !
दिन के उजाले में नजर नहीं आते,
रात को हैं फिर से ये महफ़िल सजाते,
चोरी न डकैती न भ्रष्टाचार है,
यही तो कुदरत का व्यापार है,
दिल में छिपे चोर को अब तो मार दो,
ये जिंदगी हसीं है हंस के गुजार लो ! हरेन्द्र
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