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किस्सा पुराना है पर ज्यादा पुराना भी नहीं है ! मैं धीरे धीरे जवान हो रहा था, दोस्त मेरे दिल फेंक थे, स्टेज पर जाकर कोई फ़िल्मी गीत
गाता, कोई शायरी करता, कोई आप बीती सुनाता तो कोई कविता/ शायरी सुनाता ! दिल मेरा भी बहुत करता लेकिन गीत गाने के लिए गला मीठा और सुरीला होना चाहिए जो मेरे पास नहीं था, कविता- शायरी याद नहीं होती थी ! अगर कभी किसी शायर की गजल शायरी याद करके स्टेज पर खड़े होने की हिमाकत करता भी तो ऐन वक्त पर पंक्तियाँ भूल जाता और पीटे हुए कवि की तरह नजर बचाते पतली गली से नौ दो ग्यारह हो जाता ! और एक दिन मेरा एक दोस्त मुझे पकड़ कर स्टेज पर जबरदस्ती ले आया ! कुछ पंक्तियाँ रटाई गयी थी, कुछ मैंने स्वयं बना डाली ! खड़ा होगया, कुछ देर तक दर्शकों को देखता रहा, एक मन चला बोला, “अबे कवि के बच्चे उल्लू की तरह टुकुरटुकुर देखता ही रहेगा की कुछ कहेगा भी “? मैंने धड़कते दिल को शांत किया, गला साफ़ किया, फिर खिल खिलाते हुए पहले खूब हंसा ! पहले तो दर्शकगण मुझे फटी फटी आँखों से देखते रहे फिर वे भी मेरे साथ हंस पड़े ! जनता की हंसी ने मेरा हौसला बढ़ा दिया और मैंने पहली कविता का पाठ किया ;-
“मुझे हंसी आई दर्शक हंस पड़े,
बुजुर्ग थे बैठे हुए और जवान थे खड़े,
दिल धड़क रहा था, जवान बंद थी,
दर्शकों ने हल्की सी चुटकी थी ली,
उल्लू के नाम से मैं हंस पड़ा,
मेरे ठीक सामने एक मुच्छल था खड़ा,
बोला गुस्से से मेरी मूंच्छों पर हंसा’,
‘नहीं भैया’, मैंने एक ब्यंग कसा,
‘क्या है मुच्छें तुम्हारी देश की शान है,
आन है मान है और पहिचान है,
शायर बना हूँ ये मुच्छें देखकर,
कविता भी है न्योछावर इन्ही मूँच्छ पर’ !
खुश होकर उसने मुझे कंधे उठा लिया,
तालियां बजी मुझे शायर बना दिया !
और मैं शायर बन गया ! हरेन्द्र
भाइयो मेरी जवान खुल गयी
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