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मेरी माँ जी

jagate raho
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मेरी माँ जी बहुत पिछली लाईन में खड़ी थी जब भगवान जी किस्मत बाँट रहे थे ! जब माँ की बारी आई तो भगवान जी का अच्छी किस्मत का
पिटारा खाली हो गया था ! भगवान जी ने जब मेरी माँ से पूछा की “किस्मत के नाम पर कुछ नहीं बचा है फिर भी मांगो, किस्मत के टोकरे में जो भी शेष है तुम्हे दे दूंगा ! माँ ने भगवान से कहा जो कुछ आपके पास है दुःख सुख लेकिन मुझे एक ऐसी वस्तु जरूर दे देना जिससे मैं गरीबों के बच्चों को किसी भी बिमारी परेशानियों से मुक्ती दिला दूँ और उनके चेहरे की मुस्कान वापिस दिला दूँ ! माँ ५ साल की थी, माँ की मां को भगवान ने बुला लिया. ११ साल के होते ही उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधार गए. ! दो भाइयों की एक बहिन थी, फिर भी भाइयों ने उन्हे माँ बाप की कमी महसूस नहीं होने दी. शारीरिक दृष्टि से माँ दुबली पतली थी ! पर माँ महत्वकांक्षी थी’ इरादा पक्का ! परेशानियों से कभी नहीं घबराती थी ! ससुराल में बहुत सारी जिम्मेदारियाँ खेती और भरा कुटुंब मिला ! खेत खलियान, गाय बछिया, दूर चश्मे से पानी भर कर लाना, कूटना पीसना ये सारे काम माँ के लिए जरा अपनी हिम्मत से बाहर के थे फिर भी माँ ने हिम्मत नहीं हारी. ! ३२ साल मेरे पिता जी भी स्वर्गवासी होगये थे, छोड़ गए थे माँ को पीछे पांच बच्चों की जिम्मेदारी देकर ! इनकम का कोई साधन नहीं था ! दादा जी काफी वृद्ध हो चुके थे और अस्वस्थ ही रहने लगे थे ! एक साल के अंदर अंदर सबसे छोटा प्यारा भाई गोविन्द को भी पिता जी ने अपने पास बुला लिया ! बहुत प्यार बच्चा था, मैं तो आज तक भी उसकी सूरत को नहीं भूल पाया हूँ ! माँ एक सदमें से उभर भी नहीं पाई थी की एक और मानसिक आघात लग गया ! बड़ा भाई कुँवरसिंह १४ साल का था उसने हल पकड़ लिया था ! मैं मामाकोट चला गया पढ़ाई करने अपने छोटे मामा जी के पास ! पूरे १२ घर मकान में रह गए थे माँ एक ६ साल का छोटा भाई विजय और एक साल की बहिन शान्ति ! २ सालों के अंदर अंदर दादा जी भी चल बसे ! हाँ दादा जी के पास एक जड़ी थी, जिसको पिलाने से नन्ने बच्चों को हर तरह की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती थी ! वो जड़ी दादाजी माँ को दे कर गए थे ! उन दिनों डाक्टर वैद्य काम होते थे और बहुत दूर नगर कस्बों में रहते थे ! गरीब के बच्चे अनियमित खाना खाने से अक्षर बिमार हो जाया करते थे, हमारे दरवाजे पर हर दिन तीन चार बीमार बच्चों के माँ बाप खड़े रहते थे ! मां निश्वार्थ भाव से मुफ्त दवा देती थी ! वही माँ द्वारा अजिर्त किया गया पुण्य आज हमारे काम आ रहा है !
उन दिनों दूर दराज के इलाकों में सही देख भाल न होने से बहुत सी महिलाओं की प्रशव पीड़ा के दौरान अकाल मृत्यु हो जाया करती थी ! माँ ने स्वेच्छा से इन गरीब महिलाओं की मदद करने के लिए मुफ्त नर्श का काम भी शुरू किया ! उनकी बचाई हुई महिलाएं आज भी उन्हे बड़ी श्रद्धा से याद करती हैं ! माँ को बच्चों से बड़ा प्रेम था, खाने के समय पडोसी बच्चे भी आ जाते थे तो माँ जैसे हमे खिलाती थी वैसे ही उन्हें भी खिलाती थी !
औरों की सियत का ध्यान रखते रखते माँ ने कभी अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा ! उन्हें अध कपाली सर दर्द रहता था ! किडनी मे पत्थरी बढ़ने लगी, आँखों में मोतियाँ बिंद आगई थी ! आपरेशन के लिए तारीख भी मिल गई थी लेकिन ऐन वक्त पर कोई न कोई अड़चन आ जाती थी ! वे रोज नियमित तौर पर सुबह सबेरे उठ कर नहा कर भगवान को याद करके लम्बी वाक पर चली जाती थी ! जिंदगी के आखिरी दिनों तक भी उन्होंने अपना ये नियम नहीं छोड़ा ! १० सालों से एक टाईम का खाना शुरू कर दिया था ! चारपाई पर आखिरी दिनों में केवल दो दिन रहे ! ०३ नवंबर १९९८ सुबह के साढ़े चार बजे ८६ साल की उम्र में बड़ी शान्ति से मां ने चोला बदली किया और ५३ साल बाद स्वर्ग में पिता जी से जा मिली ! आज माँ हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सीख उनकी निस्वार्थ सेवा, अपनी चिता न करते हुए गरीब बच्चों और महिलाओं के लिए समर्पित जीवन आज भी सार्थक बनकर आस पास उनकी मौजूदगी का अहसाश कराती है ! माँ तुम कहीं भी हो तारा बनकर नील गगन में विचरण करते हुए हमारी सुरक्षा की चिंता कर रही होगी या देवी भगवती के दरवार में पूजा की थाली लेकर हमारी खुशहाली की दुवा मांग रही होगी ! माँ आपके आशीर्वाद का तथा आपकी मानव के प्रति की गई सेवाओं का फल हमें मिल रहा है ! आज हमारी यही कामना है की हमारी माँ स्वर्ग में सुख चैन और शांती से रहे !!
माँ कौशल्या देवी को समर्पित ==== हरेन्द्र

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