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हर रोज की तरह मैं आज भी पार्क की सैर करने गया ! दो तीन चक्कर लगाने के बाद मैं इने गिने दोस्तों के साथ एक बेंच पर बैठ गया ! इस स्थान पर हमने तीन बेंचे एक साथ मिलाके रखी हुई थीं ताकि बढ़ती हुई संख्या को बैठने में कोई परेशानी न हो ! चार पांच चहरे तो रोज मिलने वाले जान पहिचान के चहरे थे, लेकिन उनमें आज एक चेहरा नया था ! पांच फ़ीट तीन इंच की हाईट और ४२ इंच की कमर ! दोनों गाल पेट जैसे ही उभरे हुए गोल गोल ! रंग ज़रा हल्का गोरा, सिर के बाल छोटे मूछें सफाचट, दाढ़ी के बाल कहीं कहीं पर बंजर इलाके में घास उगी हुई ! कान छोटे छोटे और आँखें गालों के उभार से दबी नहीं थी बल्कि बड़ी बड़ी चमकते हुए ! चहरे पर संतोष और कुदरती मुस्कान ! अपनी परम्परा का निर्वाह करते हुए हमने हाथ जोड़ कर उनका ‘अतिथि देवो भवो’ की भाँती अपने क्लब ज्वाइन करने का आभार प्रकट किया तथा उनसे उनका नाम पूछ लिया, बोले ‘नाम तो ऊपर वाले नीली छतरी वाले का होता है, फिर भी इस खाकसार को धिंग धिंग धिंगासिह कहते हैं’ ! नाम सुन कर सबके कान चौकाने होगए, चेहरों पर मुस्कान फ़ैल गयी पर हंसी रोक ली ! वे हमारे महिमान थे और कोई भी असभ्य आचरण हमारे वरिष्ठ नागरिकों के क्लब की बदनामी का शबाब बन सकता था ! वे आगे बोले, ‘आप मेरे गालों और पेट पर नजर टिकाए हुए हैं तो मैं खुलासा ही कर दूँ कि यह मेरी महीने दो महीने या साल पांच साल की कमाई का नतीजा नहीं हैं इस विशाल भण्डारनुमा गोदाम को तैयार करने में मुझे पूरे ६५ साल लगे हैं ! नतीजा आज आप लोगों के सामने है ! इस साम्राज्य को संभालने में मुझ दिक्क़ते तो बहुत आरही है पर मैं भी हिम्मत नहीं हारा हूँ’ ! जब हमने उनसे उनके काम के बारे में पूछा कि ‘वे इस विशाल साम्राज्य की देख रेख लालन पालन के लिए आखिर करते क्या है’ ? बोले, ‘मेरा गाँव दार्जलिंग की एक पहाड़ी के ऊपर है ! माँ बाप ने मेरे चहरे पर भविष्य के राज नेता के चिन्ह देखकर मुझे स्कूल में भर्ती कर दिया था, हम गरीब थे, माँ जी पिता जी को पूरा यकीन था की मैं पढ़ लिख कर राज नेता बन जाऊंगा और अपने घर में अड्डा जमाये दरिद्र नारायण को निकाल बाहर करेंगे ! मै भविष्य के राजनेता बनने की धून में स्कूल मास्टर द्वारा दिया गया न तो क्लास वर्क करता और होम वर्क तो कभी खोल कर भी नहीं देखता ! रोज मास्टर जी को कोई न कोई बहाना मार दिया करता था, पर एक दिन मास्टर जी का पारा सीमा से बाहर निकल गया, उन्हों ने मेरे गाल पर चार चांटे और पीठ पर तीन डंडे बरसा दिए ! मेरे भविष्य के राज नेता बनने का ख़्वाब चरमरा कर धराशाही होगया ! मैं स्कूल ही नहीं गाँव से भी भाग गया ! उस समय मैं १५ साल का था ! दिल्ली आकर एक मारवाड़ी ढाबे में पहले वर्तन साफ़ करंव पर लगा, फिर कूक बना, मेहनत करता रहा पदोन्नत होता गया, खिसकते खिसकते हेड कूक की उच्च पोस्ट तक पहुँच गया ! आज मैं केवल खाना टेस्ट करता हूँ उसी धावे का ही नहीं अगल बगल में में चलने वाले बहुत सारे दावों का ! रोज पौष्टिक स्वादिष्ट खाना, अच्छी इनकम ! शादी की नहें, मान बाप को देखने फिर गाँव नहीं जा पाया ! एक बार छोटा भाई आया था, उससे खबर मिल गयी थी परिवार की गाँव गली रिश्तेदारों की ! अब तो गाँवों में ही लोगों के लिए विकास कार्यों में हाथ बंटाले पर अच्छी रकम मिल जाती है ! मैं संतुष्ट हूँ और भगवान का धन्यवाद करता हूँ की मैं राज नेता नहीं बना ! आज जब इन राजनेताओं का भष्टाचार उजागर हो रहा है, कोयला मंत्री प्रधान मंत्री तक कोयले की दलाली में कोर्टों का चक्कर लगा रहे हैं, कोई तो मुख्य मंत्री होकर भी मवेशी चारे का स्वाद ले लेकर ९, १० बच्चों का लालन पालन कर रहा है, जेल जाकर बाहर आ के मुस्करा रहा है, जैसे पाकिस्तान से पाक अक्युपाईड काश्मीर ले लिया हो ! बहुत सारे राजनेताओं ने तो गरीब जनता का पेट काट कर उनके खून पशीने की कमाई लूट कर विदेशी बैंकों में काला धन के नाम से जमा किया हुआ है ! मैं इस जघन्य पाप से तो बच गया हूँ ! मेरी सारी जमा पूंजी ये मेरा भण्डार है !
उन्हें हिन्दी का समाचार पत्र पढने का शौक है ! कहने लगे, ‘मैंने ढाबा की नौकरी की ईमानदारी से और आज भी कूक होते हुए भी भ्रष्टाचारी नेता के मुकाबले मैं बहुत महान हूँ ! देखिए गद्दारी का एक ताजा जीता जागता उदाहरण ! एक बहुत बड़े उद्योग के डायरेक्टर भार्गव जी अभी हाल ही में भारत के प्रधान मंत्री जी के साथ तीन देशों फ़्रांस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा पर गए ! डायरेक्टर साहेब ने १० साल पहले एक दर दर भटकने वाले बेकार नवजवान को ७५०० रूपये की पगार में अपनी कंपनी में नौकरी पर लगाया था ! पढ़ा लिखा था, चतुर चालाक था, बढ़ते बढ़ते आज वह कंपनी से २४ लाख सालाना वेतन भत्ता ले रहा था ! लेकिन कहते हैं कुत्ते को घी हजम नहीं होता ! ये जसपालसिंह नाम का डकैत रातों रात एक बड़ी सल्तनस का मालिक बनना चाहता था ! जसपालसिह के भार्गव परिवार में उठना बैठना था, परिवार के हर सदस्य के बारे में वह अच्छी तरह जानता था ! उसने समय का फायदा उठाना चाहां, अपने दोस्त और कंपनी के दूसरे कर्मचारी दीपक के साथ मिलकर नए मोबाइल फोन से फ़्रांस में भार्गव जी को धमकी भरा सन्देश भेजा, ” तत्काल २५ करोड़ रूपए भेजो नहीं तो तुम्हारे परिवार के सदस्यों के साथ क्या होगा, जानकर रूह कांप जाएगी ! भार्गव जी ने तुरत दिल्ली खबर भेजी, पुलिस में, केस दर्ज हुआ और आनन फानन में दोषी कंपनी के ही वफ़ादार मुलाजिम जसपालसिंह और दीपक इस षड्यंत्र के सूत्रधार निकले ! दोनों जेल में फड़गड़ा रहे हैं ! इन्हे तो शक्त से शक्त कारावास की सजा मिलनी चाहिए किसी गहरी अंध कारकार गुफा में लोहे की जंजीरों में जकड कर !” ! इसके अलावा भी उनके पास पुराने और नई खबरें जोक,, किस्से और बहुत कुछ मनोरंजन के साधन हैं जो समय समय पर जागरण जंक्शन में पातरहकों को पढने को मिलेंगे !
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