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इन्सान केवल इन्सान है, भगवान नहीं है,
रखता भगवान को वो दिल में कहीं है !
बाजुओं में बल है, दिमाग है शातिर,
खोज में लगा हुआ जन कल्याण के खातिर !
नदियों का रुख बदल दिया, पर्वत हिला दिए,
भगवान जो न कर सका इन्सान ने किए !
हवा में उड़ रहा है , पर पंख हैं नहीं,
मंगल को खोज लिया उसने अभी अभी !
सागर के जीव भी देखो, डरे हुए,
जख्म हमें मनुष्य नाम के जीव ने दिए !
भगवान भी हैरान हैं इंद्र परेशान है,
भूकम्प बाढ़ लाने वाला यही इन्सान है !
इन्सान केवल इन्सान है भगवान नहीं है !
रखता भगवान को वो दिल में कहीं है !!
सोचता भगवान भी ये अंश मेरा है,
धरती पे इसका चार दिन का डेरा है,
रावण खर दूषण न कंस ही रहा,
ये खेल मेरी अँगुलियों का कृष्ण ने कहा !
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारता !
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम !!
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्मसस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे “!!
आअो एक स्वर से फिर उसे पुकारें,
ले आशीर्वाद उसका शैतान को मारे,
मोदी जी के स्वप्न को साकार करेंगे,
भ्रष्टाचारी नेता जल जल के मरेँगेँ !
तालाबों में कमल के फूल खिलेंगे, ,
आंगनों में गुलाब मुस्कराते मिलेंगे ,
गाँव नगर शहरों को स्वच्छ करेंगे,
असहाय निर्बलों के जख्म भरेंगे !
मंदिर में घंटी बजाता यही इंसान है,
दो टाँगे दिमागधारी यही पहिचान है !
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