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कपटी राम झटका सिंह

jagate raho
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कपटी राम झटका सिंह, हाँ यही नाम था उसका ! चमकती और बड़ी बड़ी लाल लाल आँखें, जिन पर अचानक नजर पड़ जाय तो होश उड़ जांय ! भारी भरकम हाथ, हाथ नहीं लोहे का सिकंजा, अगर गलती से किसी ने हाथ मिलाने की हिमाकत कर दी, तो समझो उसे तुरंत थैरेपी के लिए किसी पहलवान के पास जाना पडेगा, हथेली की हड्डियों को सीधा करने के लिए ! यह उसकी सज्जनता ही कही जाएगी की उसने कभी किसी का हाथ न तो तोड़ा न इतना मरोडा की वह अपाहिज ही हो जाय ! छः फिट हाईट, सांवला रंग, गोल चेहरा, काले बाल कसा हुआ पहलवानी बदन ! सीना करीब चालीस इंच, चौड़ा माथा, निर्भीक निडर !
मेरी आदत है की मैं कभी किसी बस स्टॉप पर ज्यादा देर खड़ा नहीं रहता ! चल पड़ता हूँ अगले बस स्टाप की तरफ, डीटीसी बस हैं, मर्जी से चलती हैं, ड्राइवर चाहे तो बस को कहीं बीच में ही रोक ले, न चाहे तो बस स्टॉप पर भी न रोके ! और इसी चला चली में एक दिन मेरी मुठभेड़ होगयी इस सज्जन से ! मैं जब किसी से हाथ मिलाता हूँ गर्म जोशी से ही मिलाता हूँ ! इसलिए नाजुक हाथ वाले कभी मुझ से दुबारा हाथ मिलाने अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाते ! मैं भी केवल उन्ही से हाथ मिलाता हूँ जो एनर्जेटिक हैं, सीधी गर्दन करके, चेहरे पर एक स्वाभाविक मुस्कान ले कर गर्म जोशी से हाथ मिलाते हैं ! वे सामने से आरहे थे, अपनी धून में, लहराते हुए मस्त हाथी की चाल से ! मैं जब सड़क पर चलता हूँ तो स्वप्न देखकर नहीं चलता, कमर गर्दन सीधी करके, देखकर चलता हूँ, अपने मन को काबू में लेकर चलता हूँ ! जब कभी ऐसी सड़क पर चलना होता है जहाँ वाहनों की आवा जाही बहुत ज्यादा होती है; तो वहां मैं पूरे होशो हवास में अपने बाँए तरफ ध्यान से चलता हूँ ! लेकिन सामने से आने वाले सज्जन, एक तो गलत साइड अपनी दाहिनी ओर चल रहे थे, बिलकुल लापरवाह होकर कभी सड़क के बीचों बीच तो कभी एक दम किनारे किनारे ! कमाल तो तब हुआ जब एक कार बड़ी स्पीड में आकर उनको बचाते बचाते सड़क से बाहर जाकर एक पेड़ से टकरा गयी ! कार का इंजन क्षतिग्रस्त होगया, ड्रावर के सर पर गहरी चोट आई ! उसे पुलिस वाले किसी नजदीकी अस्पताल में लेगए ! खैर डाक्टरों ने ड्रावर की जान बचा ली ! इस दुर्घटना का इस भारी भरकम मस्तराम पर कोई असर नहीं पड़ा !
इसी मोड़ पर उससे मेरी भेंट हुई ! उसने हेलो कहते हुए अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ा दिया, मैंने भी उसी गर्म जोशी से उसे हाथ मिलाया ! मुझे लगा किसी गलत आदमी से हाथ मिला लिया ! ‘भैया ये हाथ नहीं लोहे का शिकंजा था’ ! जिंदगी में पहली बार लगा की मैंने हाथ किसी इंसान से नहीं दानव से मिला लिया है ! दिन में तारे नजर आने लगे ! गनीमत थी की उसने जल्दी मेरा हाथ अपने शिकंजे से मुक्त कर दिया नहीं तो आगे क्या होता यह कल्पना से परे है ! मैं सोचने लगा की मेंरी जगह कहीं शोले का गबरसिंह होता तो उससे कहता ” ये हाथ मुझे दे दे कपटीराम झटका सिंह ये हाथ मुझे दे दे ” ! हाथ मुक्त हुआ, बहुत देर तक मैं अपने झन झनाते हुए हाथ की रुकी हुई नस नाड़ियों को सहलाता रहा ! अब आई परिचय की बारी ! उन्होंने कहा “मेरा नाम कपटी राम झटका सिंह” है ! जमुना किनारे अखाड़ा है वहीं अनपढ़ गवार, समाज पर बोझ बने बेकार आवारा लड़कों को पहलवानी सिखाता हूँ, कबड्डी, कुस्ती के नए नए दाव बताता हूँ, जापानी पद्धति से जुडो कराटे की ट्रेनिंग देता हूँ ! आज रोज समाचार पत्रों में आप पढ़ते हैं, ‘काम से लौटने वाली अकेली लड़की का गैंग रैप’ होगया है, निर्भय जैसी लड़की बेचारी मौत और जिंदगी से लड़ते लड़ते बहुत कष्ट झेल कर भगवान को प्यारी होगई, उधर उन कुकर्मी शैतानों को जिन्होंने एक मासूम जिंदगी को असमय ही मरने के लिए मजबूर दिया, जेलों में पड़े पड़े सरकार की मुफ्त की रोटी तोड़ रहे हैं, स्वास्थ्य लाभ उठा रहे हैं ! क्या इन दरिंदों, हत्यारों को जीने का हक़ दिया जा सकता है ? अभी तक सरकार जेलों में इन शैतानों को मेहमान बनाकर खिला पिला रही है, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रख रही है और केस मंद गति से न्यायालयों की सीढ़ियां चढ़ रहा है ! १९९३ का मुम्बई बम धमाकों का, आतंकवादियों का सरगना, जिसमें २६६ लोग मारे गए थे, २२ साल बाद ३१ जुलाई को फांसी पर लटकाया गया, लेकिन ये समाज से निकले हुए, नेता, राजनेता, सफ़ेद वस्त्र धारण किए पर अंदर काला दिल लिए हुए, अपनी राजनीति चमकाने के लिए, ऊलजलूल भाषणवाजी करके जनता में भ्रम पैदा करने की कोशीश कर रहे है ! आपने देखा आजकल संसद में क्या होरहा है, शोर =शराबा, धींगा मस्ती, तोड़फोड़ ! ये हमारे प्रतिनिधि हैं, इनको पता भी है की जनता उनके इस असभ्य व्यवहार को देख रही है, फिर भी घिनौना दृश्य उपस्थित कर रहे संविधान के पवित्र अंदिर में, जहां से इन्हें रोजीरोटी मिलती है ! इनके बंगलों में बौक्षर, पहलवानॉ की अपनी निजी सेना मौजूद रहती है ! पता है ये क्यों जनता का रोज करोड़ों का नुकशान करके संसद का काम काज नहीं चलने देते ? विकास कार्यों में क्यों रोड़ा अटका रहे हैं ? क्यों की जनता ने इनसे सत्ता छीन कर विपक्ष को अवसर दिया है, भाई भतीजा वाद पर अंकुश लगाया है, इससे ये ४४ जनता से नाराज हैं ! मैं समाज में ऐसे दुष्ट आत्माओं को अपने ढंग से उनकी कथनी करनी से अवगत करवाना चाहता हूँ !
“मेरा असली नाम कमल किशोर था ! परिवार में मम्मी पापा एक भाई और मैं था ! गांव में जमीन कम थी पर उपजाऊ थी ! हम सब मेहनत करते थे और अपनी आजीविका के लिए फसल पैदा हो जाती थी ! हम अपने में खुश थे और रोज सोते जागते अपने इष्ट को याद किया करते थे ! मेरा बड़ा भाई खेतों में पापा की मदद करता था और मैं स्कूल जाता था ! ८ वीं की परीक्षा पास कर ली थी ! उन दिनों मेरे इलाके से शैतानसिंह नाम का एक शख्स विधान सभा में विधायक बन कर चला गया ! पढ़ा लिखा था, तेज चतुर था, राज्य में विकाश मंत्री बन गया ! पापा ने कहा की “क्यों न हम मंत्री जी से मिल कर तुम्हारी नौकरी की बात करें ! न चाहते हुई भी हम उसके कार्यालय में चले गए ! उसने मुझे अपना बैग उठाने के लिए रख लिया ! मैं जानता था की बड़े बड़े राजनेताओं का कैरियर नेताओं के बैग उठाने से ही शुरू होता है, मैंने भी सोचा शायद मेरी भी किस्मत चमक जाय ! पगार भी ठीक मिलती थी , परिवार में हम सब खुश थे ! एक दिन अचानक नेता जी मेरे गाँव आए, पूरे गाँव में घूमने के बाद मेरी जमीन पर उनकी नियत फिसल गयी ! बोले, “क्या आप मुझे यह जमीन का टुकड़ा दे सकते हो ?”, पापा ने इंकार कर दिया ! नेता ने एक मुश्त रकम देने की भी पेशकश की, लेकिन यह हमारी पुश्तैनी जमीन थी, परिवार के भरण पोषण का केवल एक मात्र यही सहारा था, पापा के साथ हम सारे परिवार वालों ने जमीन बेचने से लाफ इंकार कर दिया ! उस दुष्ट मंत्री ने पटवारी से मिलकर तहसील में जमीन के पूरे पेपर अपने नाम करवा दिए और एक रात अचानक बुलडोजर लाकर हमारा सारा घर गिरा दिया, मेरे मम्मी पापा भाई सब सो रहे थे और वे भी इस बुडोजर की चपेट में आकर मुझे अकेला छोड़ कर अंतरिक्ष में समा गए ! मैं उस दिन इसी शैतान मंत्री के काम से दूसरे गाँव गया हुआ था, इसलिए बच गया ! मैं डीसी के पास, पुलिस अधिकारी के पास विपक्षी नेताओं के पास जाकर रोया गिड़गिड़ाया, न्याय पाने के लिए, लेकिन किसी ने मेरी फ़रियाद नहीं सूनी, यहां खाश रिश्तेदार जो कल तक दोस्ती का दम भरते थे, आज आँख चुराने लगे थे ! बस उसी दिल मेरे दिल में एक चिंगारी जल उठी थी, , इस कुंद पडी निष्क्रिय समाज को जगाने का संकल्प लिया, अपने ढंग से ! उसी दिन से कमल किशोर से मैं कपटी राम झटकासिंह बन गया ! एक महीने के अंदर ही मंत्री महोदय एक कार दुर्घटना में सर की चोट के कारण अस्पताल ब्याड पर तड़पते रहे, ऊपर वाले से मौत मांगते रहे, लेकिन कुकर्म तो बहुत किये थे, पूरे एक महीने तक काँटों की शय्या में चिल्लाते कष्ट उठाते रहे, तब कहीं जाकर, आत्मा निकल पायी ! परिवार वालों ने उससे पहले ही नाता तोड़ लिया था,इस तरह शास्त्र विधि से अग्नि भी उसे नसीब नहीं हुई ! आज न तो वो पटवारी ही है, न वो पुलिस अधिकारी है जिसने उलटा मुझे ही पड़ताड़ित किया था, मेरे मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट करने पर ! ये सारे अपने कुकर्मों की आग में जलकर भस्म हुए ! मैं एक आश्रम में गया, शान्ति प्राप्त करने केलिए, क्या देखता हूँ वहां का संत जिसके नाम की लोग माला जपते थे, जिसके आश्रम में बहुत से दुखी आत्मा आते थे दुखों से छूट कारा पाने के लिए, लेकिन वो संत, वह संत नहीं संत के चोले में इंसानियत का दुश्मन, दरिंदा शैतान था, दुखी लड़कियों की आबरू उतारता था ! गुंडों से शिकायत करने वालों को बेरहमी से पिटवाता था ! यह घिनौना दुष्कर्म देखकर मैं आश्रम छोड़कर वापिस आगया ! संत का चोला और इतना बड़ा पापकर्म, नरक कुण्ड में कीड़े बन कर रेंकते रहेंगे ! अब मैंने निश्चय कर लिया है की मैं समाज से दुदकारे, तिष्कृत बेसहारे बच्चों को जीने की कला सिखाऊंगा, उन्हें आत्म निर्भर स्वालम्बी बनाऊंगा” ! उसी उद्देश्य की पूर्ती के लिए मैंने ये अखाड़ा खोला है !
मैं अनपढ़ गंवार लड़कियों को भी आत्म रक्षा करने के लिए प्रशिक्षित करता हूँ ! मैं एक ऐसी सैना का निर्माण . करना चाहता हूँ जो बिना पूछ के बंदरों की तरह कल तक अंग्रेजों के आगे पीछे घूमने वाले, उनकी गुलामी के तगमे शान से सीने पर लगाने वाले, असली देश भक्तों की सूचना अंग्रेजों को देकर उन्हें फांसी तक पहुचाने में अहम भूमिका निभाने वाले, आजादी के बाद सत्ता पर काबिज होकर दोनों हाथों से लूट मचाने वाले, नेता बने भ्रष्टाचारी, लुटेरे, कालाधन विदेशी बैंकों में पहुंचाने वाले, एनजीओ के नाम पर बिक्लांगों के लिए लाखों रुपया सरकार से लेकर स्वयं हड़प करने वाले, कोयला घोटाला, और भी बहुत सारे घोटाला करने वाले, एमपी एमएलए बनकर गरीब किसानों की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों को, उनके घरों में पनाह वाले गुंडों को गांधी जी के वसूलों को माध्यम बनाकर, शबक सिखाना चाहता हूँ ! गरीब किसानों, मजदूरों जिनका मेहनत का पैसा भविष्य निधि, मालदार लोगों से नहीं मिल पा रहा है, उनकी मदद करता हूँ ! पहले सरकारी कार्यालयों में कोई नहीं सुनता था अब सुनते भी हैं, इज्जत भी करते हैं ! जिस आफिस में जाता हूँ, काना फूसी शुरू हो जाती है “आगया है, उसकी फाइल बड़े साहब के केबिन में है, हस्ताक्षर के लिए ! तुरंत जाकर हस्ताक्षर के साथ फाइल बाहर आजाती है और रुके हुए पैसों का भुगतान होजाता है
दिल्ली में बढ़ते हुए कुत्तों की आवारा गर्दी पर अंकुश लगाने के लिए, उन्हें सभ्य बनाकर बड़े बड़े रईसों के, राजनेताओं के उद्योगपतियों के घरों में पालने वाले लैब्राडोर, जर्मन सेफर्ड , गोल्डन जैकाल, ग्रे वुल्फ, यूं.यस बौक्षर, टौबिकैत आदि को रिप्लेस करने की वृहत योजना पर काम कर रहा हूँ ! आज के दिन कुत्तों के निर्यात पर देश का बहुत सारा धन विदेशों में जाता है ! इसी की आड़ में आयकर बचाने के चक्कर में भ्रष्ट लोग अपने काला धन को विदेशी बैंकों में बेनामी खाता खोलकर जमा करवा देते हैं ! ये आवारा कुत्ते शिक्षित होकर निर्यात किए जाएंगे !
सफाई के बारे में उनका कहना है की “हमारा देश विभिनताओं में एकता का प्रतीक
है ! साथ ही स्वयं कुछ नहीं करना, जो उपर वाला हाकिम करेगा, उनके मातहत उनकी नक़ल करेगा ! आपने देखा होगा की जब प्रधान मंत्री ने सफाई अभियान के तहत वाराणसी में स्वयं झाड़ू लेकर सफाई अभियान शुरू किया था तो सारा सरकारी महकमा सजग होकर सफाई अभियाम में जूट गया था ! फिर तो सफाई कर्मचारी भी ऊपर वाले के हाथों में झाड़ू देखेंगे तभी कर्मठ होंगे ! आजकल दिल्ली के पार्कों में सड़कों पर आवारा कुत्तों का जमघट होगया है ! कल ही का समाचार है की एक सात साल के बच्चे को आवारा कुत्तों ने काट कर मार डाला ! सडकों में पार्कों में जहाँ तहाँ वे टट्टी पेशाब करके सैर सपाटा करने वालों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं ! घरों में कुत्ते पालने वाले कुत्तों को घुमाँने ले जाते हैं सडकों पर, वहीं उनसे टट्टी पेशाब करवा कर गंदगी में इजाफा करते हैं ! है किसी आवारा कुत्तों के हितैषी के पास कोई समाधान ? मेरा सवाल है उन लोगों से जो सडकों पर जगह जगह उनके लिए खाना रख आते हैं सड़कों के किनारे चाहे वे खाएं या न खाएं, पर गन्दगी ही फैलाते हैं” ! इतना कह कर वे चल देते हैं अपनी राह, उसी मस्त चाल से ! मुझे लगा अभी दीन दुखियों की पुकार सुनने वाला कोई है इस धराधाम पर ! शायद कोई देवता ही अवतार लेकर आया हो ! भूल चूक लेनी देनी ! हरेन्द्र

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