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अब भूतपूर्व सैनिक भी अपने मैडल वापस कर रहे हैं ! विपक्ष गुब्बारे pर हवा भर रहे हैं (ब्यंग)

jagate raho
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हमारा देश गणतांत्रिक, प्रजातांत्रिक, धर्म निरपेक्ष स्वतंत्र देश है ! हर कोई अपनी सीमाएं तोड़ कर बाहर जा रहाहै ! दबंग निर्बल को सत्ता रहा है, दिन दहाड़े चोरी डकैती, हत्याएं, किडनेपिंग, आतंकवादियों द्वारा भीड़ भाड़ वाले स्थानों में निर्बल, निहत्थे महिलाओं के साथ सरे आम अभद्र व्यवहार किया जा रहा है चाकू, छूरी बन्दूक पिस्तौल दिखाकर और जनता मूक दर्शक बन कर तमाशबीन बनी खड़ी रहती है !
पुलिस अफराधी को पकड़ लेती है लेकिन फैसला होते होते कम से कम ,एक पीढ़ी बीत जाती है ! हर कोई भ्रष्टाचार के जाल में फंसा पड़ा है ! अनुशासन नाम की चिड़िया के पंख कुतर दिए गए हैं ! सरकारी कार्यालयों में हाजिर सबकी भरी पडी है लेकिन ६० प्रतिशत कुर्सियां खाली पडी मिलती हैं ! जनता शिकायतें लेकर जाती है और बैरंग लौट आती है ! बहुत सालों बाद एक ईमानदार, अनुशासन प्रिय अपने को जनता का सेवक बताने वाला प्रधान मंत्री देश को मिला है ! उन्होंने आते ही अनुशासन सुधारने, कालाधन जो विदेशी बैंकों की अर्थ व्यवस्था में सुधार कर रहा था, उसको वापिस देश में लाने के लिए कदम बढ़ाया, भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का बीड़ा उठाया, तिरंगे पर एक विकास का और रंग जोड़ कर ऊंचा उठाया ! लेकिन भ्रष्टाचारियों का निवाला मुंह से छीन गया ! कालाधन वालों की कालाबाजारी से कमाया हुआ धन उनके हाथ से निकल गया, सालों से सत्ता से चिपके नेताओं की भँवें तन गयी ! “हमारा पिछ्ला रुतवा स्टेटस कुछ भी रहा हो, कल तक हम राजा थे, अरे जनता की सेवा करते रहे, अगर उससे छोड़ा बहुत अपने मुंह में भी भरते रहे तो कौन सा जुल्म होगया ! आज तो हम पुरानी और भारी भरकम पार्टी की महा रानी हैं ! सत्ता में नहीं थी पर किंग मेकर तो थी, किंग को काबू में रखने का रिमोट कंट्रोल तो मेरे ही पास था ! पता नहीं कहाँ से कल का चाय बेचने वाला देश का करणधार बन गया और हमारा हरवक्त चलता हुआ मुंह बंद कर दिया ! हम भी किसी से कम नहीं हैं ! उत्तर प्रदेश में अल्प संख्यक मारा गया, जनता को भड़का दिया की ये केंद्र की सरकार ने करवाया है”! इनकी हिम्मत तो देखिये महारानी के मान्यवर दामाद की अपार सम्पति और सस्ते दामों में बहुत सारी जमीन खरीदने की जांच का बबनडर खड़ा कर दिया ! हमने भी भी ताकत का जलवा दिखा दिया, अपने कारिंदों को इकठा करके राष्ट्रपति भवन जाकर एक लंबा सा शिकायति प्रार्थना पत्र राष्ट्रपति जी को पकड़वा दिया, देश में क़ानून व्यवस्था बिगड़ रही है ! वो हमी थे जिनके कहने पर लेखकों, कवियों, वैज्ञानिकों ने अपने सरकारी तगमें -पुरुष्कार लौटा दिए ! हमने ही तो दिए थे, हमारे कहने पर लौटा दिए ! अब फौजी भी वन रैंक वन पेंशन के मसले पर सरकार से असंतुष्ट हो गए है , उन्हें भी हम उनकी वीरता बहादुरी के लिए मिले हुए मैडलों को जमा करने की गुजारिस कर रहे हैं और उसका असर हो रहा है “!

हम भी जानते हैं की फौजियों का मैडल अन्य पुरुष्कारों से भिन्न है, ये मैडल उन्हें उनकी बहादुरी, बफादारी, ईमानदारी, देश के लिए दी हुई कुर्वानी के लिए दिया जाता है, बर्फानी ऊंची ऊंची चोटियों में सर्दीली तेज हवावों के थपेड़ों को सहन करके, बीहड़ जंगलों में आतंकवादियों, पड़ोसी दुश्मनों, देश के गद्दारों को ढूंढकर उन्हें उनके कुकर्मों के लिए दण्डित करने के लिए दिए जाते हैं ! लड़ाई के टाइम पर सरहद की रक्षा के लिए और पीस टाइम पर आतंरिक सुरक्षा के लिए मेडल, स्टार दिए जाते हैं ! इनको लौटाना मैडलों की तौहीन ही नहीं बल्कि अपने स्वयं के मान सम्मान को भी आघात पहुंचाने वाला है ! लेकिन हम क्या करें हम सत्ता से दूर नहीं रह सकते, इसके लिए हमें भूतपूर्व सैनिकों को मैडलों के साथ वीर चक्र, महावीर चक्र अशोकचक्र सौर्यचक्र को भी लौटाने के लिए मनाना पडेगा तो हम मनाएंगे ! सत्ता पाने के लिए हम कल के राजनीतिज्ञ दुश्मनों से भी हाथ मिला लेंगे ! रही विकास की बात, इन बिगत सालों में हम विकास ही तो करते रहे, गरीब का पेट नहीं भरा तो हम क्या करें, हम उनका पेट भरते रहे, उनके पेट कुम्भकरण की तरह चौड़े होते गए, और संख्या रक्त बीज की तरह टिड्ढी दल बन कर देशों दिशाओं में फैलती गयी !
फिर सरकार ने हमसे पूर्व सैनिकों को, वन रैंक वन पेंशन देने का हमारा एजेंडा हमसे छीन लिया, हम पिछले ४२ सालों से प्लानिंग बना रहे थे की यह सौगात फौजियों को कल देंगे परसों देंगे, लेकिन पूरा पैसा तो विकास में और कमीशन में खर्च होगया ! और इस सरकार ने हमारे इस ४२ साल के पाले पोसे अजेंडे को डेढ़ साल में ही फौजियों को पकड़वाकर वाह वाह लूट ली ! ये हमारे वर्दास्त के बाहर था ! लारालप्पा लोरी फौजियों को हम सुनाते रहे, सब्ज बाजार दिखाते रहे और जब हम देने ही वाले थे इन्होंने हमसे सत्ता छीन कर देनदार का ताज स्वयं पहिन लिया ! हमने भी दिखा दिया, हम भी किसी से कम नहीं हैं ! तुम डाल डाल हम पात पात ! हरेन्द्र

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