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निकल पड़ा था जीवन सफर पर, स्वप्नों का महल बनाता हुआ,
खट्टी मीठी यादें विगत की, सीने में अपने छिपाता हुआ !
मुझे याद है रस्ते का पत्थर जिससे मुझको ठोकर लगी थी,
घाव तो भर चुका है मगर, दर्द की चुभन अभी तक वही थी !
साथ थे मेरे अपने पराये, चल रहे थे अगल बगल में,
आगे भी थे पीछे भी लेकिन जख्मों का अहसास किसी को नहीं था,
अरबों की सम्पति पीछे छोड़ कर सफर में नेता भी चल रहे थे,
चमचों की लाईन भी साथ थी, बोझ बीमारी का खुद ढो रहे थे !
डाक्टर भी थे नर्सें भी थीं, नौकरों की संख्या बड़ी थी,
दर्द में नेता के भागीदार बनता, उस भीड़ में कोई ऐसा नहीं था !
दामाद भी था राजघराने का जमीन किसानोंकी दबाया हुआ,
बद दुवाएं गऱीबों की गले में डाले आसुंओं की कीमत चुकाता हुआ,
चला था घर से मैं तो अकेला, साथ में लोग जुड़ते गए,
किसी के कपडे फटे पुराने कोई पहिने थे नए नए !
हर वर्ग जाति और कर्मों का, अपर लोअर सब धर्मों का,
बढ़ते बढ़ते भीड़ बढ़ी, बना कारवाँ हंसों का !
कोई अखड़ शराबी क्रोधी था, कोई शांत असत विरोधी था,
कोई भगवा में था रंगा हुआ, कोई धन दौलत का लोभी था !
कुछ जन सेवक संत फ़कीर भी थे, जागृति की मशाल जलाते हुए,
कुछ पापी आतंकवादी थे, बन्दूक तलवार लहराते हुए,
कारवां में रावण कंस भी था, पापों की गठरी उठाये हुए,
श्री राम कृष्ण बलराम भी थे, पापी काया को मिटाते हुए !
कदम से कदम मिलाते हुए, मंजिल पे दृष्टि जमाते हुए,
विभिनताओं में एकता थी, यह शीन सभी को दिखाते हुए !!
पद दलित हुई ये भूमि हमारी, नभ से सितारे उत्तर आये,
बन के सुभाष, भगत, आजाद बदले में फन्दा फांसी पाये !
उन्हीं के रक्त की बूंदों पर टिका हुआ ये देश हमारा है,
आजाद हैं हम भारत वासी, जय हिन्द हमारा नारा है ! जय हिन्द जय हिन्द !!!!
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