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मेरा परिवार, राज घराना,
क्या तुमने नहीं पहिचाना,
दादी के पापा थे धनवान,
पर भारत भूमि में उनकी
हो न सकी पहिचान,
एक दिन अचानक उनकी
महात्मा से हुई पहिचान,
महात्मा जी भोले भाले,
पीएम की कुर्सी देदी दान !!
फिर क्या था,
करिश्मा उनका कर गया काम
इस कुर्सी पर लिखा दिया
अपने परिवार का नाम !
वे गए दादी आयी,
दादी ने अमर्जेंसी लगाई,
पापा ने फिर गद्दी पाई,
ये विरासत है हमारी,
सरकारी इस पर मोहर लगाई !!
पापा गए, मैं था नादान,
विदेशी मूल की मम्मी
हुई नहीं पहिचान !
उन्होंने तिकड़म लड़ाई,
अपने ही वफादार को
पी एम की कुर्सी दिलवाई !
६७ साल के राज में,
किये हजारों काम,
गरीब को निर्धन बनाया,
असमर्थ हुआ किसान !!
पर जनता ने पता नहीं,
क्यों हमको दंड दिया,
विपक्ष ने हमसे
हमारी कुर्सी छीन लिया !
अब, क्यों कर रहे ये विकास की बात,
विकास बंद करो मिलाओ हमसे हाथ,
मिलाओ हमसे हाथ, फिर खिचड़ी पकाएंगे,
काला धन बहुत पड़ा है मिल बाँट के खाएंगे !
हमने विकास नहीं किया तुम भी मत करो,
जनता के पैसे पर मौज किया तुम भी मौज करो!!
“एक हारा थका जुवारी की जुवानी” !!
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