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ये दुनिया है जिसमें हम रहते हैं

jagate raho
jagate raho
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ये दुनिया है जिसमें हम रहते हैं,
पास पड़ोसी कहते हैं,
भया, कमालके आदमी हो,
बेइज्जत होते हो,
फिर भी ऐसे माहोल में रहते हो !
हमने कहा, बताओ हम कहाँ जायँ,
इस धरती पर सदा कौन रहा है ?
भैया ये मृत्युलोक है,
राम कृष्ण भी गए,
वे तो अवतारी थे वे भी नहीं रहे,
फिर तुमको हमको कौन पूछता है,
हम तो उनकी चरणो की धूलि भी नहीं हैं !
सुनो तुम्हे सुनाता हूँ,
एक मजे की बात !
बहुत गहरी घूप अन्धेरा,
नजर नहीं आता था,
कौन कहाँ है, मैं तो हूँ, पर पडोसी नजर नहीं आता,
बादलोंमें गरजना हुई,
अपनी भाषा में बादलों ने अपनी बात कही,
अरे तुम केवल आदमी हो भगवान नहीं,
भूल मत जाना कहीं की तुम केवल,
इंसान हो, भगवान नहीं !!
मैं जाग गया, अपने होश में आगया,
मैंने अपने साथियों से कहा,
जगाओ उनको जो अपने को खुदा समझ बैठे हैं,
वो केवल पतंगे है, उसके इशारों पे चलते हैं,
जो उनको दिखाई नहीं देता,
उनको देखने के लिए दिब्य चक्षु चाहिए,
दिब्य चक्षु मिल जाएंगे,
सच्ची श्रद्धा होगी मन में देव स्वयं दे जाएंगे !
इंसान मुस्कराता है, घर में बहार आती है,
कुदरत मुस्कराती है, तबाही साथ लाती है,
ज्वाला मुखी, तूफ़ान, भूकम्प, बाढ़, सुनाली,
रौद्र रूप में प्रकटी हुई हो जैसे माँ महाकाली !
पता नहीं कल क्या होगा, कोई नहीं जानता,
भ्रष्टाचारी भरे खजाना अमर अपने को मानता !
रावण कंस जैसे बलशाली अमर न होने पाए,
हम तुम तो पतंगे हैं, अफराधी समझ न पाए !
याद रखो तुम केवल इंसान हो भगवान नहीं,
भूल मत जाना कहीं !! हरेन्द्र

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