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वतन के लिए
वे वतन बेचते हम बचाते रहे,
रक्त की बूँद धरती गिराते रहे !
दर्द होता रहा छटपटाते रहे,
सरहद से दुश्मन हटाते रहे,
गोलियां दुश्मन की लगती थी दिल पर,
उनका कोई गम नहीं था हमें,
मगर चोट अपनों ने मारा जब भी,
पिघल कर जख्म फिर बाहर आगया,
वफादार हम थे गद्दार वो,
मगर उंगली हम पर उठाते रहे !
हम वतन पर जवानी लुटाते रहे,
वे वतन बेचकर मुस्कराते रहे ! १ !
राजनेता सुरक्षित रहें देश में,
सुरक्षा में खुद को मिटाते रहे,
माँ धरती की गोदी में बैठकर,
आतंकी नारे लगाते रहे,
इधर अपने नौसीखिए नेता,
उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे,
गद्दारी के गुर सिखाते रहे !
विपक्ष में बैठे कल के राजनेता,
गद्दारों से नजदीकी बढ़ाते रहे,
हम अमन की दरिया बहाते रहे,
वे नफ़रत से उसको सुखाते रहे !
भ्रष्ट बने दल दल में फंसे,
ये रिश्वत के कीचड में फंसते रहे,
हमारी राहों में कांटे बिछाते,
उन्हीं काँटों को हम हटाते रहे,
बात करते शिक्षा श्री गांधी की,
पर खंजर पर खंजर चलाते रहे,
नेता बने राजनेता बने
जनता से दूरी बढ़ाते रहे,
रक्षा वतन की हो न हो,
पर रक्षा अपनी बढ़ाते रहे !
हम सीमा पे सिरों को कटाते रहे,
वे वतन बेच हँसते हँसाते रहे,
वे वतन बेचते हम बचाते रहे,
रक्त की बूँद धरती गिराते रहे ! २ !
चिंता हमें देश की थी मगर,
वे दुश्मन से हाथ मिलाते रहे,
जनता ने संसद में भेजा नहीं,
पर पीछे से संसद में आते रहे,
आतंकी लड़की मारी पुलिस ने,
नेता ने निर्दोष उसको बताया,
अभी तक हमें था भरोषा इन पर,
कुकर्मों ने इनको खुद ही गिराया,
पठानकोट में आतंकी हमला,
सुरक्षाकर्मी थे मारे गए,
शियाचिन में हमीं दबे थे,
ग्यारह के ग्यारह जो स्वर्ग गए,
सरजमीं तो भारत की थी मगर,
यहां भी गीत दुश्मन के गाते रहे,
टाँगे हैं लटकी हुई कब्र में,
नजर कुर्सी पर टिकाते रहे !
खड़े रहने की ताकत नहीं,
बोझ रिश्वत का सिरपे उठाते रहे !
हम वतन पर कुर्वान होते रहे,
वे वतन बेच हँसते हँसाते रहे,
ये वतन बेचते हम बचाते रहे,
रक्त की बूँद धरती गिराते रहे ! 3 ! “हरेन्द्र”
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