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आज के नेता गजब ढा रहे हैं ! (ब्यंग )

jagate raho
jagate raho
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आज के नेता गजब ढा रहे हैं,
रोज हजार के हजार नोट ला रहे हैं,
कुछ जो इनसे बड़े हैं,
करोड़ों में खेल रहे हैं,
घर में रखने की जगह नहीं,
छिपाने को जमीन खोद रहे हैं !
पहले रूखी सुखी खाया करते थे,
आज माल पूवा खा रहे हैं !
राजनीति में आए थे,
पेट पिचका, पिचके गाल थे,
कपडे पुराने, खिचड़ी बाल थे,
आज गाल टमाटर जैसे लाल
पेट मधुमखी छते बन गए हैं,
नेता जी अब खाते पीते घर के,
रईसजादा लग रहे हैं !
हम भी अपने जमाने में राजनीति अखाड़े में
खूब जोर लगाया करते थे,
दस नेता मिलकर मुश्किल से
८० रुपया घर लाया करते थे !
एक बार मैं अकेला 100 रुपया घर लाया था,
पास पड़ोसियों ने मुझे कंधे पर बिठाया था !
जिंदगी में वो अजीब घड़ी थी,
मेरी बुवा आरती की थाली लिए दरवाजे खड़ी थी !
दादी ने उस दिन घी का दिया जलाया था,
पूरे गाँव वालों को शुद्ध घी का हलवा खिलाया था !
बड़े भाई ने उस नोट को,
फ्रेम में जड़ कर दीवाल पर टांग दिया,
आज भी लटका हुआ है किसी ने खर्च नहीं किया !
आज के ये वरिष्ठ नेता हमारी चिलम भरते थे,
नेता बनने के गुर सीखने के लिए
पाँव दबा लिया करते थे !
घर घर राजनीति की पाठशालाएं चला करती थी,
आज के नेताआओं की टोली कही कही साल
एक ही क्लास में रह जाया करती थी,
हमने तो इन्हे देश भक्ति का पाठ पढ़ाया था,
राष्ट्रीय गीत आकंठ रटाया था !
सविधान क्या है, उन्हें समझाया था,
स्वतंत्रता का अधिकार कर्तव्यों से जुड़ा है,
इन्हें धर्मनिर्पेक्ष की घुट्टी घोट के पिलाया था !
पर इन्होंने गुरु दक्षिणा में हमारी शिक्षा लौटा दी,
सरकारी खंजांची बनकर डट कर जाम पी !
पकड़े जाने पर कोतवाल को डांट रहे हैं,
ऊपरी कमाई अपने चम्मचों में बाँट रहे हैं !
भ्रष्टाचार की दरिया में घूसखोरी का चारा डाल रहे हैं,
अरबों खाकर भी डंकार नहीं मार रहे हैं !
देश का विकास रुक गया नेताओं का होरहा है,
अलगाववादी जेएनयूं के अंदर रक्षक बाहर सो रहा है !
सोचता हूँ,
हम पीछे क्यों हैं, कुछ करके दिखलाएं,
भिख-मंगे नंगे भुखों को आरक्षण लाभ दिलाएं !
बच्चा गरीब का फिर हक़ की रोटी खाएगी,
नाम हमारा अखबारों में इंकलाब फिर आएगा !
हरेन्द्र -सोयो मत, जागते रहो !

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