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आओ उत्तराखंड के दर्शन करलो मंदिरों की चौखट पर जाकर आशीर्वाद लेलो

jagate raho
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Sidhabali Templeहाँ, उत्तराखंड देव भूमि के नाम से मशहूर है, फिर देव भूमि में देवता भी बहुत सारे होंगे, देवताओं के लिए देवालय चाहिए था, इसलिए उत्तराखंडियों ने अपनी मेहनत, लगन, तन मन, धन से उत्तराखण्ड को मंदिरों का उपहार दिया, केदारनाथ, बद्रीनाथ, नीलकंठ महादेव, सिद्धबली मंदिर (हनुमान मंदिर) कोटद्वार खोह नदी के पार !महाबगढ महादेव, भैरोंगढी, ज्वाल्पादेवी, इसके अलावा भी गढ़वाल क्षेत्र में छोटे बड़े बहुत से मंदिर हैं ! कुमाऊं क्षेत्र में भी बहुत सारे दर्शनीय, हिमालय की गोद में स्थापित किये कुदरती ख़ूबसूरती से ओत प्रोत मंदिर हैं, इनमें बहुत से तो आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित किये गए हैं ! इनमें दर्शनीय हैं जागेश्वर मंदिर (ज्योति लिंगा), जिला अल्मोड़ा ! ये मंदिर महामृतुंजय जप तप के लिए समर्पित है ! गणनाथ मंदिर प्रसिद्ध है शिव मंदिर गुफा के लिए ! अल्मोड़ा के सतराली गाँव से ४७ किलोमीटर दूरी पर है तथा समुद्र तट से २११६ मीटर की ऊंचाई पर है ! यहां कार्तिक की पूर्णिमा को बड़ा मेला लगता है ! इसके अलावा बागेश्वर चण्डिका,भद्रकाली, बैजनाथ २६ किलोमीटर बागेश्वर जिले से ! रामघाट ,अग्निकुंड, नीलेश्वर, शीतला देवी, त्रिजुगी नारायण, हनुमान मंदिर, गोपेश्वर, स्वर्गाश्रम, ग्वाले देवता (न्याय का देवता), करान्तेश्वर महादेव, नैनादेवी, महाशक्ति पीठ ये सारे हिमालय के नजदीक होने से कुदरती ख़ूबसूरती के लिए आकर्षण के केंद्र हैं ! ऊँचे ऊँचे ओक,, चीड़, बांज, कंडार (शाल) के पेड़ों से ढके घने जंगल ! इन जंगलों में कही स्थानों पर पर्यटकों के लिए विश्राम गृह भी बने हुए हैं !
गढ़वाल के मंदिर – खोह नदी के तट पर बना ये मंदिर सिद्धबली के नाम से प्रसिद्ध है ! मंदिर का आकर्षण पौराणिक घटनावों से जुड़ने से और भी आकर्षक बन जाता है ! कहते हैं यहां पर गुरु गोरखनाथ जी के चेले बालकनाथ भी आए थे और हनुमान जी के साथ मिलकर इस स्थान को पवित्र करके, सिद्ध, बालकनाथ और बलि हनुमान जी मिलकर स्थान का नाम सिद्धबली पड़ा ! मंदिर की एक विशेषता यह भी है की यहां पर्वतों को समतल बनाकर मंदिर को भव्य मंदिर का स्वरूप दिया गया है ! बृद्ध और अपाहिज लोगों के लिए जो सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ हैं, उनके लिए निज वाहन द्वारा मुख्य मंदिर तक जाने का सुगम रास्ता बन गया है ! यहां हनुमान मंदिर के अलावा, शिव मंदिर, शनि मंदिर, देवी भगवती मंदिर, साईं बाबा मंदिर भी बनाए गए हैं ! हर हफ्ते दो दिन शनिवार और रविवार को भंडारा होता है, जो सुबह से शाम तक चलता रहता ! इसमें सभी वर्ग जाति धर्म के लोग, गरीब, मजदूर, रिक्शा चालक, बोझा ढोनेवाले, रेडी द्वारा अपनी आजीविका चलाने वाले, दींन दुखी अपाहिज, भिखारी सब शामिल होते हैं ! ये भंडारा दर्शनार्थियों द्वारा दिया जाता है ! इसके लिए पहले अपना नाम रजिस्टर्ड कराना पड़ता है ! मुझे जानकार ताजुब हुआ की आज की तारीख में रजिस्टर्ड करने वालों की बारी २०२१ में आ पाएगी ! खाने में दो सब्जी, पूरी, हलवा, जिसे शिक्षित रसोइया बनाते हैं और सब मिल कर नीचे पंक्ति में बैठकर छोटे बड़े सब भंडारे का मजा लेते हैं !
वैसे मंदिर बहुत सदियों पुराना है लेकिन उचित देखभाल न होने के कारण यह कुछ सालों पहले खोह नदी की बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त होने की कगार पर था ! एक महंत जी के अथक प्रयास से तथा स्थानीय लोगों के सहयोग से आज यह सिद्धबली मंदिर विश्व पटल पर अपनानाम अंकित कर चुका है ! इसके पूर्व उत्तर में चीड़ के जंगलों के बीच पहाड़ी के ऊपर लैंसीडाउन नामक एक साफ़ सुथरा और कुदरती सम्पदाओं से अोत प्रोत सुन्दर क़स्बा है, जिसे अंग्रेजों ने बसाया था ! कोटद्वारा से ४१ किलोमीटर दूर है ! आने जाने के लिए पहाड़ों के ऊपर तक अच्छी खासी सड़कें हैं ! पहले स्थानीय लोग इसे ‘कालो डांडा’ कहते थे ! यहां पर भारतीय सैना गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग सेंटर भी है ! दूसरे विश्व युद्ध में बंदी बनाए गए कैदियों के लिए लैंसीडाउन के जंगलों में कच्ची बारीकेँ बनाई गयी थी जिनके अवशेष आज भी हैं ! यहां पर तहसील है, बड़े बड़े होटल हैं, स्वीमिंग पूल है, पर्यटकों के लिए और भी बहुत सारे साधन यहां मौजूद हैं ! मई जून के महीने में ये स्थान पर्यटन के लिए अच्छा है ! कोटद्वार से पश्चिम दिशा में लग भाग ५ किलो मीटर की दूरी पर मालन नदी के तट पर कर्वाश्रम नामक स्थान है ! मेनका नाम की स्वर्ग की अफसरा और महान ब्रह्मऋषि
विश्वामित्र की संतान पुराणों में चर्चित शकुंतला का बचपन इसी आश्रम में बीता था ! मेनका तो इस नन्नी सी बची को जन्म देकर नदी तट पर छोड़ कर स्वर्ग चली गयी थी ! कहते हैं रात भर स्थानीय पक्षियों ने अपने पंखों से ढक कर इसकी रक्षा की तथा समय समय पर अपनी नन्नी चोंचों में पानी भर कर इसे पिलाती रही ! सुबह चार बजे कर्णव ऋषि स्नान ध्यान करने इसी स्थान पर आए और इस बची को उठाकर अपने आश्रम में ले आए ! इनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, इस बची को ही अपनी संतान मानकर उन्होंने इसका लालन पालन किया ! बड़ी होकर इसका विवाह हस्तिनापुर के सम्राट दुष्यंत के साथ हुआ ! इसके पीछे भी एक कहानी है की दुष्यंत यहां आखेट खेलने आया था, विवाह करके वह शकुंतला को वेडिंग अंगूठी पहना कर चला गया ! लेकिन शकुंतला ने वो अंगूठी खो दी ! उधर सम्राट अपने राजसी कार्यों में व्यस्त होगया और शकुंतला को भूल गया ! समय निकलता गया, शकुंतला ने एक वैभव शाली वीर पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम भारत रखा ! आने वाले समय में इसी भारत के नाम पर हिन्दुस्तान का नाम भारतवर्ष पड़ा ! समय के साथ बुरे गृह भी टल गए और शकुंतला की अंगूठी एक मचछली के पेट सी निकल गयी ! वह अंगूठी जब सम्राट दुष्यंत को दिखी गयी तो उसे अपनी पत्नी शकुंतला की याद आई ! काफी ढूंढने के बाद उसे शकुंतला और पुत्र रूप में भारत मिले ! दुष्यंत के बाद भरत ही हस्तिनापुर के सम्राट
बने !
चलिए अब मैं आपको उत्तराखंड की पहाड़ियों के ऊपर बने एकेश्वर महादेव मंदिर ले चलता हूँ ! शिव भगवान के बहुत सारे मंदिर देखे और वे सब अलगअलग नामों से जाने जाते हैं ! ४ मई को मैं अपनी पत्नी के साथ कोटद्वार के लिए निकले, मेरा छोटा बेटा बृजेश हमें
पुराणी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मंसूरी ऐक्श प्रेस में बिठा गया था ! वातानुकूल डिब्बे में रात सो कर निकली और अगले दिन सुबह सबेरे हम कोटद्वारा पहुंचे ! यहां पर मेरी पत्नी की भतीजी शोभा अपने परिवार के साथ रहती है स्वयं सरकारी स्कूल में अध्यापक है ! मेरी पत्नी के बड़े भाई भी देहरादून से आए हुए थे ! रविवार सुबह सबेरे हमने अपनी ही कार से एकेश्वर महादेव मंदिर के लिए प्रस्थान किया ! रास्ते में सिद्धबली मंदिर के दर्शन किये, रविवार था, मंदिर में भंडारा चल रहा था, हमने भी भंडारा खाया और दोपहर के लिए भी वहीं से खाना साथ ले लिया ! दुग्गड्डा, फतेहपुरी, गुमखाल, सतपुली होते हुए पौड़ी रोड पर चले, आगे जाके एकेश्वर मंदिर के लिए सड़क अलग हो जाती है ! सतपुली की एक विशेषता यह है की यहां दो नदियां विपरीत दिशाओं से पूर्व और पश्चिम से आकर मिलती हैं, उसी के मुताबिक़ इन नदियों का नाम भी है पूर्वी नयार और पश्चमी नयार ! पहाड़ी इलाके में काफी घुमावदार होने के वावजूद सड़क चौड़ी होने से आने वाली गाड़ी भी आराम से पास हो सकती है ! रास्ते में चीड़ के घने जंगल हैं, इन जंगलों के बीच डिग्री कालेज है जिसमें विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल की सुविधा भी है ! सडकों के किनारे हैंड पंप भी है ! यात्रियों की सुविधा के लिए जंगल के बीच ही आरामगृह भी हैं, ! यहां के आस पास के सारे गाँव पक्के पत्थर सीमेंट
और विभिन रंगों से पेंट किये हुए हैं ! हर गाँव तक सड़क गयी हुई है जहां सड़क नहीं गयी हैं वहां के लिए काम चल रहा है ! खेती चौपट है, अगर कोई अपने घर के आस पास कुछ सब्जी, मकई और फलदार पेड़ लगाने की चेष्टा करता भी है तो बन्दर सेना आकर सब बर्बाद कर देते हैं ! हर गाँव के नजदीक छोटे हलके बाजार हैं जहां हर वस्तु मिल जाती है ! हर बाजार में एक सरकारी नर्स डाक्टर की सुविधा उपलब्ध है ! लेकिन डाक्टर कम ही नजर आते हैं ! गाँवों में पंचायत का जोर है, चुनाव में लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं, कोशिश होती है की ईमानदार प्रधान ही चुना जाय ! कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहां अप्रोच रोड गाँव से काफी नीचे है या फिर ऊंचाई पर है, साफ़ सुथरा चौड़ा रास्ता पंचायत फंड से बनाये गए हैं ! कुछ लोग दूकान चलाकर अपनी आजीविका चलाते हैं, साथ ही गाँवों में फ़ौजी, पैरा मिलिटरी और पुलिस से अवकास प्राप्त पेंशनर हैं ! जवान अपनी आजीविका के लिए तथा बच्चों की पढ़ाई के लिए शहरों में अपने बच्चों के साथ हैं ! कुछ को छोड़कर ज्यादा तर मकानों में बूढ़े पति- पत्नी ही हैं ! कुछ ऐसे भी घर हैं जहां ताला पड़ा रहता है ! राजनीति करने वाले पांच साल में एक बार आते हैं वोट लेने के लिए अपने को जनता का सेवक कहते हैं, दो लच्छेदार बात करके फिर पांच साल के लिए गोल हो जाते हैं ! किसी को किसी के दुःख सुख से कोई मतलब नहीं है !
सफाई = आप कोटद्वार देवी रॉड पर या उसके उतर वाली सड़क पर चले जाइये सडकों पर गंदे नाले का पानी जगह जगह सड़क पर बदबू के साथ आपका स्वागत करता मिलेगा ! कमालकी बात तो ये है की सुरेंद्रसिंह नेगी जो उत्तराखंड राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं स्वयं कोटद्वार विधान सभा के विधायक हैं ! खाली प्लाट कूड़े करकट से भरे पड़े हैं ! स्थानीय लोगों को तो आदत पद गयी है लेकिन बाहर से आने वालों को इन सडकों पर नाक में रुमाल लगाकर चलना पड़ता है ! ये तो तब की तस्वीर है जब सारे देश में सफाई अभियान जोर शोरों से चल रहा है ! इससे अच्छी साफ़ सफाई तो ऊँचे पहाड़ों में बसे गावों और कस्बों में है, जहां लोग बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपने आस पास साफ़ सफाई रखते हैं!
एकेश्वर महादेव मंदिर = हम लोग साढ़े १२ बजे पहाड़ी के ऊपर बांज व् चीड़ के पेड़ों से बीच बने ‘एकेश्वर महादेव’ मंदिर के आँगन में पहुँच गए थे ! मंदिर स्थानीय लोगों की कड़ी मेहनत से बिलकुल नया और आकर्षक बनाया गया है ! इसकी अध्यक्ष हैं श्रीमती दीप्ती रावत ! मैंने दानदाताओं की लिस्ट देखी, सबसे बड़े दानदाता राकेश गौड़ हैं, जिन्होंने अपनी कमाई से ७४,000 रूपये दान किये,
दूसरे नंबर पर श्रीमती भगवती देवी गदली हैं जिन्होंने ७०,००० रूपये दान किये, सूर्य कान्त धस्माना जिहोने ५०,००० हजार रूपये दांन खाते में डाले ! इनके अलावा बीच में और बहुत सारे दानदाता हैं जिन्होंने बड़ी रकमें दान की हैं, ये सारे स्थानीय पास पड़ोस गाँवों के लोग हैं ! भाजपा के भूतपूर्व विधायक शैलेन्द्र नेगी कोटद्वार के, जिन्होंने १६००१ रूपये दान दिये, उनका नाम भी दानदाताओं में था ! पुजारी जी की मृत्यु होगई है उनकी पत्नी मंदिर की देखभाल कर रही हैं ! रविवार का दिन था, मंदिर कमेटी के कर्त्ता धरता मौजूद नहीं थे ! न कोई दर्शनार्थी ही था ! चारों ओर शांत वातावरण ! मंदिर आँगन में बैठ कर लांच किया वहीं पास पानी की टंकी भी है, यानी मंदिर में सारी सुविधाएं हैं ! पुजारिन के मुताबिक जब किसी भक्त की इच्छा होती है तो मंदिर में कभी भी भंडारा होता है और आसपास के लोग जुड़ जाते हैं ! मंदिर बहुत पुराना है लेकिन आज की मंदिर कमेटी ने इसे बिलकुल आधुनिक बना दिया है ! मंदिर के दर्शन किये महादेव जी को पुष्प पानी चढ़ाया और वापिस कोटद्वार के लिए रवाना होगये, शाम के ५ बजे हम कोटद्वार में थे ! अगले दिन यानि सोमवार को ट्रेन से दिल्ली आगये ! पाठकों से अनुरोध है इस यात्रा को पढ़े जरूर और अपनी टिप्पणी दें ! जय हिन्द ! हरेंद्र जागते रहो !Siddhabali Temple

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