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अपने सीने पर सेक्युलर का बिल्ला लगाने वाले चारा चोर, झूठे, मचाते शोर, दलाल, जमाखोर धन के व्यापारी, ! कम्युनिस्ट भी धर्मनिरपेक्ष का बिला लगाते हुए फिर रहे हैं, जिन्होंने १९६२ की लड़ाई में चीन की बदतमीजी का समर्थन किया था, जिसे देश अभी तक भूला नहीं है ! विदेशी बैंकों में काला धन छुपा है पर देश में बनते सत्यवादी नामधारी ! यहां भी काला धन डब्बल ब्याड के अंदर गोपनीय कक्ष में, ज्यादा होजाए तो ब्याड रोम में खुदाई, ये चरित्र है अपने को सेक्युलर वनाम धर्मनिरपेक्ष कहने वाले नेता राजनेताओं का ! हमने किसी छाताधारी बरसाती झोला छाप नेता से पूछ लिया, “नेता जी आप तो सदियों से राजनीति में सक्रिय हैं, कृपा करके बताएं जो लोग ‘धर्मनिरपेक्ष, धर्मनिरपेक्ष’ कहते कहते नहीं थकते, वास्तव में ये किस चिड़िया को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं’ ! वे बोले, कमाल है अपने को पत्रकार कहते हो, लेखक कहते हो और तुम्हे अभी तक भी सेक्युलर वनाम धर्मनिरपेक्ष का मतलब समझ नहीं आया ! सुनो ! धर्मनिरपेक्ष कोई चिड़िया का नाम नहीं है, ये सविधान में दिया हुआ दिशा निर्देशन है ! आपने देखा हो या सुना होगा, की एक बड़े प्रदेश के सीएम मवेशी चारा खा गए, देखिये, देखा जाय तो उन्होंने कोई गलत नहीं किया, उन्होंने मनुष्यों के साथ मवेशियों को भी साथ मिला लिया और बैल के साथ बैठकर इत्मीनान के साथ चारे का सेवन किया, यह भी सत्य है की वे चारा ज़रा ज्यादा ही खा गए और बैल ने शोर मचाकर बखेड़ा खड़ा कर दिया, मीडिया में बात आगई धर पकड़ भी हुई, लेकिन सीएम धर्मनिरपेक्ष थे, साफ़ निकल गए ! ! केंद्र सरकार ने गरीब बिमार लोगों के लिए प्रदेश में दवाइयां भेजी थी , सीएम महोदय ने दवाइयां बेच कर शिक्षा विकास में लगा दिया, ये जरूर है की उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षित किया उनका भविष्य बनाया, ताकि भविष्य में वे प्रदेश की कमान सम्भाले, विकास करें औरआने वाले समय में सारे प्रदेश में खुशहाली लाने में सक्षम हों ! राज्य के मतदाता खुशहाल होंगे, सत्ता की बागडोर अपने परिवार में ही होगी ! आप कहते हैं की कम्युनिष्ट जो अपने को सेक्युलर कहते फिरते हैं उन्होंने सन १९६२ में चीन का साथ दिया था, ‘ अरे प्रोपगंडा करने वाले तो तिल का ताड़ बना देते हैं ! इन्होने क्या साथ दिया था, भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जी और चीन के प्रधान मंत्री ने मिलकर एक नारा दिया था, “हिन्दी चीनी भाई भाई “, उन्होंने उसी नारे को तो आगे पूस किया ! धर्मनिरपेक्ष की जलते बलती एक ताजी मिशाल, देश की सत्ता से चिपके एक बहुत पुरानी राजनीतिक पार्टी, जो अभी तक एक विशेष परिवार के अहसानों के तले दबी पडी है, के उपाध्यक्ष महोदय एक बहुत गरीब किसान की झोपड़ी में उनके साथ भोजन जीमने रात बिताने चालू गए थे ! बेचारे गरीब किसान की हालत खस्ती होगई, कहीं से खाट मांग कर लाया, कहीं से आटा, दाल सब्जी उधार खाते में लाया ! उपाध्यक्षजी ने धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाण देते हुए उनके साथ झोपड़ी में भोजन का सेवन किया और झोपड़ी में सोया ! वह कंगाल था इस बोझ तले और कंगाली में आगया, उपाध्यक्ष महोदय की जयजयकार हुई, मीडिया वालों ने, नेताजी की उनकी गरीबों के प्रति दया और हमदर्दी की दरिया बहा दी, हर समाचार पत्र ने अपने अखबार के प्रथम पृष्ठ पर मिर्च मशाला मिला कर इस खबर को प्रकाशित किया था ! अब आपको ” सेक्युलर वनाम धर्मनिरपेक्ष” का मतलब समझ में आगया होगा ! ये कहते हुये वे नौ दो ग्यारह होगये ! जय हिन्द – भारत माता की जय ! हरेंद्र अमेरिका से
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