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लकड़बग्घों का धर्मनिरपेक्ष

jagate raho
jagate raho
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अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वालों से ज़रा पूछो तो सही की क्या धर्मनिरपेक्ष वे ही लोग हैं,
‘जिन्होंने देश और प्रदेशों में परिवारवाद की धून पर अभी तक राज किया है और कर रहे हैं’ ?
राहुलगांधी-सोनिया गांधी कितने धर्मनिरपेक्ष हैं ? कल तक नहीं थे, जब सत्ता पर थे, सत्ता छीन गयी
धर्मनिरपेक्ष बन गए ! लालू प्रसाद, (क्या लोग इनके जंगल राज, चारा घोटाला,गरीबों की दवाइयों में
खरीद बेचने का घोटाला, आदि आदि ), करुणा निधि, मुलायमसिंह जी, उम्र फारुख का परिवार !
क्या इनकी पार्टियों में इनसे योग्य शासन चलाने वाले नहीं हैं ! देश को एक योग्य, सच्चा देश भक्त,
ईमानदार, वफादार विकास पुरुष मिला है, तो सारे काला धन, डाकू, रिश्वतखोर, गद्दारों आतंकवादियों
से नजदीकी बढ़ाने वाले चोर धर्मनिर्पेक्ष का बिल्ला लगाए मचा रहे शोर, “लूट गए, बर्बाद होगये, मोदीजी
से बचाओ ! बच्चे भूखों मर जाएंगे, हमारी इन सालों में बढ़ाई तोंद पिचक जाएगी, गाल झड़ जाएंगे,
कीचन के स्पेशल माल पूवे बंद हो जाएंगे, विदेशी बैंकों में तीन पीढ़ियों तक के लिए रखे धन को मोदीजी
सरकारी खजाने में जमा कर देंगे ” ! क्या इतना जानने के बाद भी जनता ‘धर्मनिरपेक्ष’ की परिभाषा का अर्थ
नहीं समझ पाई ? अब समय आगया है, देश की जनता को इन मतलब प्रस्त नेता रूपी स्वयम्भू धर्मनिर्पेक्ष
लकड़बग्घों से देश बचाने की !
ममता बनर्जी, बंगाल की मुख्य मंत्री बनी अपने हुनर से, जयललिता तमिलनाडु की
मुख्य मंत्री है, अपने कामों से, अपनी योग्यता और प्रदेश की जनता की निष्काम भाव से सेवा करने से !
फिर ये भद्र महिलाएं इन मतलबी, लोभी, सत्ता के भूखे, भ्रष्टाचारी, कालाधन जमाखोरों से किस मकसद से
दोस्ती का हाथ बढ़ाकर धर्मनिरपेक्ष की परिभाषा को भी दूषित कर रही हैं ! पांडवों का साथ दो, कृष्ण
भगवान से साक्षात्कार होगा, द्रोधन कौरवों से हाथ बढ़ाकर नरक की काली सुरंगे मिलेंगी ! हमारे प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदीजी के परिवार में केवल एक माँ है, अपना सारा वेतन भत्ता गरीब अपंग, भूखे नंगों के लिए
दो टाईम की रोटी और तन ढकने के लिए, सर्दी से बचने के लिए वस्त्र खरीदने और उनकी शिक्षा के लिए
दान खाते में चला जाता है, स्वयं विकास की सीढ़ियों में चढ़ते हुए भारत को एक बार फिर सोने की चिड़िया
बनाना चाहते हैं ! या तो भारत के राष्ट्रपति की कुर्सी की गरिमा बढ़ाई है इंसान के रूप में अवतरित
देवदूत स्वर्गीय श्री एपीजे अब्दुल कलाम जी ने या फिर भारत के प्रधान मंत्री की बदनाम कुर्सी को
पवित्र और स्वच्छ किया है अपने ईमानदारी, वफादारी, विकास के गंगा जल से धोकर श्री नरेंद मोदी जी ने !
वहीं पिछली सरकार के सरगना, सरकारी खजाने की चाबी लेकर बोफर्स काण्ड, हेलीकाफ्टर खरीदारी में
कमीशन काण्ड, नेशनल हैराल्ड में हेरा फेरी काण्ड, एशियाड गेमों में अरबों का घोटाला काण्ड, विकलांगों
के लिए केंद्रीय सरकार से अनुदान की राशि अपनी निजी सम्पति बनाने का काण्ड, कोयला घोटाला काण्ड
और पता नहीं क्या क्या काण्ड करने वालों को क्या जनता सस्ते में छोड़ देगी ?
भारत की सैन्य शक्ति का विश्व भर में नाम है ! संशाधनों की कमी के बावजूद भी वे विपरीप प्रस्थितियों में,
सीमाओं पर देश की अखण्डता के लिए अपना रक्त बहा रहे हैं, वे भी तो किसी माँ बाप की बुढ़ापे की लाठी हैं, किसी नारी
का सुहाग हैं, नादान प्यारे प्यारे बच्चों के बागवान हैं, क्या उनकी जान की कोई कीमत नहीं है, इन बेगैरत मीडिया वालों
के पास इनके लिए संवेदना के दो शब्द भी नहीं हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे एंडीटीबी जैसे मीडिया के नकारा लोग
आतंकियों के मारे जाने पर ऐसे हाय तोबा मचाते हैं जैसे इनके परिवार का कोई ख़ास-म-ख़ास चल बसा हो ! जैसे आतंकियों
और अलगाव वादियों से इनका कोई गहरा रिश्ता हो ! क्या जनता इन देश द्रोहियों को इस गद्दारी का दण्ड नहीं दे सकती है ?
समय आयेगा आतंकी ही इनकी बोलती बंद करेंगे तब भागेंगे सैनिकों की तरफ अपने नापाक प्राण रक्षा के लिए ! अरे, नासमझो,
सैनिक उसको कहते हैं, जो मातृभूमि के लिए प्राण न्योच्छार करने के हर दम तैयार रहता है, जो स्वयं युद्ध क्षेत्र में बुरी तरह घायल
पड़ा है, बुरी तरह रक्त बह रहा है, लेकिन अपने घायल साथी को बचाने के लिए पहले उसे अस्पताल पहुंचाने की गुजारिस करता
है ”मेरे साथी का रक्त बहुत निकल गया है उसे तुरंत इलाज की जरूरत है, मेरे बचने के चांसेज कम हैं,” ! साथ ही साथी द्वारा
अपने मां-बाप पत्नी बच्चों को खबर पहुंचाता है, “जब तुम मेरे गाँव
जाओ, मेरे माँ-बाप पत्नी बच्चों से मिलो, उन्हें यह सन्देश जरूर दे देना, “देश की मिट्टी मिट्टी में मिल गयी, आखरी रक्त की
बूँद तक सारी शत्रु शक्ति को तहस नहस कर दिया था, गोली पीठ पर नहीं सीने पर लगी थी, गोली मारने वाले को भी जहन्नुम
पहुंचा कर तुम्हारे कल के खातिर अपना आज भगवान को समर्पित कर दिया है ” ! अरे दरिंदों जरा सोचो अगर कोई तुम्हारा
अपना ही होता और आतंकियों से लड़ता हुआ आखरी सांस भरता हुआ इस सन्देश को भेजता, फिर तुम्हारे पूरे परिवार की
क्या हालत होती ? लेकिन वो देश की अखंडता पर मर मिटने वाला
सैनिक तुम्हारा कोई नहीं था, तुम्हारी सारी दया, करुणा तो आतंकवादियों के लिए आंसू बहाने में खर्च होगई होगी, अब भी देश के प्रति
कुछ प्रेम है श्रद्धा है, तो आ जाओ खुले मैदान में उन सैनिकों की कुर्वानी पर सच्चे मन से “भारत माता की जय कहने के लिए, उनको मान सम्मान
से श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट पर !
काश्मीर के पंडितों को काश्मीर से बाहर निकालने वाले, इस खूबसूरत कुदरती सम्पदाओं से अमन चैन सूबे में आग भड़काने वाले गद्दार, कट्टरपंथी, अवसरवाद, अलगाववाद और आतंकवाद फैलाने वालों के लिए, ये तमाम भ्रष्ट मीडिया वाले जिनको बड़ी बड़ी रकमें. आग भड़काने वालों से मिलती है, आंसू बहाते हैं, सैना बीएसएफ पर पत्थर फेंकने वालों को अपनी वफादारी का सन्देश भेजते हैं ! लेकिन सीमा पर देश की रक्षा के लिए
कुर्वान होने वाले सैनिकों के लिए संवेदना के दो शब्द भी नहीं निकलते इन दुर्जनों की कलम से ! शर्म आती है, ऐसी गंदी राजनीति करने वाले नेताओं से,
मीडिया के मतलबी लेखकों और सम्पादकों से !
आज कुदरत भी सैना की कुर्वानियों पर अपने चक्षुओं से श्रद्धा के अश्रु रूप में पुष्प पंखुड़ियां गिरा रही हैं, दिशा के चारों दिशाओं के दिगपाल भी
मौन उनकी कुर्वानी पर ‘उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं’ ! पत्नी का ये दिल दहलाने वाला सन्देश :-
“वे चले गए बिना कुछ कहे
कि तुम क्या करोगे जब हम ना रहें !
छुट्टी समाप्त हुई वे ड्यूटी पर जा रहे थे,
मां-पिता पत्नी बच्चे स्टेशन तक आये थे,
वादा किया था ” जल्दी आउंगा,
बच्चों को पिकनिक ले जाउंगा,
इस साल का सावन गाँव में बिताउंगा,
खेतों में पिता जी का हाथ बटाउंगा,
बच्चों को भी पेड़ पौधे फूल पतियों से
प्रेम करना सिखाउंगा,
स्वस्थ रहने की कलावाजी जवानों को बताउंगा,
अपने गाँव को प्रदूषण रहित बनाउंगा” !
लेकिन वे नहीं आये !
आखरी पत्र आया था,
पिता जी को रेलवे स्टेशन बुलाया था,
लेकिन पिता जी अकेले वापिस आये,
मन में अनहोनी शंका के बादल गड़गड़ाए,
अचानक फोन की घंटी बजी,
एक सोयी आशा जगी,
अचानक,
घर के मंदिर का दिया बुझ गया,
एक चित्कार निकली, ‘विधाता’ ये तूने क्या किया !
पूरी रात आँखों में बिताई,
सुबह दरवाजे पर एक फौजी गाडी आई,
तिरंगे में लिपटी बेटे की अर्थी थी,
पत्नी का सुहाग, बच्चों की छतरी थी,
मां पिता जी की बुढापे की लाठी थी,
बेटा सीमा पर दुश्मन को मार के मरा है,
रक्त से लत पत धरती मां की गोद में पडा है,
जैजै कार हो रही है, मृत देह पर फूल गिर रहे हैं,
सलामी में गोले गिर रहे हैं !
पत्नी सोच रही है, वे चले गए बिना कुछ कहे,
कि तुम क्या करोगे जब हम ना रहें ? ‘

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