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सैनिक रक्षक है भक्षक नहीं

jagate raho
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भारतीय सैनिक जहां भारतीय नागरिकों का रक्षक है, लड़ाई के टाइम सीमा पर दुश्मनों से सीमा रक्षा करता है, वहीं शान्ति के समय देश के अंदर पल रहे दुश्मनों से, आतंकवादियों, मावोवादियों, नक्षलपंथियों, इस्लामिक टेररिस्ट अटैक से भी आम लोगों को बचाता है ! ऐसे रक्षकों के ऊपर अपनी ही जनता आतंकवादियों का साथ देकर पत्थर मारे, उनको क्या कहा जाय, देश के नागरिक या गद्दार ?
एक छोटी सी घटना का वर्णन कर रहा हूँ, जिससे पता लग जाएगा की भारतीय सैनिक किसे कहते हैं ! “दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उस दिन जरा ज्यादा ही भीड़ थी, लोग त्योहारों, शादियों में शामिल होने के लिए गाँवों को जा रहे थे ! सैनिकों की आवा जाही, छुट्टी से वापिस ड्यूटी पर जाने वाले, ट्रेनिंग सेंटरों से प्रशिक्षित होकर काफी बड़ी संख्या में नए सैनिक जम्मू, श्रीनगर, कारगिल. पूंछ, राजौरी और लेह लद्दाक जा रहे थे ! जम्मू तवी में केवल एक डिब्बे को आम जनता के लिए छोड़कर सारी गाड़ी आरक्षित की गयी थी ! गाड़ी छूटने में केवल तीन मिनट रह गए थे, एक सैनिक की नजर बाहर प्लेट फ़ार्म पर उस भीड़ में एक बुजुर्ग महिला पर पडी,जो चिंता, उदास और सदमें में असहाय सी खड़ी थी, हाथ जोड़ कर सबसे विनती कर रही थी की, ‘जम्मू में उसका लड़का सख्त बीमार है और उसे जल्दी ही बीमार बेटे को देखने जाना है, एक कोने में ज़रा सी खड़े होने की ही जगह देदो’! गाड़ी आरक्षण डिब्बे में राजनेता, नेता, प्रतिष्ठित व्यापारी, अलगाववादी नेता, जो अपने को काश्मीरियों का हित चिंतक बताते हैं, हर मजहब जाति के लोग बैठे थे, किसी ने भी उस असहाय बुजुर्ग महिला की गिड़गिड़ाने की आवाज नहीं सुनी ! सैनिक दल अभी सेंटर से ट्रेनिंग करके कारगिल जा रहा था, उसी टुकड़ी के साथ यह सैनिक भी जा रहा था ! उस महिला को देखकर उसे अपनी माँ की याद आगयी ! वह भागता हुआ अपने डिब्बे से बाहर आया और उस बुजुर्ग महिला का हाथ पकड़ कर अपने डिब्बे में ले आया ! उसे अपने साथियों की मदद से एक ऊपर वाली सीट खाली करके देदी ! उसे पूछने से पता लगा की वह जम्मू की रहने वाली है और दिल्ली रिश्तेदारी में आई थी, वापिस जम्मू जा रही है ! आज ही सुबह टेलीग्राम मिला है की ‘ उसका १८ साल का लड़का सख्त बीमार है’ और हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से लड़ रहा है ! टीटी ने आकर बुढ़िया से जब टिकेट माँगा. तो उसके पास पैसेंजर का टिकट भी नहीं था ! पैनल्टी के साथ सारे जवानों ने मिलकर उस बुढ़िया के टिकेट का पैसा भरा ! जम्मू स्टेशन से चार सैनिक उस दुखिया महिला के साथ उसके बेटे को देखने के लिए हॉस्पिटल तक गए ! वास्तव में लडके की हालत चिंता जनक थी, उसे तुरंत तीन बोतलें खून की जरूरत थी, उस ब्लड ग्रुप का खून हॉस्पिटल वालों को नहीं मिल रहा था ! चारों जवानों का ब्लड ग्रुप मैच कर गया और उनमें से तीन ने अपना ब्लड देकर उसे नया जीवन दान दे दिया था ! रक्त जाते ही दो दिन से बेहोश पड़े लड़के ने आँखें खोल दी ! डाक्टरों ने कह दिया की अब वह खतरे से बाहर है ! उस महिला ने उन चारों को सीने से लगाकर बहुत सारा आशीर्वाद दिया, अस्पताल के डाक्टरों नर्सों, दूसरे कर्मचारियों के अलावा अन्य लोगों ने भी उनकी तारीफ़ की ! चारों सैनिक वापिस अपने दल में सामिल हो गये और कानवाई से कारगिल चले गए ” ! कुछ दिनों में पता चला की वह मुस्लिम युवक स्कूल में पढता था और आतंकी उसे स्कूल से जबरदस्ती अपने कैम्प में ले गए थे, वहां उसे आतंकी गति विधियों में ट्रेड किया गया था ! एक हप्ते पहले जिन आतंकियों ने सैनिक कैम्प पर हमला किया था, उनमें वह भी सामिल था ! उसकी टांग पर गोली लगने से वह भाग नहीं पा रहा था, भागते हुए आतंकियों ने ही उसको मारने के ध्येय से गोली मारी और जान बचाकर भाग खड़े हुए ! सैनिकों ने ही पुलिस की मदद से उसे अस्पताल पहुंचाया था, अब बताओ कौन रक्षक है और कौन भक्षक है !
भारतीय सैनिक रक्षक ही नहीं हैं बल्कि सच्चे इंसान भी हैं ! उसी साल कारगिल युद्ध भी हुआ था ! उस युद्ध में इन चारों में से दो सैनिकों को रस्सों से दुश्मन की पहाड़ी पर चढ़ते हुए गोलियां भी लगी थी, लेकिन गोली लगने के बावजूद ये उन दुर्गम पहाड़ियों में चढ़ने में कामयाब होगये थे, उनके पीछे पीछे अन्य सैनिक भी उन दुर्गम पहाड़ियों में चढ़ गए और पाकिस्तानी दुश्मनों को चुन चुन कर जहन्नूम पहुंचाकर उनके काश्मीर को हथियाने के मंसूबों को चकनाचूर कर दिया था ! आज एक आतंकी के मारे जाने पर सारा विपक्ष, मीडिया, काश्मीर के अलगाववादियों के स्वर में स्वर मिला कर इन सच्चे देश भक्त, देश की जनता के रक्षकों पर आक्षेप लग रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं की आखिर उस आतंकवादी को क्यों मारा गया ? सैनिकों के ऊपर ईंट पत्थर बरसा रहे हैं ! इन दुर्दान्त अलगाववादियों, मीडियावालों और अपने को देशभक्त कहने वाले स्वार्थी, वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं के दुष्चरित्र से अमर जवान ज्योति पर शहीदों की आत्मा भी पछता रही होगी “कि क्यों हमने अपनी जवानी इन मतलब परस्तों के लिए कुर्वान की होगी, जो केवल अपने स्वार्थ सिधी के लिए, अपने परिवारवाद के लिए, इतने नीचे गिर गए हैं कि पत्थरों से, देश भक्त जवानों के ही सिर फुड़वा रहे हैं जनता से ! क्या ये वही भारत है जिसको आजाद करवाने के लिए सुभाष चंद्र बोस, लालालाजपत राय, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और बहुत सारे स्वतंत्र सैनानी फांसी के फंदे पर झूल गए थे “?
सैनिकों का सन्देश आलोचना करने वालों और पत्थर मारने वालों को –
“हमने तुम्हे बचाया,
दुश्मन से आतंकवादी से,
बदले में तुमने पत्थर मारा,
दुष्टता गद्दारी से !
परिवार हमारा भी है,
माँ बाप बहन-भाई हैं,
पत्नी है बच्चे हैं,
याद हमें भी आई है !
सब छोड़ छाड़ सुरक्षा हेतु,
बर्फीली चोटी पर आए हैं,
सरहद पर पाकिस्तानी दुश्मन,
अंदर कुछ गद्दार समाए हैं !
देश की जनता सुरक्षित हो,
दिन रात चौकना रहते हैं,
दुश्मन की गोली से रक्त गिरे,
अपनों से गाली सहते हैं !
तुम कुदरत के नियम तोड़ते,
भूकंप बाढ़, बादल फटते,
इस प्रलय काल में बतलाओ,
कौन तुम्हारी सहायता करते ?
क्या अलगाववादी , आतंकवाद,
यही, वो सैनिक हैं भारत के,
तुमको फिर से करते आवाद !
सैना में सारा देश समाया,
कश्मीरी, पंजाबी, गुजराती हैं,
मध्यभारत, मराठी, कर्नाटक,
आंध्र प्रदेश मद्रासी हैं !
उत्तर प्रदेश, उड़ीया, दिल्ली
आसाम, बंगाल, बिहारी हैं,
केरला, छतीशगढ, तेलेंगाना,
झारखंड राजस्थानी हैं !
मिजोराम, मेघालय,
नागालैंड, अरुणाचली भी हैं,
सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा,
उत्तराखंडी – हिमांचली है !
इन सबसे भी अलग से, है अपनी पहचान,
हम सब हिंदुस्तानी, देश हमारा हिंदुस्तान !
सैनिक को पत्थर मारोगे,
वो सिर अपने ही पडेगा,
ये सैनिक हैं देश वासियो,
केवल दुश्मन से लड़ेगा !
नॉट :-अगर आपको सैनिकों पर पूरा भरोषा है की वे सचमुच में रक्षक हैं तो मेरी विनती है की तमाम जागरणजंक्शन के पाठक, लेखक, संपादक मंडल, कृपया, इस लेख और कविता को जरूर पढ़ना और अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करना ! हरेंद्र

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