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काश्मीर की जनता के लिए

jagate raho
jagate raho
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“इंसान के कुकर्मों से जब कुदरत खपा हो जाती है,
स्वच्छता नभ मंडल की अपनी चमक गंवाती है,
क्रोध की ज्वाला भड़क उठती, लहरे सागर में उठती हैं,
प्रलय के बादल उमड़ घुमड़ अन्धकार फिर करती हैं,
भूकंप से धरती हिल जाती, उथल पुथल फिर बाढ़ मचाता,
बतलाओ, हे मानव तुम्हे, फिर इस विपदा से कौन बचाता ?
सरहद पर सिर जो कटाते हैं, आतंकवाद भगाते हैं,
देशवासी चैन से सो पाएं, सीमा पर अपनी नींद गंवाते हैं !
बाढ़ आई श्रीनगर, राजोरी में, जन जीवन अस्त व्यस्त हुआ,
“अरे कोई आकर हमें बचाओ”, फंसे बाढ़ में करते थे दुआ,
जिन पर तुमने पत्थर मारा, उन्हीं ने आकर तुम्हे बचाया,
और बदले में तुम लोगों ने उन पर गाली पत्थर बरसाया !
काश्मीर की जनता, अबतो जागो, अपने पराए पहिचानों,
हिंदुस्तानी सैनिक रक्षक हैं, आतंकियों को दुश्मन मानो !
एनडी टीवी, अलगाव वाद, विपक्षी नेता सुन लो बात,
काश्मीरी जनता जाग गयी है, अब न मिलेंगे तुमसे हाथ !
अब न मिलेंगे तुमसे हाथ, होगयी दोस्त दुश्मन की पहिचान
सैनिक रक्षक, सैनिक सहायक, सैनिक भारत की है शान !
कहे रावत कविराय, चीन-पाक अपनी खिचड़ी पका रहे हैं,
भारत है प्रगतिपथ पर, ये ईर्षा द्वेष की भट्टी जला रहे हैं !! हरेंद्र

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