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आज का इंसान एक बार राजनीति के दाव पेंच सीख जाता है तो फिर बिना ब्रेक के ट्रक पर बैठकर विश्व भ्रमण पर निकल पड़ता है ! कहते हैं जो सिरों पर कफ़न बाँध कर चलते हैं और देश और समाज हित के लिए काम करते हैं, उन्हें परेशानियों बहुत आती हैं, कदम कदम पर रुकावटों का सामना करना पड़ता है, उनमें से कुछ तो कुदरती होती हैं कुछ इंसान द्वारा खड़ी की जाती हैं ! कुदरत तो इम्तिहान लेती है, लेकिन इंसान जान बूझकर उस प्रगतिशील इंसान का मार्ग ईर्षावश अवरोध करने की चेष्टा करता है, “मैं नहीं तो तू भी नहीं” ! लेकिन जो इंसान स्वार्थी होता है, स्वार्थ सिद्धी के कुमार्ग पर चलता है, उसे न भगवान् रोकते हैं, न कोई इंसान ! इंसान तो इसलिए रुकावट नहीं बनता है की ‘खतरनाक आदमी है कहीं जी का जंजाल न बन जाय’ ! भगवान् जानते हैं की ‘स्वार्थवश ये अंधा हो चुका है और अपने आप किसी गढ़े में गिरने वाला है, अपने दामन को क्यों मैला करूँ’ !
कंस बड़ा पापी था, घमंडी था, स्वार्थी और हत्यारा था ! आकाशवाणी ने जब उसे बताया की उसकी चचेरी बहिन ‘देवकी’ जिसको वह बहुत प्यार करता है, का आठवाँ बच्चा उसका काल बनेगा ! तो स्वार्थवश वह अंधा हो गया, उसने अपने जीजा वासुदेव और बहिन देवकी को कारागार में डाल दिया ताकि उनके बच्चों को वह पैदा होते ही यमलोक पहुंचा सके ! पहला बच्चा हुआ, उसे कंस के पास लाया गया, कंस असुर था, पापी था, हत्यारा था, लेकिन पांच तत्व से बना इंसान भी था, सौवां हिस्सा ही सही उसके दिल में इंसानियत थी ! उसने सोचा “मेरा काल तो देवकी का आठवाँ बच्चा है, इसे क्यों मारूं, उस बच्चे को उसने छोड़ दिया ! उसी समय देव ऋषि नारद मुनि वहां आए, उन्होंने कंस से प्रश्न किया “तुमने देवकी के पहले बच्चे को जीवित क्यों छोड़ दिया ?” कंस ने कहा ” देव ऋषि, इस बच्चे से मुझे कोई खतरा नहीं है” ! नारद बोले, “पहला बच्चा आठवाँ भी तो हो सकता है, देवताओं का षडयंत्र भी हो सकता है, मार्ग में आया हर काँटा तो काँटा ही हुआ न, चाहे वो चुभा या नहीं चुभा” ! कंस ने अपने सैनिकों से बच्चे को मंगाया और उसकी ह्त्या कर दी ! देवताओं ने जब नारद मुनि से पूछा की ‘ मुनिवर, आपने देवकी के पहले बच्चे को मरवा कर ये घोर अफराध क्यों किया ‘ ? नारद बोले, ‘कंस जितना जल्दी ज्यादा पाप करेगा उसका पाप का घड़ा जल्दी भरेगा और जल्दी देवकी के आठवें गर्व से भगवान आकर कंस को मारकर, इस पापी हत्यारे से धरती को मुक्ती दिलाएंगे’ !
ठीक ऐसी ही घटनाएं इस धराधाम पर रोज देखने सुनने को मिलती हैं ! स्वतंत्रता से पहले देश के छोटे बड़े राजा, जमीदार अंग्रेजों के वफादार जासूस हुआ करते थे ! उन्हीं की सहायता से अंग्रेजों ने बहुत से स्वतंत्रता सैनानियों को पकड़कर फांसी के फंदे पर झुलाया था ! आजादी मिलते ही उन्होंने अपनी वफादारी का जहरीला रस सता पर बैठी पार्टी के पात्र में मिला दिया और मंत्री मंडल में जगह बना दी ! बदलते समय के साथ उनकी पीढी दर पीढी विरासत संभाल रही, बाप के बाद बेटा और फिर पोता ! खूब सता का भोग लगाया, घूसखोरि, जमाखोरी भ्रष्टाचार का बाजार इतना ऊंचा उठा की फिर नीचे आने का नाम ही नहीं लिया ! लेकिन बकरे की माँ कब तक खैर मनाती , आखिरकार जनता जाग ही गयी, उन्हें अपनी वोट की कीमत की पहचान होगयी, और २०१४ में दे दी इन्हें जबरदस्त पटकनी, चारों खाने चित ! अभी तक ये नेता, राजनेता, जनता की कमजोरी का खूब फायदा उठा रहे थे, जनता का धन लूट कर देश को कंगाल और अपने परिवार का विकास कर रहे थे ! अरे, उन्होंने तो विकलांगों को मिलने वाले पैसों को भी नहीं छोड़ा, एनजीओ का नाम देकर सारा पैसा हड़प लिया, नकली बिलों से ऑडिट करवा लिया ! यहां सारे मंत्री संतरी नेता, शासक प्रशासक बहती दरिया में हथेलियां भर भर कर घर की गगरिया भर रहे थे, आलीशान कोठियां, किसानों की जमीन और मंहगी कारें खरीद रहे थे ! जिसने ऐतराज किया उसको भी साथ मिला रहे थे ! चलो किसी तरह इन सता के लोलूप भ्रष्टाचारी लोगों से छुटकारा तो मिला ! लेकिन कुछ राज्यों में अभी भी परिवारवाद का बोल बाला है ! इनमें से एक राज्य के मुख्य मंत्री ने तो अपने पिता श्री और पार्टी के प्रमुख का जन्म दिन मनाने के लिए ब्रिटेन से स्पेशल बग्गी मंगवाई थी और करोड़ों का चुना जनता पर डाल दिया था ! एक महिला मुख्य मंत्री ने तो दो कदम आगे बढ़ कर अपना जन्म दिन सीने पर ओबीसी का बिल्ला लगाकर स्वर्ण सिंहासन पर बैठकर मनाया !
एक कहावत है ‘बुराई कर बुरा होगा, भलाई कर भला होगा, कोइ देखे नहीं देखे, खुदा तो देखता होगा’ ! हाँ देखता है ! एक राजनेता का किस्सा बयां कर रहा हूँ ! किस्सा ज्यादा पुराना नहीं है, आजादी के बाद का है ! इस राजनेता का परिवार जिंदगी भर अंग्रेजों की चिलम भरता रहा, बाप बेटे ने ब्रिटेन में बैरिस्टरी की, खूब पैसा कमाया, हिंदुस्तान में भी काफी अचल सम्पति जोड़ी ! स्वतंत्रता से पहले बाप बेटे स्वतंत्र सैनानियों को पकड़वाने में अंग्रेजों की मदद किया करते थे और उन्हें आतंकवादी कहते थे, बदले में अंग्रेजों से खूब शाबासी इनाम तगमे हासिल करते थे ! जब इन्होंने देखा की अब अंग्रेजों के हाथों से सता छिनने वाली है तो भारतीय राजनीति में सामिल होगए ! स्वतंत्र भारत में जुग्गत भिड़ा कर सता के शीर्ष पर जा बैठे ! सता का १७ साल तक खूब भोग किया, लेकिन कुकर्मों की लिष्ट भी लंबी होती चली गयी थी, देश के पास पैसा नहीं था, फिर भी स्वयम तो भ्रष्टाचार के डेगड़े में हाथ नहीं डाला लेकिन कुछ मंत्रियों ने कसर नहीं छोड़ी ! देश की जनता बंटवारा नहीं चाहती थी फिर भी अपनी महत्वाकांक्षा के लिए बंटवारा करवाया ! काश्मीरी होते हुए भी पूरे काश्मीर को अपना नहीं बना पाया ! और एक दिन अचानक कुर्सी पर बैठे बैठे कमर खड़क गयी, डाक्टर, वैद्य सब आए, देश ही नहीं विदेशों से भी आए लेकिन इनकी कमर सीधी नहीं कर पाए, कमर से नीचे का हिस्सा लुंज(paralyze) होगया, एक महीने तक बिस्तर में पड़े पड़े ऊपर वाले से मौत की भीख मांगते रहे, यम दूत दरवाजे तक आते थे लेकिन यह कहते हुए की ‘अभी सजा की क़िस्त बाकी है, कुकर्मों का वजन भारी है ‘ वापिस चले जाते थे ! सब कुछ था, रुपया था, पैसा था, नौकर-चाकर, रिश्तेदार, थे, रुतवा था, चल-अचल सम्पति सामने मुंह चिढा रही थी, लेकिन शारीरिक कष्ट में कोई भी मददगार नहीं बन रहा था, कमर से नीचे वाला हिस्सा सड़ गया था, डाक्टर नर्सों तथा अन्य सेवादारों को कमरे में रहना नर्क समान लगने लगा था ! एक डेढ़ महीने के नर्क भोगने के बाद कहीं जाकर बही मुश्किल से इस दुष्कर्मी शरीर से आत्मा असाध्य कष्ट पाकर निकल पायी थी ! आज के भ्रष्ट, आतंकी, घूस खोरो, जमाखोरों, हत्यारो, चोर लुटेरो, डकैत, महिलाओं की अस्मत लूटने वालो (rapists), विश्वासघाती, नेता-राज नेता और शासक-प्रशासको और इनके टुकड़ों पर पलने वालो भाड़े के चमच्चो, तुम भी अब सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ ! तुम्हारे कुकर्मों का लेखा जोखा, चित्रगुप्त यमराज (धर्मराज) के लेखाकार के पास है ! वहां से चोरी करने की कोशिश मत करना, वहां पहरा गार्ड और जासूसी कैमरे तो नहीं है पर चोर लुटेरे अपने आप शिकंजे में फंस जाते हैं ! दुर्जनों, आतताइयो, अभी भी सुधर जाओ फिर मौक़ा नहीं मिलेगा. कबीर दास जी का ये दोहा याद कर लेना, “आच्छे दिन पाच्छे गए, गुरु से किया न हेत, अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत” ! भूलचूक लेनी देनी !
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