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“आजाद भारत” -कविता १९४७ से १९९८ के बीच की है
पत्नी विदेश गए पति से =
इस पार प्रिये बेकारी है, भुखमरी से रिश्तेदारी है,
गली गली गरीबी लड़ती , संघर्ष अभी तक जारी है !
आजाद हुए वर्षों पहले, क्या खोया क्या पाया है,
संसद में करके तू तू मैं मैं हाथ पाँव तुड़वाया है,
माईक पकड़ने छीना झपटी कुर्सियां तोड़ी जाती हैं,
सांसदों की नोक झोंक, दूर दर्शन पर आती हैं !
लूटमार डकैती पड़ती भूखों से भूखी लड़ती है,
दिन दहाड़े ह्त्या होती इंसानियत फिर रोती है !
दागी भ्रष्टाचारी नेता कैबनिट मंत्री बन जाता है,
मवेशी चारा चरनेवाला भारत की रेल चलाता है !
भष्टाचारी मुख्य मंत्री जब जेल भेजा जाता है,
मुख्य मंत्री की कुर्सी फिर पत्नी को दे जाता है !
गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ बे इज्जत होती नारी है,
इस पार प्रिये बेकारी है, भूखमरी से रिश्तेदारी है ! 1 !
नेता आवास बदलता है, मरम्मत सरकारी खर्चा है,
ये वसूली जनता से होती आज इसी की चर्चा है,
अफ़राधी क़ानून बनाते सिसकती ईमानदारी है,
इस पार प्रिये बेकारी है, भूखमरी से रिश्तेदारी है ! २ !
पानी के पाइपों में जंक लगा,टूटी फूटी सड़कें हैं,
नलके पानी के सूखे पड़े, किस्मत जनता से रूठी है,
प्रदूषण की काली छाया, सूर्य चाँद छिप जाते हैं,
नील गगन के टिम टिम तारे आज नजर नहीं आते हैं,
सुबह सबेरे अब इस छत पर चिड़िया नहीं चिंचियाती है,
उदास खड़े पेड़ों से अब ठंडी बयार नहीं आती है !
वीरान पड़े हैं बाग़ बगीचे, माली थका अलसाया है,
हर शाख पर उल्लू बैठा, इस बार बसंत नहीं आया है !
सज्जन सड़क किनारे बैठा, दुर्जन को मिली अटारी है,
इस पार प्रिये बेकारी है, भूखमरी से रिश्तेदारी है ! ३ !
किसानों में बेचैनी है, खेतों में फसलें मुरझाती हैं,
लहलहाती धान की खेती आज नजर नहीं आती है !
दूषित गंगा का जल, दूषित भारत की नदियाँ हैं,
निर्मल जल नदियों में देखे बीत गयी सदियां हैं !
सोने की चिड़िया उड़के सात समुद्र पार गयी,
मानसरोवर जगह पे है, राजहंस का पता नहीं,
भारत में शासन सुनते हैं स्वयं भगवान् चलाते हैं,
शासक प्रशासक दफ्तर में वेतन लेने ही जाते हैं !
मजहब से मजहब लड़ता, पार्टी से पार्टी टकराती,
बाहर का दुश्मन वार करे, जनता एक हो जाती है !
ये सभ्यता है हमारी ये ही पहचान हमारी है,
देख एकता भारत की, सेना दुश्मन की हारी है !
ये भारत की बात प्रिये तुम विदेश की बात करो,
मैं आ रही हूँ मिलने तुमसे एयर पोर्ट पर आके मिलो !
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