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लालूजी और केजरीवाल का मेल नहीं बैठता

jagate raho
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लालूजी और केजरीवाल का मेल नहीं बैठता। लालू जी राजनीति के पक्के खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि पक्के उस्ताद भी हैं। वे अपने कार्यकाल में न कभी राज्यपाल से उलझे न केंद्र सरकार के साथ कभी तू तू, मैं मैं ही हुई। वे मजे से गर्म तवे पर अपनी मनपसंद रोटियां सेंकते रहे। राज्य सरकार के अमले, शासन-प्रशासन यहां तक कि कैबिनट स्तर के मंत्री-संतरियों तक को खबर नहीं होती थी कि वे कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं। १५ साल तक बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहे, लेकिन अति ठीक नहीं होती। साग में नमक जरा ज्यादा पड़ जाय, तो भी परिवार के जवान-वरिष्ठ अन्न की बर्बादी बचाने के लिए जी मारकर उसे उदरग्रस्त कर ही लेते हैं। लेकिन अगर नमक इतना पड़ जाय की खाना जहर बन जाय, तो फिर खाने को कचरे में ही फेंकना पड़ता है।

lalu and kejariwal

यही हालत बिहार में लालू जी की हुई, उन्‍होंने नमक की मात्रा बढ़ाते-बढ़ाते खाने को जहर बना दिया। अरे, सरकारी दवाइयां जो गरीबों को दी जानी थी, बेचकर पैसा जेब के हवाले किया गया। मवेशी चारा घोटाला सबसे प्रमुख घोटाला बनकर बाहर आया। गरीब तो भूखे पेट सडकों पर उतर ही आए थे, लेकिन उनके साथ-साथ गाय, बैल, भैंस और बकरियां भी चारे की मांग के लिए सड़कों पर उतर आईं। जब आठ-आठ घोटाले उजागर हुए, तो केंद्र में कांग्रेस सरकार की नींद खुली। उन्‍होंने आनन-फानन में सीबीआई जांच बिठा दी। सारे घोटाले सही निकले। लालूजी को जेल भेज दिया गया।

लालूजी भी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी थोड़ी न थे। उन दिनों बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार जैसे सत्यवादी नेता थे। लालू जी ने जल्दी से कैबिनट मीटिंग बुलाई और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम की कुर्सी पर बिठाकर खुद वातानुकूलित और सजे-सजाए जेल में बंद हो गए। जाने-माने अखबारों की सुर्ख़ियों में उस दिन के गणमान्य शख्शियतों में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में तो नहीं, पर ताम्बा अक्षरों में जरूर लिखा गए। नीतीश कुमार बेचारा भोला-भाला सीधा-साधा, राजनीति का नौसिखिया, पर ईमानदार अटल जी की खोज था। भाजपा के साथ उसकी पार्टी ने मिलकर उसे बिहार का मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन बिहार के भ्रष्‍टाचारी राजनीतिज्ञों को यह गठबंधन रास नहीं आया।

लालू जी ने नीतीश कुमार और भाजपा की जोड़ी तोड़कर उसे अपने साथ गठबंधन करने पर मजबूर कर दिया। कम्युनिस्‍ट जैसे अपने को सेक्युलर समाजवादी कहने वाले स्वयं भ्रष्टाचारी कुएं में डुबकी लगाने वाले भला समाज कल्याण की भाषा क्या जाने। नीतीश झांसे में आ गए, लालूजी की पार्टी के साथ मिलकर सत्ता में आए, लालू जी के दो लड़कों को मिनिस्‍टर बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने लालू के ऊपर लगे आपराधिक चार्ज हटाने से इनकार कर दिया और लालू जी का हाजमा अस्त-व्यस्त हो गया।

क्या पते की बात कही है, केजरीवाल जी, मुख्यमंत्री दिल्ली के, देश की राजधानी के, फिर कपिल मिश्रा जी ने ही, जो कुछ दिन पहले उनके खासमख़ास मंत्री हुआ करते थे उन्‍होने केवल और केवल दो करोड़ रिश्वत लेने का आरोप लगाकर उनकी मार्केट वैल्यू कम कर दी। अरे दिल्लीवालों को पता है अरबों का वारा न्यारा हुआ है। ९७ करोड़ जो आप ने पार्टी के प्रचार-प्रसार में खर्च किए, वो भी तो सरकारी पैसा था। दिल्ली के नागरिकों के खून पसीने का था। फिर चेले भी तो लालू जी के, डायलॉग “सच्चाई की जीत होगी”। अरे फिर चिल्ला क्यों रहे हो, होने दो इन्क्वायरी, “दूध का दूध और पानी का पानी”, चोर की दाढ़ी में तिनका। आपतो दाढ़ी ही नोचने लगेंगे, केजरीवाल, सिसोदिया और स्वास्थ्यमंत्री, जैन। लगता है अब खैर नहीं, जब लालू जी नहीं छूटे, तो आप किस खेत की मूली हैं। लेकिन क्या हुआ लालू जी सत्ता से अलग हैं, उनके दो होनहार सुपुत्र नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में ख़ास मंत्रालयों को देख रहे हैं। लेकिन अगर केजरीवाल जी जेल गए, तो किसको मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाएंगे? बहुत झगड़ा कर लिया, एलजी से और केंद्र सरकार से, गाली और बुरा-भला भी बहुत कह दिया “मोदी” जी को। अब तो जेल का सामान बांध ही लो।

मोदीजी के हर क्षेत्र में बढ़ते हुए तेज रफ़्तार रथ को देखते हुए, विपक्ष को लगा कि ‘मोदीजी तो लगता है २०१९ ही नहीं २०२४ के लोकसभा चुनाव में भी बाजी मार ले जाएंगे। आनन-फानन में विपक्ष वालों की मीटिंग बुलाई गयी। भाजपा के खिलाफ एक गठबंधन बनाया गया। २०१९ के चुनाव में मोदीजी के खिलाफ विपक्ष के सशक्त उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। कमाल तो तब हुआ जब पूरे विपक्ष में कोई भी शख्स मोदीजी की टक्कर का नहीं मिला, तो फिर सबकी नजर गांधी परिवार पर गयी। राहुल को तोला गया, लेकिन वह किसी भी क्षेत्र में मोदी जी के आसपास भी कहीं नहीं टिक पाए।

अभी हालही में मोदीजी को राहुल गांधी ने ‘सबसे कमजोर प्रधानमंत्री बता दिया’, पता नहीं किस गुरु से राहुल ने यह जुमला सीख लिया। एक गरीब किसान की झोपड़ी में एक रात बिताई थी, सारे मीडिया वालों ने राहुल की तस्वीर पेपरों में डलवाई थी, लेकिन ‘उस बेचारे किसान को’ जिसने उनके खाने पीने, खाट-बिस्तर का इंतजाम किया, उसने कितने पापड़ बेले होंगे, यह किसी पेपर ने नहीं छापा। अब तो लालूजी ने भी साफ़ शब्‍दों में कह दिया है कि राहुल की जगह उन्हें प्रियंका पर ज्यादा भरोसा है। एक मीटिंग में तो उन्होंने राहुल का नाम भी उजागर नहीं किया।

लालू जी सत्ता में नहीं हैं, तो क्या हुआ, सत्ता पर और विपक्ष के गठबंधन पर पक्की पकड़ है। नीतीश कुमार अपनी ईमानदारी, वफादारी को उजागर नहीं कर पा रहे हैं। दबाव में हैं। राष्ट्रपति के चुनाव में नीतीश जी ने अपने विवेक का इस्तेमाल किया और एनडीए के उम्मीदवार को अपना सपोर्ट देकर विपक्ष के गणित को फेल कर दिया। लालू जी और विपक्ष वाले थोड़ी देर तिलमिलाए जरूर फिर चुप हो गए। राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के आधे से ज्यादा मतदाता एनडीए के झंडे तले आ गये हैं। विपक्ष ने दलित दिवगंत नेता श्री जगजीवन राम की बेटी को अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है। २1 जुलाई को सब पता लग जाएगा कि कौन कितने पानी में है।

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