jagate raho
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पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे उठ जाओ,
सागर कहता है लहराकर, मन में गहराई लाओ।
समझ रहे हो क्या कहती है, उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग,
भर लो, भर लो अपने मन में, मीठी-मीठी मृदुल उमंग।
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो, कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना, ढक लो तुम सारा संसार।
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